बॉम्बे हाईकोर्ट: सिंहगढ़ कॉलेज के 11 असिस्टेंट प्रोफेसरों को राहत, बांद्रा रिक्लेमेशन की भूमि के व्यावसायिक विकास को चुनौती

सिंहगढ़ कॉलेज के 11 असिस्टेंट प्रोफेसरों को राहत, बांद्रा रिक्लेमेशन की भूमि के व्यावसायिक विकास को चुनौती
  • अदालत ने 3 सप्ताह में 11 असिस्टेंट प्रोफेसरों के अक्टूबर 2016 से बकाया पेमेंट की राशि का भुगतान करने का दिया निर्देश
  • भूमि के व्यावसायिक विकास से सीआरजेड के नियमों का उल्लंघन होने का आरोप
  • बॉम्बे हाई कोर्ट ने दुराचार की शिकार 17 वर्षीय पीड़िता को गर्भावस्था जारी रखने की दी इजाजत

डिजिटल डेस्क, मुंबई. बॉम्बे हाई कोर्ट से पुणे के सिंहगढ़ कॉलेज एवं इंस्टिट्यूट के 11 असिस्टेंट प्रोफेसरों को बड़ी राहत मिली है। अदालत ने कॉलेज प्रबंधन को निर्देश दिया कि वह उसके (प्रबंधन) द्वारा प्रस्तुत चार्ट के अनुसार आज से तीन सप्ताह की अवधि के भीतर याचिकाकर्ताओं (असिस्टेंट प्रोफेसर) के बकाया पेमेंट की राशि का भुगतान करे और उसकी रिपोर्ट 23 सितंबर को अगली सुनवाई के दौरान प्रस्तुत करे। न्यायमूर्ति नितिन जामदार और न्यायमूर्ति एम.एम.सथाये की पीठ के समक्ष 11 प्रोफेसर की ओर से वकील वैभव उगले की दायर याचिकाओं पर सुनवाई हुई। याचिका में याचिकाकर्ताओं के वेतन का भुगतान अक्टूबर 2016 से 18 फीसदी ब्याज के साथ करने और प्रत्येक महीने की 10 तारीख को वेतन का भुगतान का कॉलेज प्रबंधन को निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। कॉलेज प्रबंधन के वकील ने दलील दी कि वेतन भुगतान से संबंधित संपूर्ण विवाद को याचिकाकर्ताओं द्वारा शिकायत समिति के समक्ष उठाया जाना चाहिए और जहां तक भुगतान की जाने वाली राशि का सवाल है। प्रबंधन नवंबर 2024 तक राशि का भुगतान करेगा। इस पर पीठ ने कहा कि प्रबंधन को 2 से 8 लाख रुपए प्रति व्यक्ति को देना है। याचिकाएं दिसंबर 2021 और सितंबर 2022 में दायर की गई हैं। हमारा मानना है कि अब प्रबंधन को दो महीने की अवधि देना पूरी तरह से अनुचित है। पीठ ने कॉलेज प्रबंधन को कड़े शब्दों में कहा कि केवल यह कहना कि वित्तीय कठिनाइयां हैं, प्रबंधन अपने दायित्व से मुक्त नहीं हो सकता। खासकर तब जब याचिकाएं पिछले दो वर्षों से लंबित हैं। यदि यह राशि पहले ही दे दी गई होती, तो विवाद उत्पन्न ही नहीं होता। पीठ ने ऑर्डर पास किए जाने के दिन से तीन सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ताओं की बकाया पेमेंट की राशि का भुगतान कर उसकी रिपोर्ट 23 सितंबर को अगली सुनवाई के दौरान प्रस्तुत करे

बांद्रा रिक्लेमेशन की भूमि के व्यावसायिक विकास को हाई कोर्ट में चुनौती

उधर महाराष्ट्र राज्य सड़क विकास निगम(एमएसआरडीसी)द्वारा बांद्रा रिक्लेमेशन की भूमि को व्यावसायिक विकास के लिए दिए जाने को जनहित याचिका दायर कर बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दी गयी है। इस भूमि के विकास से सीआरजेड के नियमों का उल्लंघन होने का आरोप है। अदालत ने इस पर केंद्र और राज्य सरकार से हलफनामा दाखिल कर 6 सप्ताह में जवाब मांगा है। याचिका में अदालत से यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि एमएसआरडीसी द्वारा सीआरजेड के नियमों का पालन करते हुए बांद्रा रिक्लेमेशन की भूमि पर व्यावसायिक विकास को प्रतिबंधित करें और भूमि को ग्रीन लैंड के रूप में बहाल करें। मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति अमित बोरकर की पीठ के समक्ष पर्यावरण कार्यकर्ता जोर्न दरायन्स भथेना की ओर से वकील तुषार ककाल्या और वकील रोनिता भट्टाचार्य की दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। जनहित याचिका में दावा किया गया कि 1970 के दशक में बांद्रा रिक्लेमेशन की भूमि पहले बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स (बीकेसी) की भूमि का हिस्सा थी। जब 1990 के दशक में बांद्रा वर्ली सी लिंक की योजना बनाई गई, तो यह भूमि अलग हो गई। आज इसे बांद्रा रिक्लेमेशन के नाम से जाना जाता है। राज्य सरकार की इस भूमि को महाराष्ट्र राज्य सड़क विकास निगम(एमएसआरडीसी) को विकास कार्य के लिए सौंप दिया। एमएसआरडीसी का उस भूमि का व्यावसायिक विकास करने का प्रस्ताव दिया है। जबकि यह भूमि सीआरजेड के अंतर्गत आती है, उसे विकास की अनुमति नहीं दी जा सकती है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) द्वारा बांद्रा वर्ली सी-लिंक परियोजना के लिए जारी की गई पर्यावरण मंजूरी में लगाई गई शर्तों में से एक यह है कि इस भूमि का कोई भी हिस्सा व्यावसायिक आवासीय उद्देश्यों के लिए उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। पीठ ने केंद्र और राज्य सरकार को हलफनामा दाखिल कर 6 सप्ताह में जवाब देने का निर्देश दिया है।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने दुराचार की शिकार 17 वर्षीय पीड़िता को गर्भावस्था जारी रखने की दी इजाजत

इसके अलावा कोर्ट ने दुराचार की शिकार 17 वर्षीय पीड़िता को गर्भावस्था जारी रखने की इजाजत दे दी है। अदालत ने कहा कि हम उसकी (पीड़िता) बच्चे को जन्म देने की स्वतंत्रता और पसंद के अधिकार के प्रति सचेत हैं। 26 सप्ताह की गर्भवती पीड़िता ने पहले अदालत से गर्भपात की अनुमति की गुहार लगाई थी। न्यायमूर्ति अजय गडकरी और न्यायमूर्ति नीला गोखले की पीठ ने पीड़िता की याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि किशोरी ने शुरू में गर्भावस्था को समाप्त करने का अनुरोध किया था, लेकिन बाद में उसने अपने बच्चे को जन्म देने का फैसला किया। वह उस व्यक्ति से शादी करना चाहती थी, जिसने कथित तौर पर उसके साथ दुर्व्यवहार किया था। पीठ ने कहा कि अगर किशोरी चाहे, तो वह अपने 26 सप्ताह के गर्भ को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करा सकती है। अब उसने गर्भावस्था जारी रखने की अपनी इच्छा भी व्यक्त की है, इसलिए वह ऐसा करने की पूरी हकदार है। लड़की और उसकी मां को गर्भावस्था के बारे में तब पता चला, जब उसे बुखार की जांच के लिए ले गयी। मां ने 22 वर्षीय युवक के खिलाफ दुराचार की शिकायत दर्ज कराई। इसके बाद पीड़िता ने गर्भपात कराने के लिए हाईकोर्ट का रुख किया। बाद में पीड़िता ने दावा किया कि वह उस युवक के साथ "सहमति" से संबंध में थी। उनका इरादा उससे शादी करने और उसके बच्चे को पालना का है। नाबालिग की जांच सरकारी जेजे अस्पताल में एक मेडिकल बोर्ड ने की, जिसने हाईकोर्ट को एक रिपोर्ट सौंपी, जिसमें कहा गया कि भ्रूण में कोई असामान्यता नहीं है, लेकिन नाबालिग होने के कारण वह बच्चे को जन्म देने के लिए उचित मानसिक स्थिति में नहीं है। पीठ ने कहा कि पीड़िता और उसकी मां दोनों ने गर्भावस्था जारी रखने और इसे पूरी अवधि तक ले जाने की इच्छा जताई है


Created On :   5 Sept 2024 10:04 PM IST

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