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पहल: भारत कपड़ा उद्योग का महत्वपूर्ण केंद्र बनने को तैयार, आईसीएआर-सीआईसीआर में कार्यशाला
- कपास सुधार में बायोटेक हस्तक्षेप, अवसर और चुनौतियां पर चर्चा
- अनुवांशिक रूप से संशोधित (जीएम) कपास को प्रोत्साहित करने पर बल
- खरपतवार प्रबधंन के लिए शारीरिक श्रम की कम होती है आवश्यकता
डिजिटल डेस्क, नागपुर। भारत दुनियाभर में कपड़ा उद्योग का एक महत्वपर्णू केंद्र बनने के लिए तैयार है। महाराष्ट्र, तेलंगाना और तमिलनाडु सहित कई राज्यों ने खास कपड़ा पार्क स्थापित करने के लिए कई पहल की है। इसी क्रम में आईसीएआर-सट्रेंल इंस्टिट्यटू फॉर कॉटन रिसर्च (सीआईसीआर), नागपुर द्वारा बायोटेक कंसोर्टियम इंडिया लिमिटेड (बीसीआईएल) और फेडरेशन ऑफ सीड के सहयोग से ‘कपास सुधार में बायोटेक हस्तक्षेप, अवसर और चुनौतियां' विषय पर नागपुर के आईसीएआर-सीआईसीआर परिसर में कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला में कपास विशषेज्ञों और वैज्ञानिकों ने एक मजबतू कपड़ा मूल्य श्रृंखला सुनिश्चित करने और राज्यों की आकांक्षाओं को प्राप्त करने के लिए अनुवांशिक रूप से संशोधित (जीएम) कपास को प्रोत्साहित करने पर बल दिया।
निरंतर नवाचार पर जोर : भारतीय उद्योग (एफएसआईआई) के विशषेज्ञों ने स्पष्ट किया कि भारत में जीएम कपास का भविष्य कई बातों पर निर्भर करेगा। इसमें तकनीकी, नियामक, सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय कारक महत्वपर्ण हैं। कपास शोधकर्ताओं और कृषि विशषेज्ञों ने आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी-जेनेटिक इंजीनियरिंग और जीन संपादन की पूरी क्षमता का इस्तेमाल करने के लिए निरंतर नवाचार, जिम्मेदार प्रबधंन और हितधारक सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया है।
गुणवत्ता में होता है सुधार : आईसीएआर-सेंट्रल इंस्टिट्यटू फॉर कॉटन रिसर्च, नागपुर के निदेशक डॉ. वाई. जी. प्रसाद ने कहा कि भारत में दो दशक से अधिक समय पहले अपनाई गई, बीटी-कॉटन किस्मों को अनुवांशिक रूप से कीटनाशक प्रोटीन का उत्पादन करने के लिए तैयार किया जाता है, जो कुछ कीटों, जैसे कि बॉलवॉर्म और पिंक के लिए विषाक्त होते हैं। बॉलवॉर्म, रासायनिक कीटनाशकों की आवश्यकता को काफी कम कर देता है और उपज एवं गणुवत्ता में सुधार करता है। पूर्व अध्यक्ष, एएसआरबी और पूर्व निदेशक, आईसीएआर-सीआईसीआर के कपास विशेषज्ञ डॉ. सी. डी. मायी ने कहा कि जैव प्रौद्योगिकी ने शाकनाशी-सहिष्णु कपास किस्मों के विकास को सक्षम किया है, जो अधिक प्रभावी खरपतवार नियत्रंण करने में सक्षम है। इससे खरपतवार प्रबधंन के लिए शारीरिक श्रम की आवश्यकता कम हो जाती है। यह समग्र फसल पैदावार में सुधार कर सकता है।
Created On :   6 April 2024 3:13 PM IST