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नौनिहाल: डेंटल हॉस्पिटल में आने वाले 60 फीसदी बच्चों के दांतों में लगे होते हैं कीड़े
- इनमें से 70 फीसदी को रूट कैनॉल से गुजरना पड़ता है
- 30 बच्चे इलाज के लिए आते हैं हर रोज
- 21 बच्चों की स्थिति काफी गंभीर होती है
डिजिटल डेस्क, नागपुर । युवा व बुजुर्गों में दांतों की समस्या आम है, लेकिन बच्चों में भी दांतों की समस्या का प्रमाण बढ़ने लगा है। शहर में 60 फीसदी बच्चों के दांतों में कीड़े लगने की समस्या पाई गई है। शासकीय दंत चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल (डेंटल हॉस्पिटल) के बालरोग विभाग द्वारा किए गए अध्ययन में इसकी पुष्टि हो चुकी है। डेंटल में हर रोज दांतों में कीड़े लगने की बीमारी से ग्रस्त औसतन 30 बच्चे इलाज के लिए आते हैं। इनमें से 70 फीसदी बच्चों को रूट कैनल करना पड़ता है। इन बच्चों की उम्र 12 साल तक होती है।
ओपीडी में आते हैं हर रोज 30 बच्चे : डेंटल हॉस्पिटल की हर रोज की औसत ओपीडी 300 है। युवा और बुजुर्ग के दांत विविध कारणों से खराब होते हैं। वहीं धूम्रपान, गुटखा, खर्रा व तंबाकू का सेवन करने वालों के दांत भी विविध बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं। अब बच्चों के दांतों में भी कीड़े लगने की बीमारी बढ़ चुकी है। डेंटल में हर रोज कुल ओपीडी में से 10 फीसदी यानि 30 बच्चों को कीड़े लगने की शिकायत होती है। इन 30 में से 70 फीसदी यानि 21 बच्चों की स्थिति काफी गंभीर होती है। कीड़े लगने से उनके दांतों मे छेद हो जाते हैं।
बैक्टीरिया करते हैं एसिड तैयार : डेंटल हॉस्पिटल सूत्रों के अनुसार, बच्चों के दांत सड़ने के का प्रमुख कारण बच्चों को अधिक मात्रा में मीठा खिलाना या खाते रहना है। टॉफी चॉकलेटस्, कैंडी, बबलगम, आइसक्रीम, केक, मिठाई, मीठा दूध, वेफर्स समेत कुछ पैकेजिंग सामग्री आदि के लगातार खाने से बच्चों के दांतों पर असर होता है। एक साल तक तो ऐसा कुछ पता नहीं चलता। दूसरे व तीसरे साल से जब बच्चा खाने लगता है, तब से 12 साल की आयु तक असर दिखाई देता है।
उपचार की अवधि फिर बढ़ जाती है : डेंटल हॉस्पिटल में जब बच्चों को उपचार के लिए लाया जाता है, तो पता चलता है कि उनके दांतों में कीड़े लग चुके हैं। कीड़े लगे हो तो उपचार 2-3 दिन में हो जाता है, लेकिन दांतों को छेद होने पर उसका उपचार 15 से 20 दिन तक चलता है। इसमें दांतों की सफाई, के अलावा रुट कैनल करना पड़ता है। डेंटल हॉस्पिटल के बाल रोग विभाग प्रमुख डॉ. रितेश कलसकर ने पिछले दिनों एक सर्वे किया था, जिसमें यह पाया गया कि शहर में औसत 60 फीसदी बच्चों को दातों में कीड़े लगने की बीमारी है।
ग्रामीण में प्रमाण कम : शहर के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों में दांतों में कीड़े लगने की बीमारी का प्रमाण कम बताया गया है। इसका कारण यह है कि ग्रामीण क्षेत्र के बच्चे अपेक्षाकृत टॉफी, चॉकलेटस्, कैंडी, बबलगम, आइसक्रीम, केक, मिठाई, मीठा दूध, वेफर्स समेत अन्य पैकेजिंग सामग्री से दूर ही देखे जाते हैं। बच्चों को खाने के साथ मिठाई दी जा सकती है, लेकिन उनके दांतों की सफाई का भी ध्यान रखना जरूरी है। अन्यथा छोटी उम्र से ही दांत का सड़ना शुरू हो जाता है।
अधिक मात्रा में मीठा व वेफर्स न दें : बच्चों के दांतों में कीड़े लगने या कोई अन्य समस्या होने पर सबसे पहले डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। उनके द्वारा जांच के बाद बताए अनुसार उपचार करना चाहिए। बच्चों को अधिक मात्रा में मीठा खाने से रोकना चाहिए। उन्हें फल देने चाहिए। सुबह- शाम दोनों समय सही तरीके से ब्रशिंग करना जरूरी है। इसके अलावा साल में दो बार बच्चों के दातों की विशेषज्ञ डॉक्टरों की जांच करवानी चाहिए। -डॉ. रितेश कलसकर, बाल रोग विभाग प्रमुख डेंटल हॉस्पिटल नागपुर
Created On :   19 March 2024 6:31 AM GMT