पुणे पोर्श कार दुर्घटना: आरोपी की बुआ की याचिका पर फैसला सुरक्षित, नाबालिग को हिरासत में रखना क्या कैद के समान नहीं

आरोपी की बुआ की याचिका पर फैसला सुरक्षित, नाबालिग को हिरासत में रखना क्या कैद के समान नहीं
  • हाई कोर्ट पुलिस से मांगा जवाब
  • जमानत के बाद नाबालिग को हिरासत में रखना क्या कैद के समान नहीं
  • याचिका पर फैसला सुरक्षित

डिजिटल डेस्क, मुंबई. बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को पुणे पुलिस से पूछा कि पोर्श कार दुर्घटना के नाबालिग आरोपी को पहले जमानत देना और फिर उसे हिरासत में लेकर सुधार गृह में रखना क्या कैद के समान नहीं है? न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की पीठ ने पुलिस से यह भी पूछा कि किस कानूनी प्रावधान के तहत किशोर आरोपी को जमानत देने के आदेश में संशोधन किया गया। आरोपी की बुआ की ओर से दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि यह हादसा बहुत ही दर्दनाक था, जिसमें दो लोगों की जान चली गई। आरोपी किशोर भी गहरे सदमे में था। याचिका पर सुनवाई पूरी हो गई है। अदालत ने 25 जून तक फैसला सुरक्षित रख लिया है।

सरकारी वकील हितेन वेनेगांवकर ने बताया कि जुवेनाइल बोर्ड (किशोर न्याय बोर्ड) की ओर से 19 मई को जारी जमानत आदेश गलत था। नाबालिग आरोपी के रक्त के नमूनों के साथ छेड़छाड़ की गई थी। रक्त सैंपल की हेराफेरी में शामिल अधिकारियों और डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई की गई है। हमें समाज को एक कड़ा संदेश देना होगा। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील आबाद पोंडा ने कहा कि नाबालिग को हिरासत में रखना उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। आरोपी 25 जून तक निगरानी गृह में है।

क्या है पूरा मामला

19 मई की सुबह नाबालिग आरोपी कथित तौर पर नशे की हालत में तेज गति से पोर्श कार चला रहा था। उसकी कार ने पुणे के कल्याणी नगर में एक बाईक को टक्कर मार दी। हादसे में बाईक पर सवार दो सॉफ्टवेयर इंजीनियरों (अनीश अवधिया और अश्विनी कोष्टा) की मौत हो गई। बुआ ने याचिका में किशोर की तत्काल रिहाई का अनुरोध किया है।

Created On :   21 Jun 2024 3:06 PM GMT

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