कोर्ट में सेंध: करतूत - 55 लोगों को पता भी नहीं चला, उनकी संपत्ति दूसरे के नाम पर हो गई

करतूत - 55 लोगों को पता भी नहीं चला, उनकी संपत्ति दूसरे के नाम पर हो गई
  • संपत्ति हड़पने के लिए काम कर रही है एक बड़ी गैंग
  • सभी मामलों में एक जैसे कारनामे कर जमीनें हड़पीं
  • कोर्ट का ऑर्डर देखकर लोगों के होश उड़े

डिजिटल डेस्क, सुनील हजारी, नागपुर। अचानक कोर्ट का आदेश आ जाए कि आपके नाम की जमीन किसी और व्यक्ति के नाम कर दी गई है, जल्द से जल्द उसकी रजिस्ट्री कर उसे पजेशन दें, तो हैरान होना स्वाभाविक है। ऐसा ही कुछ यहां कई पीड़ितों के साथ हुआ। उनके पैरों तले जमीन खिसक गई, क्योंकि जिसके नाम जमीन करने के आदेश हुए हैं, उनसे कभी कोई सौदा ही नहीं किया। वह जमीन का मालिक कैसे बन गया, आखिर यह आदेश कैसे हो गया? लोग जब तक इस उधेड़बुन लगे रहे, तब तक उनकी जमीन जा चुकी थी। कई मामलों में तो पुलिस ने कोर्ट के आदेश का पालन सख्ती से करवाया। यह कोई नॉवेल की कहानी नहीं, सच्चाई है। जिला कोर्ट में एक गैंग के जरिए खुलेआम यह खेल चल रहा है। एक-दो नहीं, 55 से ज्यादा केस हो चुके हैं। यह वह मामले हैं, जो अभी जानकारी में आए हैं। इनमें से पांच मामलों में अलग-अलग थानों में एफआईआर भी दर्ज हुईं, लेकिन खेल रुका नहीं। इस कारनामे को अंजाम देने वाले दो मास्टरमाइंड सामने आए हैं, जिसमें मुख्य जगदीश प्रसाद जैस्वाल और दूसरा रंजीत सारडे है। इनके कारनामों को देखकर एक बार यकीन करना मुश्किल है कि कोर्ट में ऐसा हो रहा है। पीड़ितों से मिली जानकारी के अनुसार यह गैंग अभी तक 50 करोड़ से अधिक की संपत्ति हथिया चुकी है। यह राशि वह है, जो पीड़ितों की छान-बीन में सामने आई, अभी ऐसे कई केस हैं, जो सामने आना बाकी हैं।


ऐसे दिया घोटाले को अंजाम

कोर्ट का ऑर्डर देखकर लोगों के होश उड़े, क्योंकि जिसके नाम संपत्ति करने के आदेश हुए, वे उन्हें जानते तक नहीं थे।

पीड़ितों को पता भी नहीं चलता कि उनके नाम से कुछ वकील उनका केस लड़ रहे हैं और फिर समझौता कर उनकी जमीन दूसरों के नाम कर दी गई।

1. कोर्ट से पीड़ितों की जानकारी लेकर उनसे संपर्क करते हैं

ठगी के सभी मामलों में लगभग एक जैसे तरीके का इस्तेमाल किया गया। सबसे पहले कोर्ट से जमीन विवाद के पीड़ितों से संपर्क किया गया। पहले जगदीश प्रसाद जैस्वाल संपर्क करता है कि, वह उनका केस जीता देगा, कोर्ट में उसकी सेटिंग है। कई तरह की बातों से उन्हें अपने झांसे में लेता है।

2. अपने वकील से मिलवाकर बिना पूर्व पैसे लिए केस लड़ने का झांसा देता है

इसके बाद जगदीश पीड़ित पक्ष को झांसा देता है कि उसकी कोर्ट में बड़ी पकड़ है, वह केस जीता देगा। इसके लिए वह अपने वकील रंजीत सारडे से मिलवाता है कि यह बिना कोई पूर्व भुगतान लिए केस लड़ते हैं। इस ऑफर के साथ कहता है, जीतने के बाद ही भुगतान करना। ऐसे में कोर्ट कचहरी से परेशान आदमी को लगता है कि उसे बड़ी राहत मिली हैं।

3. कुछ तारीखों पर वकील पहुंचता भी है, फिर होते हैं कागजों पर हस्ताक्षर

कोर्ट की कुछ तारीखों पर जगदीश का वकील पीड़ित के केस में पहुंचता भी है, इससे सामने वाले को पूरा यकीन हो जाता है कि, उसे बड़ी सौगात मिल गई। इसके बाद वह कोर्ट में अलग-अलग बहानों से कुछ कोरे स्टॉम्प और कागजों पर पीड़ित के हस्ताक्षर ले लेता है।

4. एक नोटराइज एग्रीमेंट तैयार होता है कि उसे पीड़ित ने जमीन बेच दी है

जिन कोरे दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए गए थे, उनमें से एक पर एक एग्रीमेंट तैयार किए जाते हैं कि पीड़ित ने उनसे जमीन बेच दी है, जिसका एग्रीमेंट किया था और उसके बाद कैश पैसे ले लिए हैं। अधिकांश राशि एक लाख से 10 लाख के बीच होती है। भले ही जमीन की कीमत कुछ भी हो।

5. उल्टा कोर्ट में पीड़ित के खिलाफ केस लग जाता है

इसके बाद जगदीश पीड़ित के खिलाफ ही उल्टा एक केस लगा देता है और एग्रीमेंट कर जमीन या संपत्ति का सौदा करने के बाद ही उसे जमीन पर कब्जा नहीं दिया गया, उसे कब्जा दिलवाया जाए। यहां खास बात यह है कि, इस केस से जुड़े कोई भी नोटिस बाबुओं की सेटिंग से पीड़ितों तक नहीं पहुंचती है। उनके फर्जी हस्ताक्षर कर जमा कर दिए जाते हैं।

6. केस लड़ने पीड़ित का डमी वकील भी कोर्ट में खड़ा कर दिया जाता है

इस मामले में सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि जगदीश के संबंधित केस में पीड़ित की तरफ से एक डमी वकील भी खड़ा कर दिया जाता है। इसमें पीड़ित के पुराने हस्ताक्षर लिए कागजों का इस्तेमाल किया जाता है।

7. पहले डमी वकील केस लड़ता है, फिर जमीन सौंपने पर राजी हो जाता है

इस मामले में डमी वकील पहले पीड़ित की तरफ से केस लड़ने का नाटक करता है, कुछ तारीखों पर उपस्थित होता है और फिर वह समझौता करने का अॉफर देकर जमीन की रजिस्ट्री करवाने या कब्जा देने के लिए पीड़ित की तरफ से ऑफर दे देता है।

8. और समझौते के आधार पर कोर्ट जगदीश को जमीन सौंपने का आदेश कर देता है

इस मामले की आखिरी कड़ी यह होती है कि जब पीड़ित का वकील समझौते के लिए राजी होता है, तो कोर्ट उस समझौते के आधार पर जमीन की रजिस्ट्री या कब्जा दिलाने का आदेश कर देती है। बस इसी आधार पर जमीन जगदीश के नाम हो जाती है।

9. जब आदेश पीड़ित के पास पहुंचता है, तब उसे पूरी घटना का पता चलता है

जब कोर्ट का यह आदेश पीड़ित तक पहुंचता है, तो अधिकांश लोगों को तब ही इस मामले की भनक लगती है। इसमें से कुछ लोग जो सक्षम हैं, वह एक नया केस कर इसके खिलाफ लड़ते हैं, जो सक्षम नहीं हैं, वे हार मान लेते हैं।

10. अधिकांश मामलों में पुलिस ने अपराध दर्ज नहीं किए, कहा- सिविल केस है

अधिकांश मामलों में जब पीड़ित पुलिस के पास जाते हैं, तो उनका केस दर्ज नहीं होता। आरोपी और उसका वकील कहता है कि यह सिविल केस है। यदि सामने वाले को आपत्ति हो तो वह कोर्ट में लड़े।

सभी आरोप गलत हैं : रंजीत सारडे

इस मामले में जब हमने जगदीश प्रसाद जैस्वाल से उनका पक्ष जानना चाहा, तो उनका मोबाइल बंद मिला, उनसे संपर्क नहीं हो सका। वही रंजीत सारडे का कहना है कि, उन पर लगे सभी आरोप गलत हैं। उन्होंने तो पूरी ईमानदारी से केस लड़े हैं। एफआईआर में उनका नाम शामिल कैसे कर लिया, यह मैं अभी तक समझ नहीं पा रहा हूं। पीड़ितों को कोई भड़का रहा है, इसलिए वे मेरा नाम ले रहे हैं। जगदीश अभी किसी के संपर्क में नहीं है, इसलिए वे केवल अपन पक्ष रख रहे हैं।


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घोटाले में यह सब शामिल

इस पूरे घोटाले में दो मुख्य मास्टर माइंड जगदीश प्रसाद जैस्वाल और रंजीत सारडे के साथ कोर्ट के निचले स्तर का स्टॉफ, बाबू, नोटिस को तामील करवाने वाला स्टॉफ, मामलों की जानकारी देने वाले लोग, स्टॉम्प वेंडर का पूरा गिरोह शामिल है।

Created On :   9 Jan 2024 12:23 PM GMT

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