बॉम्बे हाईकोर्ट: अवैध फेरीवालों का स्थायी समाधान निकलना जरूरी, नगर परिषद चुनावों में खरीद-फरोख्त की रणनीति पर भी लगी रोक

अवैध फेरीवालों का स्थायी समाधान निकलना जरूरी, नगर परिषद चुनावों में खरीद-फरोख्त की रणनीति पर भी लगी रोक
  • अदालत ने कहा-निर्दलीय उम्मीदवारों द्वारा चुनाव के बाद किए गए गठबंधन को चुनाव-पूर्व गठबंधन माना जाएगा
  • बॉम्बे हाई कोर्ट ने सतारा के पुलिस अधीक्षक को गोरे पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप को गंभीरता से लेने का दिया निर्देश
  • अवैध फेरीवालों का स्थायी समाधान निकलना जरूरी

डिजिटल डेस्क, मुंबई. बॉम्बे हाईकोर्ट ने नगर परिषद चुनावों में खरीद-फरोख्त की रणनीति पर रोक लगाते हुए कहा कि नगर परिषद चुनाव के बाद निर्दलीय उम्मीदवारों द्वारा चुनाव के बाद बनाए गए गठबंधन को चुनाव-पूर्व गठबंधन माना जाएगा। नगर परिषद के पूरे कार्यकाल तक ऐसे अघाड़ी के सदस्य के रूप में सभी बैठकों के लिए महाराष्ट्र स्थानीय प्राधिकरण सदस्यों की अयोग्यता अधिनियम 1986 के प्रावधान सभी उद्देश्यों के लिए लागू होंगे। न्यायमूर्ति नितिन जामदार, न्यायमूर्ति गिरीश कुलकर्णी, न्यायमूर्ति भारती डांगरे, न्यायमूर्ति मनीष पितले और न्यायमूर्ति अमित बोरकर की पांच सदस्यों की खंडपीठ के समक्ष सतारा निवासी कुमार गोरखनाथ शिंदे समेत 7 याचिकाकर्ताओं की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई हुई। खंडपीठ ने कहा कि यदि कोई ऐसा निर्वाचित स्वतंत्र पार्षद चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद किसी गठबंधन में शामिल होता है, तो ऐसे गठबंधन को चुनाव पूर्व गठबंधन माना जाएगा, जो विषय समितियों तक सीमित नहीं होगा। अघाड़ी का गठन परिषद में कामकाज चलाने के लिए किया जाता है। अंतिम उद्देश्य यह होना चाहिए कि परिषद का कामकाज कितनी कुशलता से हो। खंडपीठ ने इस बात पर जोर दिया कि चुनाव लोकतांत्रिक शासन का एक बुनियादी पहलु है। जैसा कि कई न्यायिक निर्णयों में उल्लेख किया गया है, भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के भीतर फ्लोर-क्रॉसिंग और दलबदल का मुद्दा एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है। धारा 63(2बी) के दूसरे प्रावधान की व्याख्या लोकतांत्रिक संस्थाओं के कामकाज में स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए की जानी चाहिए, न कि और अधिक अस्थिरता में योगदान देने के लिए। याचिका में दावा किया गया कि निर्दलीय उम्मीदवार परिषद की विभिन्न समितियों जैसे लोक निर्माण समिति, शिक्षा, खेल और सांस्कृतिक मामले, स्वच्छता, चिकित्सा और सार्वजनिक स्वास्थ्य समिति समेत विभिन्न समितियों में बेहतर प्रतिनिधित्व हासिल करने के लिए चुनाव के बाद गठबंधन करते हैं। वे समिति में रहते हुए किसी मुद्दे पर गठबंधन के पक्ष में मतदान कर सकते हैं, लेकिन जब वही मुद्दा स्थायी या सामान्य समिति के समक्ष आता है, तो वही पार्षद गठबंधन के व्हिप के विपरीत मतदान कर सकते हैं। तब ये पार्षद इस आधार पर अपने क्रॉस वोटिंग आदि का बचाव करते थे कि वे केवल विषय समिति के सीमित उद्देश्य के लिए गठबंधन का हिस्सा हैं। जनवरी 2017 में महाबलेश्वर नगर परिषद के कुछ निर्दलीय पार्षदों द्वारा दायर याचिकाओं पर विचार करते हुए न्यायमूर्ति रमेश सावंत की एकल-न्यायाधीश पीठ के बाद बड़ी पीठ का गठन किया गया था, जिन्हें चुनाव के बाद गठबंधन के विपरीत कार्य करने के लिए अयोग्यता अधिनियम की धारा 3 के तहत अयोग्य घोषित किया गया था।

भाजपा विधायक जयकुमार गोरे की बढ़ सकती हैं मुश्किलें

उधर दूसरे मामले में भाजपा विधायक जयकुमार गोरे की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। बॉम्बे हाई कोर्ट ने सतारा के पुलिस अधीक्षक को गोरे पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को गंभीरता से लेने का निर्देश दिया हैं। उन पर कोरोना काल में 200 से अधिक मृत मरीजों को जिंदा बताकर करोड़ों रुपए का घोटाला करने का आरोप है। न्यायमूर्ति रेवती मोहिते ढेरे और न्यायमूर्ति पृथ्वीराज चव्हाण की पीठ के समक्ष दीपक देशमुख की याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में जयकुमार गोरे और उनकी पत्नी सोनिया गोरे के खिलाफ कोरोना काल में मरीजों के इलाज के नाम पर करोड़ों रुपए के घोटाले की जांच का अनुरोध किया गया है। राज्य सरकार ने कोरोना मरीजों के इलाज के लिए सभी अस्पतालों और कोविड सेंटरों को दवाएं मुहैया कराया था। आरोप है कि कोरोना मरीजों से इलाज के नाम पर डॉक्टरों के फर्जी हस्ताक्षर और फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल कर राज्य और केंद्र सरकार की योजनाओं का दुरुपयोग करोड़ों रुपए ऐंठे गए। पीठ ने सतारा के पुलिस अधीक्षक को मामले को गंभीरता से लेने का निर्देश दिया है।

अवैध फेरीवालों का स्थायी समाधान निकलना जरूरी, अधिकारी नहीं कर सकते असहाय होने का दावा: हाई कोर्ट

शहर में अवैध फेरीवालों की समस्या पर हाई कोर्ट ने मुंबई महानगर पालिका (मनपा) और पुलिस को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने सवाल किया कि क्या इन फेरीवालों को मंत्रालय या राज्यपाल के आवास के बाहर दुकानें लगाने की अनुमति दी जाएगी। न्यायमूर्ति एम.एस. सोनका और न्यायमूर्ति कमल खाता की खंडपीठ ने कहा कि यदि अवैध फेरीवालों की समस्या बार-बार खड़ी होती है तो इसका स्थायी समाधान आवश्यक है। इसे हल करने में अधिकारी असहाय होने का बहाना नहीं कर सकते। इस पर रोक लगनी चाहिए। स्वत: संज्ञान याचिका (सुमोटो) पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने मनपा और पुलिस से सवाल किया कि आप क्या चाहते हैं कि आम नागरिक रोज कोर्ट में आकर बैठे। यह लोगों को परेशान करना है। मनपा और पुलिस नागरिकों की शिकायतों पर गौर नहीं करती, यह अराजकता है। ऐसे में सामान्य जन क्या करें। अदालत ने कहा कि सरकारी तंत्र पूरी तरह से ध्वस्त हो गया है। आप मंत्रालय और राज्यपाल आवास के बाहर अवैध फेरीवालों को बैठने देंगे क्या। यदि यह वहां बैठते हैं तो फिर देखें कैसे सब रुक जाता है।पीठ ने मनपा और पुलिस से पूछा कि क्या सेना को बुलाया जाए, क्योंकि पुलिस और मनपा प्रशासन अवैध फेरीवालों और विक्रेताओं को रोकने में असमर्थ हैं। हाई कोर्ट ने मनपा और पुलिस से हलफनामा दायर करने का कहा था। जिस पर पुलिस और मनपा के वकील अनिल सिंह और सरकारी वकील पूर्णिमा कंथारिया ने अतिरिक्त समय मांगा। इस पर पीठ ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि यह एक गंभीर मामला है और अगर अधिकारी अदालत के आदेशों का पालन नहीं कर सकते, तो अदालत को बंद कर दिया जाना चाहिए। अदालत ने कहा, रात 12 बजे तक काम करें और एक सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करें। इस मामले की अगली सुनवाई 30 जुलाई को होगी।

कोर्ट की टिप्पणी की महत्वपूर्ण मुद्दे

- अवैध फेरीवालों पर स्थाई समाधान निकालना आवश्यक, इस पर असहाय होने का अधिकारी नहीं कर सकते दावा

- राजभवन के सामने या मंत्रालय पर फेरीवाले को क्या बैठने देंगे, यदि वहां बैठ जाते हैं तो सब रुक जाएगी

- मनपा से कोर्ट का सवाल, अवैध फेरीवालों को रोकने के लिए क्या सेना को बुलाना पड़ेगा

- आदेश का पालन नहीं कर सकते तो बंद कर दें अदालत


Created On :   22 July 2024 4:52 PM GMT

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