चेतावनी: नदी जोड़ परियोजना बदल सकती है स्थानीय मानसून पैटर्न और मौसम

नदी जोड़ परियोजना बदल सकती है स्थानीय मानसून पैटर्न और मौसम
  • नदी जोड़ परियोजना
  • वैज्ञानिकों ने दी विशेषज्ञों की राय लेने की सलाह
  • आईआईटी बॉम्बे समेत तीन संस्थानों की संयुक्त रिसर्च रिपोर्ट में खुलासा

डिजिटल डेस्क, मुंबई, दुष्यंत मिश्र| नदी जोड़ परियोजना के चलते स्थानीय मानसून पैटर्न प्रभावित हो सकता है इसलिए इसे जमीन पर उतारते समय विशेषज्ञों की मदद ली जानी चाहिए, जिससे परिस्थितिकी (इकोलॉजी) प्रभावित न हो। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बॉम्बे, भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान, पुणे और हैदराबाद विश्वविद्यालय के संयुक्त अनुसंधान के बाद वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि अगर इस परियोजना को नदी घाटियों (रिवर बेसिन) में उपलब्ध पानी के आधार पर आगे बढ़ाया गया तो कुछ इलाकों में बरसात कम हो जाएगी तो कुछ इलाकों में बरसात बढ़ जाएगी। इस अनुसंधान से जुड़े आईआईटी बॉम्बे के प्रोफेसर सुबिमल घोष ने कहा कि नदी जोड़ परियोजनाओं में यह देखा जाता है कि किस नदी में ज्यादा पानी है और कहां कम है। इसके बाद ज्यादा पानी वाली नदी का पानी कम नदी में डाल दिया जाता है। लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि जमीन पर जो पानी दिख रहा है वह चक्र का एक हिस्साभर है। दरअसल जमीन पर मौजूद पानी वाष्पीकृत होकर वायुमंडल में जाता है और बरसात होती है। नदी जोड़ परियोजना के बाद जिन इलाकों में पानी जाएगा और सिंचाई होगी वहां वाष्पीकरण बढ़ जाएगा जबकि जिन इलाकों से पानी दूसरे इलाकों में भेजा जाएगा वहां वाष्पीकरण कम हो जाएगा। इसके अलावा सूखे इलाके में सिंचाई के बाद पानी वाष्पीकृत होकर वायुमंडल में पहुंचेगा तो वहां मौसम भी अपेक्षाकृत ठंडा हो जाएगा। इसलिए अगर ज्यादा पानी एक इलाके से लेकर दूसरे इलाके में पहुंचा दिया जाएगा तो स्थानीय मौसम में बदलाव और बरसात का पैटर्न बदल जाएगा।

पुनर्चक्रित वर्षा पर असर

प्रोफेसर घोष ने कहा कि सितंबर महीने में होने वाली वर्षा में पुनर्चक्रित वर्षा का योगदान करीब 25 फीसदी है यानी सबसे ज्यादा बदलाव सितंबर में होने वाली बरसात में होगा। इसका असर उपज पर पड़ सकता है क्योंकि सितंबर में ज्यादातर फसलें पकती हैं। ज्यादा बरसात हुई या सूखा पड़ा तब दोनों ही स्थिति में फसलें प्रभावित होंगी।

क्या है रास्ता

प्रोफेसर घोष ने कहा कि हम समझते हैं कि नदी जोड़ परियोजना के कई फायदे हैं इसलिए हम इसे रोकने की बात नहीं कर रहे हैं बस हमारा सुझाव यह है कि परियोजना सिर्फ जमीन पर मौजूद पानी के आधार पर तैयार न की जाए और वैज्ञानिकों की मदद से परिस्थितिकी के विस्तृत अध्ययन के बाद ही इसे अमल में लाया जाना चाहिए।

किस आधार पर निकाला निष्कर्ष

वैज्ञानिकों ने देश की प्रमुख नदियों-घाटियों का विश्लेषण किया और पाया कि नदी बेसिन पहले ही भूमि वायुमंडल फीडबैक से जुड़े हुए हैं। जैसे ही पानी वाष्पित होता है बेसिन के भीतर बारिश होती है। वैज्ञानिकों ने पाया कि कुछ शुष्क क्षेत्रों में वर्षा में 12 फीसदी तक कमी आई है जबकि अन्य हिस्सों में बारिश 10 फीसदी तक बढ़ी है।

क्या है सरकार की योजना

15 हजार किलोमीटर लंबी नहरों के जरिए प्रमुख नदी घाटियों को जोड़ा जाएगा, जिसमें 3 हजार जलाशयों को भी शामिल किया जाएगा। इसके जरिए हर साल 174 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाया जाएगा जिससे सिंचित क्षेत्र में 30 मिलियन हेक्टेयर की वृद्धि होगी। इसकी मदद से 34 मिलियन किलोवाट जलविद्युत भी तैयार की जाएगी।

बढ़ रहा है जल संकट

भारत सरकार के केंद्रीय जल आयोग ने साल 2019 में अंतरिक्ष से मिली जानकारी के आधार पर देश में उपलब्ध पानी का मूल्यांकन किया था, जिससे पता चला कि पानी की उपलब्धता लगातार कम हो रही है। साल 2011 में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1545 क्यूबिक मीटर थी जो 2019 में 1400 क्यूबिक मीटर रह गई।

Created On :   28 Sept 2023 8:00 AM IST

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