परेशानी का सबब: सरकार की मंजूरी न मिलने से अटकी आरटीई के तहत दाखिले की प्रक्रिया, वंचित रह सकते बच्चे

सरकार की मंजूरी न मिलने से अटकी आरटीई के तहत दाखिले की प्रक्रिया, वंचित रह सकते बच्चे
  • चार गुना आवेदन फिर भी रहीं हजारों सीटें खाली
  • सरकार और निजी स्कूलों दोनों को फायदा इसलिए गरीब वंचित
  • जानिए - क्या है आरटीई के दाखिले

डिजिटल डेस्क, मुंबई, दुष्यंत मिश्र। शिक्षा का अधिकार (आरटीई) कानून के तहत आर्थिक रुप से कमजोर विद्यार्थियों के दाखिले की प्रक्रिया इस बार भी लेटलतीफी का शिकार होती दिख रही है। शिक्षा विभाग इस साल प्रक्रिया जल्द शुरू करना चाहता था जिससे सीटें खाली न रहें लेकिन दाखिला शुरू करने का प्रस्ताव सरकारी कार्यालय में अटका पड़ा है। नियमों के मुताबिक राज्य सरकार की मंजूरी के बिना शिक्षा विभाग आरटीई की 25 फीसदी सीटों पर दाखिले की प्रक्रिया शुरू नहीं कर सकता क्योंकि विद्यार्थियों की फीस केंद्र और राज्य सरकार मिलकर चुकाते हैं।

देरी के चलते दाखिले से वंचित रह सकते हैं हजारों विद्यार्थी

शिक्षा विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि आरटीई के दाखिले की प्रक्रिया शुरू करने के लिए राज्य सरकार के पास प्रस्ताव भेजा गया है। मंजूरी मिलते ही प्रक्रिया शुरू की जाएगी। शिक्षा विभाग चाहता था कि इस साल आरटीई के दाखिले की प्रक्रिया दिसंबर के आखिर में शुरू कर मई तक खत्म कर दी जाए। 2023-24 के लिए दाखिले 1 मार्च को शुरू हुए थे और अगस्त तक दाखिले की प्रक्रिया चली थी।

चार गुना आवेदन फिर भी रहीं हजारों सीटें खाली

शैक्षणिक सत्र 2023-24 के दौरान राज्य में आरटीई के तहत दाखिले के लिए 3 लाख 64 हजार 413 आवेदन आए थे जिनमें से 94700 सीटों के लिए लॉटरी के जरिए विद्यार्थियों का चुनाव किया गया और 81129 विद्यार्थियों को प्रतीक्षा सूची में रखा गया था लेकिन जब पांच दौर के बाद दाखिले की प्रक्रिया पूरी हुई तो 11821 सीटें खाली रह गई थी। यानी इतने गरीब परिवारों के बच्चे सरकारी खर्च पर अच्छे स्कूलों में पढ़ने से वंचित रह गए और परिवारों को आठवीं कक्षा तक अपने खर्च पर विद्यार्थियों को पढ़ाना होगा। बाल अधिकारी सुरक्षा आयोग ने भी शिक्षा विभाग से सीटें खाली रह जाने पर रिपोर्ट मांगी थी साथ ही आगामी शैक्षणिक सत्र के लिए प्रवेश प्रक्रिया से जुड़ी जानकारी भी देने को कहा था।

सरकार और निजी स्कूलों दोनों को फायदा इसलिए गरीब वंचित

एक्टिविस्ट नितीन दलवी ने कहा कि आरटीई के तहत दाखिला होने पर सरकार को आठवीं कक्षा तक विद्यार्थी की फीस भरनी पड़ती है। वहीं सीट खाली रह जाने पर निजी स्कूल उस पर दूसरे विद्यार्थियों को मोटी फीस पर दाखिला देते हैं जबकि सरकार निर्धारित फीस ही चुकाती है। ऐसे में आरटीई के तहत दाखिला न होने से स्कूलों को करोड़ो का फायदा होता है और सरकार के भी पैसे बचते हैं लेकिन इसका नुकसान आर्थिक रुप से कमजोर परिवारों को होता है। दलवी ने मांग की कि आरटीई के तहत दाखिले की प्रक्रिया जल्द शुरू कर मई तक पूरी कर दी जाए क्योंकि दाखिले में देरी से डरकर ही कई अभिभावक फीस भरकर अपने बच्चों का दाखिला करा देते हैं।

क्या है आरटीई के दाखिले

शिक्षा का अधिकार कानून के तहत निजी स्कूलों की 25 फीसदी सीटों पर आसपास रहने वाले आर्थिक रुप से कमजोर विद्यार्थियों को दाखिला दिया जाता है। इसके लिए आवेदन मंगाए जाते हैं और लॉटरी के जरिए विद्यार्थियों का चयन किया जाता है। फीस राज्य और केंद्र सरकार चुकाते हैं। हालांकि निजी स्कूलों का दावा है कि सरकार भुगतान नहीं कर रही है और पिछले पांच वर्षों में बकाया 1800 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है।


Created On :   14 Jan 2024 9:06 PM IST

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