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बीमारी: जानलेवा होते हैं झटके, रिपोर्ट सामान्य, मेडिकल में सालभर में आते हैं 5000 से अधिक मरीज
- तीन साल तक नियमित करवाना पड़ता है उपचार
- दस साल से कम आयु वर्ग का प्रमाण अधिक
- अलग-अलग होती है मस्तिष्क विकार की बीमारी
चंद्रकांत चावरे , नागपुर । शैलेश (बदला हुआ नाम) का 24 साल का बेटा शहर के एक नामी कॉलेज में पढ़ता है। दो दिन पहले अचानक बैठे-बैठे उसका दिमाग सुन्न हो गया। करीब दस मिनट तक वह अचेतावस्था में रहा। शैलेश को उसकी बीमारी के बारे पता था। उसने पानी लाकर दिया, लेकिन बेटे के मस्तिष्क तक यह बात ही नहीं पहुंच पा रही थी। वह दस मिनट तक बेटे हिलाता रहा। बाद में बेटा चेतन अवस्था में आया। ऐसा दूसरी बार हुआ है। जब इस बारे में पूछा तो शैलेश ने बताया कि उसके बेटे को मिरगी के झटके आते हैं। उसका साल भर से एक निजी अस्पताल में उपचार चल रहा है। इस कारण बेटे को अकेला नहीं छोड़ते, उसे वाहन भी नहीं दिया जाता।
बिगड़ता है शारीरिक व मानसिक संतुलन : मिरगी ऐसी बीमारी है, जो जानलेवा भी हो सकती है। ऐसे मरीज के साथ हमेशा एक व्यक्ति का होना जरूरी है। जब मिरगी के झटके आते हैं तो मरीज का शारीरिक व मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है, मस्तिष्क काम करना बंद कर देता है। अधिकतर मामलों में मिरगी होने का पता नहीं चल पाता। मरीज पूरी तरह सामान्य होता है, कई बार जांच के बाद भी इसकी पुष्टि नहीं होती है। शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल (मेडिकल) के मनोरोग विभाग की ओपीडी में रोज 120 मरीज आते हैं। उन्हें अलग-अलग मस्तिष्क विकार होते हैं। इनमें से 16 फीसदी यानि 20 मरीजों को मिरगी के झटके आते हैं। यहां सालभर में 5000 से अधिक मरीज मिरगी का उपचार करवाने आते हैं।
बीमारी की जड़ समझना आसान नहीं : मिरगी एक क्रोनिक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है। मेडिकल की भाषा में इसे एपिलेप्सी कहा जाता है। इस बीमारी के पीड़ितो का मस्तिष्क असामान्य होता है। पीड़ितों को बार-बार या अचानक झटके आते हैं। मस्तिष्क में असामान्य गतिविधियां, बेहोशी, शरीर अनियंत्रित होना आदि लक्षण होते हैं। मनोचिकित्सा विभाग के डॉक्टर के अनुसार मस्तिष्क में कहां इस बीमारी की जड़ है, यह समझना आसान नहीं होता। जांच के बाद भी सारी रिपोर्ट सामान्य आती है। मिरगी के मामले में सर्जरी करने की जोखिम नहीं उठायी जा सकती। मस्तिष्क के अन्य अंगों या हिस्सों को नुकसान होने का खतरा रहता है। अधिकतर मामलों में इस बीमारी को दवाओं के सहारे ही नियंत्रित किया जाता है।
3 साल उपचार के बाद लेते निर्णय : मिरगी के उपचार की कमसे कम कालावधि 3 साल तक होती है। इन 3 सालों में नियमित उपचार करना पड़ता है। इसके अलावा उस मरीज की परिजनों व डॉक्टरों द्वारा नियमित निगरानी की जाती है। यदि 3 साल उपचार के दौरान उसके मिरगी के झटके में कमी आई तो उस समय के परिणाम के बाद आगे दवा शुरू रखनी है या नहीं यह निर्णय लिया जाता है। अधिकतर मामले में 3 साल में मिरगी के झटके आने बंद हो जाते है। बीमारी नियंत्रित हो जाती है। लेकिन भविष्य में दोबारा मिरगी के झटके आएंगे या नहीं इसकी निश्चितता नहीं होती। मेडिकल में मनोरोग विभाग द्वारा मिरगी के मरीजों का औषधोपचार के साथ ही परिणाम का भी अध्ययन किया जाता है।
अलग-अलग होते हैं लक्षण : मरीजों में मिरगी के अलग-अलग लक्षण होते हैं। किसी मरीज को बार बार एक जैसे ही झटके आते हैं। भ्रम होना, अचेतावस्था में चले जाना, शरीर अनियंत्रित होकर अजीब हरकत करना, डर या क्रोध की भावना, कुछ समय के लिए स्तब्ध हो जाना, माइग्रेन या पैनिक अटैक में भी मिरगी के झटके अाते है। इस बीमारी में अनुवांशिकता का प्रमाण नाममात्र होता है। यह बीमारी किसी भी आयु वर्ग में पाई जाती है। लेकिन 40 साल से कम आयु वर्ग का प्रमाण अधिक होता है। भ्रूण विकास के दौरान मस्तिष्क में विकृतियां, मस्तिष्क पर गंभीर चोट लगना, ब्रेन ट्यूमर या स्ट्रोक, मेनिनजाइटिस या एन्सेफलाइटिस संक्रमण, रक्त शर्करा में असंतुलन, इलेक्ट्रोलाइट असामान्य, न्यूरोट्रांसमीटर में असंतुलन, हार्मोनल परिवर्तन, दवाओं का साइड इफैक्ट आदि कारणों से मिरगी के झटके आ सकते हैं।
औषधोपचार के साथ स्थिति का अध्ययन
मिरगी के मामलों में जांच के बाद भी बीमारी की पुष्टि नहीं होती। अधिकतर मामले में रिपोर्ट सामान्य अाती है। अलग-अलग मरीजों में अलग-अलग लक्षण होते है। उनके लक्षण के आधार पर उपचार किया जाता है। दवाएं देकर ही मिरगी की बीमारी को नियंत्रित किया जाता है। 3 साल तक नियमित उपचार करने से इस पर नियंत्रण हो जाता है। कुछ गंभीर मामले में उपचार की अवधि दोगुनी की जाती है। उपचार के दौरान उसकी क्या स्थिति रही है, इसका भी अध्ययन होता है। -डॉ. मनीष ठाकरे, मनोरोग विभाग प्रमुख, मेडिकल नागपुर
Created On :   23 April 2024 9:07 AM GMT