राजनीतिक उठापटक: राजनीतिक हालात बदलने से विदर्भ में हाट सीट बनी विधानसभा की कई सीटें

राजनीतिक हालात बदलने से विदर्भ में हाट सीट बनी विधानसभा की कई सीटें
  • कहीं भाजपा तो कहीं कांग्रेस को चुनौती
  • चुनाव पूर्व सर्वे की रिपोर्ट पर मंथन
  • प्रमुख गठबंधनों के सहयोगी दलों की बढ़ी परेशानी

डिजिटल डेस्क, नागपुर। राज्य में राजनीतिक हालात बदलने से विधानसभा की कई सीटों पर नए नए पेंच सामने आ रहे हैं। इनमें विदर्भ की 10 से अधिक सीटें हैं जहां असमंजस की स्थिति बनी है। इन सीटों को चुनाव तैयारी के लिहाज से हाट सीट भी माना जा रहा है। कहीं भाजपा तो कहीं कांग्रेस को चुनौती मिल रही है। प्रमुख गठबंधनों के सहयोगी छोटे दलों की परेशानी बढ़ी है। नागपुर जिले में उमरेड, कामठी, सावनेर के अलावा विदर्भ में गोंदिया, साकोली, चंद्रपुर, अमरावती विधानसभा क्षेत्र सबसे अधिक चर्चा में हैं।

क्यों हैं चर्चा में : नागपुर जिले में विधानसभा की 12 सीटें हैं। इनमें शहर की 6 में से 2 व ग्रामीण की 6 में से 2 सीटों पर कांग्रेस ने चुनाव जीता था। फिलहाल ग्रामीण की कांग्रेस विधायकों की दोनों सीट रिक्त है। उमरेड से कांग्रेस विधायक राजू पारवे इस्तीफा देकर शिवसेना शिंदे गुट में शामिल हो गए है। सावनेर के सुनील केदार की विधानसभा सदस्यता रद्द हो गई है। उमरेड में महायुति में उम्मीदवार को लेकर बड़ी चुनौती है। इस क्षेत्र में भाजपा से दो बार विधायक रहे सुधीर पारवे को पराजित कर राजू पारवे विधायक चुने गए थे। इस बार भाजपा सुधीर तो शिवसेना शिंदे गुट राजू को उम्मीदवार बनाना चाहती है। दोनों महायुति में शामिल है। सावनेर में सुनील केदार के स्थान पर कांग्रेस कौन उम्मीदवार होगा, यह बड़ा सवाल बना है। लगातार दो दशक तक क्षेत्र से विधायक रहे केदार का दबदबा ऐसा रहा है कि क्षेत्र में कांग्रेस का कोई इच्छुक उम्मीदवार भी नहीं रहा है। फिलहाल भाजपा के पूर्व विधायक आशीष देशमुख ने केदार के विरोध में धरना प्रदर्शन के साथ भाजपा की चुनाव तैयारी व्यक्त की है। काटोल में पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख व उनके पुत्र सलिल देशमुख को राकांपा शरद पवार गुट का उम्मीदवार माना जा रहा है। गृहमंत्री देवेंद्र फडणवीस का विरोध कर देशमुख परिवार राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में बना है। ऐसे में महायुति का प्रयास रहेगा कि देशमुख परिवार को कड़ी मात दें। 2019 के चुनाव में पार्टी उम्मीदवारी से चूके चंद्रशेखर बावनकुले भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष है। वे विधानपरिषद सदस्य भी है। लेकिन इस बार कामठी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। ऐसा हुआ तो कामठी के भाजपा विधायक टेकचंद सावरकर की परेशानी बढ़ सकती है।

ये सीट भी चर्चा में : विधानपरिषद चुनाव में क्रास वोटिंग मामले में कांग्रेस ने अमरावती की विधायक सुलभा खोडे को दोषी ठहराया है। उनका टिकट कटना तय है। वे एनसीपी अजित में शामिल हो सकती है। उनका मुकाबला कांग्रेस नेता सुनील देशमुख से हो सकता है। चंद्रपुर में भाजपा नाना शामकुले को पराजित कर निर्दलीय विधायक बने किशोर जोरगेवार महायुति के उम्मीदवार बनेंगे तो भाजपा की अड़चन बढ़ सकती है। साकोली में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले के मुकाबले भाजपा को नया चेहरा ढूंढना पड़ रहा है। इस क्षेत्र में भाजपा उम्मीदवार रहे परिणय फुके हाल ही में विधानपरिषद सदस्य चुने गए हैं। गोंदिया में कांग्रेस के 3 बार विधायक रहे गोपाल अग्रवाल ने 2019 में भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ा। उन्हें पराजित करनेवाले निर्दलीय विधायक विनोद अग्रवाल भी भाजपा में लौट आए है। लिहाजा भाजपा को उम्मीदवारी के लिए अड़चन होगी।


Created On :   7 Aug 2024 11:04 AM GMT

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