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Mumbai News: मैं अपनी जिंदगी का पीछा अपने लेखन से करना चाहता हूं, शुक्ल को ज्ञानपीठ पुरस्कार

- विनोद कुमार शुक्ल को ज्ञानपीठ पुरस्कार
- अमेरिकन नाबोकॉव अवॉर्ड पाने वाले पहले एशियाई
- अपने बचे हुए लेखन को शायद लिख पाऊं
Mumbai News. साक्षी जायसवाल| साहित्य, कला और दर्शन के माध्यम से मानव अस्तित्व की जटिलताओं को सरल भाषा में अपनी कविताओं, उपन्यास और कहानियों के जरिये प्रस्तुत करते हैं विनोद कुमार शुक्ल। वे कहते हैं मैं अपनी जिंदगी का पीछा अपने लेखन से करना चाहता हूं, यह दर्शाता है कि कैसे उनके विचार, उनकी लेखनी के पूरक हैं। उनके लेखन की गहराई और मौलिकता के सम्मान के रूप में 59वां ज्ञानपीठ पुरस्कार उन्हें दिया जाएगा। पुरस्कार में 11 लाख रुपए, प्रशस्तिपत्र और वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा दी जाएगी। यह पहली बार है जब छत्तीसगढ़ से किसी साहित्यकार को ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। विनोद कुमार शुक्ल की लेखनी आम जीवन की संवेदनाओं को अनूठे ढंग से प्रस्तुत करती है। उनकी लेखन शैली बहुत सरल, सहज लेकिन गहरी और दार्शनिक है। वे रोजमर्रा के जीवन की छोटी-छोटी घटनाओं के माध्यम से बड़े प्रश्न उठाते हैं। उनकी रचनाओं में कल्पनाशीलता और यथार्थ का अद्भुत संतुलन देखने को मिलता है।
अमेरिकन नाबोकॉव अवॉर्ड पाने वाले पहले एशियाई
विनोद कुमार कविता और उपन्यास लेखन के लिए गजानन माधव मुक्तिबोध फेलोशिप, रजा पुरस्कार, भवानीप्रसाद मिश्र पुरस्कार, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान जैसे कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं। उन्हें उपन्यास ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ के लिए 1999 में ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार भी मिल चुका है। पिछले साल उन्हें पैन अमेरिका ने अंतरराष्ट्रीय ख्याति के लिए नाबोकॉव अवॉर्ड से सम्मानित किया था। एशिया में इस सम्मान को पाने वाले वे पहले साहित्यकार हैं।
अपने बचे हुए लेखन को शायद लिख पाऊं
विनोद कुमार कहते हैं, मैं अपनी जिंदगी का पीछा अपने लेखन से करना चाहता हूं। मैंने देखा-सुना और महसूस किया कि अभी कितना कुछ लिखना बाकी है। मैं दुविधा में हूं कि अपने बचे हुए लेखन को शायद लिख नहीं पाऊंगा।
यह पुरस्कार मेरे लिए एक जिम्मेदारी
ज्ञानपीठ पुरस्कार बहुत बड़ा है। मेरी जिंदगी में यह एक जिम्मेदारी का अहसास है। मन में बड़ी उथल-पुथल चल रही है। मैं इस जिम्मेदारी से बहुत प्रसन्न हूं।
ग्रामीण परिवेश में जन्म और शिक्षा
विनोद कुमार का जन्म 1 जनवरी 1937 को राजनादगांव, छत्तीसगढ़ में हुआ था। उनकी शिक्षा वहीं हुई और बाद में उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से एम.ए. (हिंदी) की पढ़ाई की। उनका शुरुआती जीवन एक साधारण ग्रामीण परिवेश में बीता, जिसने उनके लेखन को मानव जीवन को नजदीक से समझने की गहराई दी।
Created On :   23 March 2025 7:05 PM IST