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असमंजस: केंद्र ने कहा-वैधानिक मंडल प्रस्ताव पर फैसला हमारा विवेकाधिकार, कोर्ट आदेश नहीं दे सकता
- सरकार की भूमिका से गतिरोध
- अधिकार पर फैसला सुरक्षित
डिजिटल डेस्क, नागपुर। विदर्भ वैधानिक मंडल का कार्यकाल बढ़ाने का प्रस्ताव राष्ट्रपति के पास भेजने का अधिकार विधानमंडल का है या प्रशासनिक दायरे में, इस सवाल को लेकर गुरुवार को बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर खंडपीठ में केंद्र सरकार ने अपनी भूमिका रखते हुए कहा कि मंडल का कार्यकाल बढ़ाने के लिए राज्य सरकार द्वारा भेजे गए प्रस्ताव पर फैसला लेने का हमारा विवेकाधिकार है। यह न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। इसलिए कोर्ट हमें इस प्रस्ताव पर फैसला लेने का आदेश नहीं दे सकता। वहीं, दूसरी ओर याचिकाकर्ता और राज्य सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए प्रस्ताव भेजने के फैसले को पूरी तरह से प्रशासनिक होने की बात कही। कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अधिकार क्षेत्र किसका इस मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रखा है।
अभी तक ऐसी प्रक्रिया : विदर्भ के समग्र विकास के साथ-साथ बैकलॉग की निगरानी के लिए स्थापित विदर्भ वैधानिक विकास महामंडल का कार्यकाल 30 अप्रैल, 2020 को समाप्त हो गया है। महामंडल की समय सीमा बढ़ाने के लिए स्वतंत्र विदर्भ समर्थक नितीन रोंघे ने नागपुर खंडपीठ में जनहित याचिका दायर की है। पिछली सुनवाई में विकास मंडल के कार्यकाल बढ़ाने का प्रस्ताव भेजने का निर्णय प्रशासनिक है या विधानमंडल यह फैसला लेगी, इस बात पर विस्तृत चर्चा हुई। तब याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया था कि, यह फैसला पूरी तरह से प्रशासनिक है। कार्यकाल बढ़ाने को लेकर राज्य सरकार की ओर से प्रस्ताव भेजा जाता है, केंद्र सरकार का गृह मंत्रालय आवेदन को मंजूरी दे देता है। इसके बाद राष्ट्रपति अपनी सहमति देते हैं। राष्ट्रपति के सहमति के बाद राज्यपाल मंडल की स्थापना करते हैं। याचिकाकर्ता ने यह भी दलील दी थी कि हाई कोर्ट को संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत इस संबंध में आदेश पारित करने का अधिकार है।
राज्य सरकार याचिकाकर्ता के पक्ष में : मामले पर गुरुवार को न्या. नितीन सांबरे और न्या. अभय मंत्री के समक्ष सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के समशेर सिंह बनाम पंजाब राज्य के फैसले का हवाला देेते हुए यह विशेषाधिकार होने की बात कही। साथ ही प्रस्ताव भेजने का अधिकार यह प्रशासनिक होने का दावा किया। राज्य सरकार ने भी याचिकाकर्ता का पक्ष लेते हुए यह अधिकार प्रशासनिक होने की बात कही है। वहीं केंद्र सरकार ने इसका विरोध करते हुए प्रस्ताव पर फैसला लेने का हमारा विवेकाधिकार होने की बात कही। याचिकाकर्ता की ओर से एड. फिरदौस मिर्झा, एड. अक्षय सुदामे और केंद्र सरकार की ओर से डिप्टी सॉलिसिटर जनरल एड. नंदेश देशपांडे ने पैरवी की।
Created On :   12 July 2024 5:23 PM IST