नागपुर: जमीनी शुरुआत को सरकारी मिशन बनने में लगे 17 साल, बना सरकारी स्वास्थ्य अभियान

जमीनी शुरुआत को सरकारी मिशन बनने में लगे 17 साल, बना सरकारी स्वास्थ्य अभियान
  • एक डॉक्टर का कार्यक्रम अब सरकारी स्वास्थ्य अभियान
  • 2006 में शुरु सिकलसेल-एनिमिया नियंत्रण कार्यक्रम
  • आईसीएमआर के अनुसंधान में सक्रिय भूमिका

डिजिटल डेस्क, नागपुर, चंद्रकांत चावरे। सरकार की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1 जुलाई 2023 को मध्यप्रदेश के शहडोल में 2047 तक सिकलसेल रोग को खत्म करने घोषणा की। तब से राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन अंतर्गत सिकलसेल को खत्म करने देशभर में विविध कार्यक्रम व उपाययोजनाओं पर काम किया जा रहा है। इस अभियान की जमीनी शुरुआत 2006 में हो चुकी थी। इसे सरकारी स्तर पर लागु करने में 17 साल लगे। इसके पिछे एक शख्स का हाथ है। गुजरात के वलसाड निवासी 72 वर्षीय पद्मश्री डॉ. यजदी इतालिया ने सिकलसेल को जड़ से खत्म करने के लिए विविध उपाययोजनाएं तैयार की। जिसे सरकार ने अपनी स्वास्थ्य नीतियों में शामिल किया। उनके कार्य की दखल लेकर उन्हें इसी साल राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों पद्मश्री अलंकरण से गौरवान्वित किया गया है। एक कार्यक्रम के लिए नागपुर पहुंचे डॉ. इतालिया ने दैनिक भास्कर से विशेष बातचीत में जानकारी साझा की।

2006 में शुरु सिकलसेल-एनिमिया नियंत्रण कार्यक्रम

1978 में गुजरात के वलसाड शहर में दो सिकलसेल रोगियों का उपचार किया था। कुछ समय बाद देखा कि इस बीमारी के अधिकतर मरीज आदिवासी समूहों में पाए जा रहे है। आदिवासियों में यह बीमारी आम होते जा रही है। यह बीमारी क्यों हो रही है, इसे कैसे नियंत्रित किया जा सकता है, इस पर गहन चिंतन, अध्ययन व अनुसंधान किया। इसके बाद बीमारी को नियंत्रित करने के लिए 2006 में गो-एनजीओ के साथ मिलकर सिकलसेल-एनिमिया नियंत्रण कार्यक्रम (एससीएसीपी) तैयार किया। तत्कालीन गुजरात सरकार ने इस कार्यक्रम को मान्यता दी। इसके बाद केंद्र सरकार के राष्ट्रीय स्वास्थ्य अभियान अंतर्गत इस कार्यक्रम को स्वास्थ्य नीतियों में शामिल किया। यह देश का पहला एससीएसीपी था। ऐसा पद्मश्री डॉ.यजदी इतालिया ने कहा। वे नेशनल कैंसर इन्स्टिटयूट (एनसीआई) नागपुर में आयोजित सीएमई में हिस्सा लेने विशेष रुप से गुजरात के बलसाड़ से उपस्थित हुए थे। कार्यक्रम में उन्हें सम्मानित किया गया।

दो रोगियों को समुपदेशन व औषधोपचार से शुरुआत

विशेष बातचीत में डॉ. इतालिया ने कहा कि जब उन्होंने 1978 में पहले दो रोगियों का समुपदेशन व उपचार किया। यह दोनों मरीज 76 व 80 साल का जीवनकाल पूरा कर पाए। जिन समूह को यह बीमारी होती है, वह अशिक्षित व आर्थिक रुप से कमजोर होते है। इसलिए वे स्वयं होकर रक्त जांच व औषधोपचार के लिए विशेषज्ञ डॉक्टरों के पास नहीं जा सकते थे। यदि सामान्य चिकित्सको ने उनका उपचार किया तो सुधार की बजाय खिलवाड़ हो सकता है। ऐसे में उनके लिए सरकारी स्तर पर कार्यक्रम चलाना जरुरी था। जिसमें जागरुकता, रक्त जांच, औषधोपचार के लिए अभियान की आवश्यकता थी। इस आवश्यकता को देखते है उन्होंने 1984 में वलसाड रक्तदान केंद्र (वीआरके) की स्थापना की। इस केंद्र में सिकलसेल के लिए एक ही छत के नीचे अलग व्यवस्था की गई। यहां प्रसवपूर्व जांच, समुपदेशन, रक्त जांच, उपचार आदि समेत यहीं पर देश का पहला स्वतंत्र सिकलसेल क्लिनिक शुरु किया। यहां सिकलसेल एनिमिया रोगियों को सभी तरह की सेवाएं मुफ्त में उपलब्ध करायी जाती है। उन्होंने इस बीमारी को लेकर देश-विदेश का दौरा कर जागरुकता अभियान चलाकर व्याख्यान दिये।

आईसीएमआर के अनुसंधान में सक्रिय भूमिका

डॉ. इतालिया ने बताया कि 1987 में आईसीएमआर (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) के साथ मिलकर अनेक अनुसंधान कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। सिकलसेल एनिमिया पर केंद्रित जय विज्ञान परियोजना, सरकारी स्तर पर एनआईआईएच मुंबई, एनआईआरटीएच जबलपुर, आरएमआरसी भुबनेश्वर, एससीआईसी रायपुर समेत अनेक गैर सरकारी संगठनों के साथ काम किया। सिकलसेल ग्रस्त नवजातों की रोकथाम के लिए जांच अभियान शुरु किया गया। उन्होंने 2012 में इंडो-यूएस अंतर्गत आईसीएमआर प्रस्तावित देश की पहली योजना हील प्रिक ड्राई ब्लड सैंपल स्क्रीनिंग (नवजात शिशुओं स्क्रीनिंग) की शुरुआत वलसाड में की। हाल ही में आईसीएमआर द्वारा शुरु की गई प्वाइंट ऑफ केयर टेस्ट किट योजना को प्रभावी तरीके से क्रियान्वित करने डॉ. इतालिया ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। इस कारण उन्हें देश-विदेश के अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।

Created On :   14 July 2024 3:08 PM GMT

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story