फैसला: 13 वर्षीय छात्रा के साथ दुराचार, 7 साल से जेल में सजा काट रहे टीचर को कोर्ट ने किया बरी

13 वर्षीय छात्रा के साथ दुराचार, 7 साल से जेल में सजा काट रहे टीचर को कोर्ट ने किया बरी
  • अदालत ने ठाणे की विशेष पोक्सो अदालत के 10 साल के कारावास की सजा के फैसले को किया रद्द
  • नेरुल के एमजीएम स्कूल के अंग्रेजी टीचर राज उर्फ हरिशंकर शुक्ला पर था दुराचार का आरोप
  • दो डीएनए रिपोर्टों में टीचर भ्रूण का जैविक पिता नहीं था

डिजिटल डेस्क, मुंबई। नवी मुंबई स्थित नेरुल के एमजीएम स्कूल की 13 वर्षीय की छात्रा के साथ दुराचार के साल 2016 के चर्चित मामले में अंग्रेजी टीचर राज उर्फ हरिशंकर शुक्ला को बॉम्बे हाई कोर्ट ने सजा से बरी किया।अदालत ने उनके खिलाफ ठाणे की विशेष पोक्सो अदालत के 10 साल के कठोर कारावास की सजा के फैसले को रद्द कर दिया। अदालत ने माना कि पीड़िता के बयान में विसंगतियां थी। टीचर के दो डीएनए रिपोर्टों में पाया गया कि याचिकाकर्ता टीचर भ्रूण का जैविक पिता नहीं था।

न्यायमूर्ति सारंग कोतवाल की एकलपीठ के समक्ष नवी मुंबई के नेरुल स्थित महात्मा गांधी मिशन (एमजीएम) स्कूल के अंग्रेजी के टीचर राज उर्फ हरिशंकर शुक्ला की ओर से वकील सिद्धि विद्या की ठाणे सेशन कोर्ट की विशेष अदालत के 10 साल की सजा को चुनौती देने के लिए दायर याचिका पर सुनवाई हुई। पीठ ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष अपने मामले को संदेह से परे साबित करने में विफल रहा है। इस मामले में संदेह का लाभ याचिकाकर्ता को मिलना चाहिए। उसकी अपील स्वीकार की जाती है। यदि वह अपनी उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए 30 हजार रुपए की राशि का बांड भरता है, तो उसे तत्काल रिहा कर दिया जाएगा।

पीठ ने पाक्सो अधिनियम के तहत ठाणे के विशेष न्यायाधीश द्वारा पारित 9 जुलाई 2019 के आदेश को रद्द कर दिया किया, जिसमें टीचर शुक्ला को दोषी ठहराया गया था और 10 साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी। एमजीएम स्कूल की सातवीं क्लास की छात्रा की शिकायत पर नवी मुंबई के नेरुल पुलिस स्टेशन में टीचर हरिशंकर शुक्ला के खिलाफ दुराचार समेत पोक्सो के विभिन्न धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी।

पीठ ने टीचर को सभी आरोपों से बरी करते हुए कहा कि मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर पाया गया कि वह 29 सितंबर 2016 को 8 सप्ताह का गर्भवती हैं। जबकि पीड़िता ने अपने बयानों में कहा कि उन्हें सोनोग्राफी परीक्षण के बाद बताया गया था कि वह चार सप्ताह से गर्भवती हैं। पीड़िता ने यह भी कहा कि 3 सितंबर 2016 के बाद उसे मासिक धर्म नहीं हुआ और इसलिए यह असंभव था कि अगस्त 2016 की घटना के कारण वह गर्भवती हुई हो। इन परिस्थितियों को भी ध्यान में रखा जा सकता है, खासकर तब जब पीड़िता का बयान उचित संदेह से मुक्त न हो।

पीठ ने कहा कि पीड़िता की क्लास-टीचर ने बयान में कहा है कि उसने पीड़िता को किताब लाने के लिए भेजा था, जिसके बाद वह 2-3 मिनट के भीतर वापस आ गई थी। इसलिए यह असंभव है कि पीड़िता के साथ दुराचार उस कम समय के भीतर तीसरी मंजिल पर शौचालय में हो सकता था। उस समय पर भी पीड़िता ने कोई शोर नहीं मचाया। उसी मंजिल पर एक और क्लास थी और इसलिए वह उन कक्षाओं के छात्रों और क्लास-टीचरों से मदद मांग सकती थी। उसने फिर से अपने माता-पिता समेत किसी और से इस बारे में शिकायत नहीं की, जब तक कि उसकी गर्भावस्था का पता नहीं चला। ये सभी परिस्थितियां दर्शाती हैं कि पीड़िता का बयान बेहद संदिग्ध है। डीएनए रिपोर्ट का संदर्भ दिया जा सकता है।

दो डीएनए रिपोर्ट में टीचर के छात्रा के भ्रूण का जैविक पिता होने की नहीं हुई पुष्टि : टीचर के दो डीएनए रिपोर्टों ने निर्णायक रूप से पाया गया कि याचिकाकर्ता टीचर भ्रूण का जैविक पिता नहीं था। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि गर्भावस्था के कारण में कोई और शामिल था। पीड़िता ने इस मामले में शामिल किसी अन्य व्यक्ति का नाम नहीं बताया है। उसकी उम्र को देखते हुए यह तथ्य भी समझ में आता है, लेकिन इसका मतलब यह होगा कि वह किसी को बचा रही होगी। इसलिए याचिकाकर्ता को अत्यंत सावधानी से देखा जाना चाहिए। बचाव पक्ष ने भी अभियोजन पक्ष के मामले पर ही गंभीर संदेह जताया। याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि यदि ऐसी चौंकाने वाली घटनाएं हुई होतीं, तो उसके लिए तारीखें याद रखना मुश्किल नहीं होता। उसने दलील दी कि ऐसा कोई तरीका नहीं था, जिससे याचिकाकर्ता को पता चल सकता था कि पीड़िता को उसकी क्लास-टीचर द्वारा उसकी किताब लाने के लिए भेजा गया था। ठीक उसी समय वह दुराचार करने के लिए शौचालय में घुस गया था। यह पूरी कहानी अत्यधिक असंभव प्रतीत होती है।

सरकारी वकील ने याचिकाकर्ता द्वारा पीड़िता के नहीं बताने के लिए धमकी देने की दी दलील : सरकारी वकील ने इन दलीलों का विरोध किया। उन्होंने दलील दी कि पीड़िता की कम उम्र को देखते हुए, यह असामान्य नहीं था कि उसने इन घटनाओं के बारे में किसी और को नहीं बताया, खासकर इस तथ्य के मद्देनजर कि याचिकाकर्ता ने उसे धमकाया था। हालांकि ये घटनाएं स्कूल में हुई थीं, लेकिन दोनों ही मौकों पर ऐसा तब हुआ, जब अन्य छात्र मौजूद नहीं थे। इस अवसर पर छात्र पीटी क्लास में भाग लेने गए थे और दूसरी बार घटना शौचालय में हुई थी। इसलिए कोई भी घटना नहीं देख सकता था। पीड़िता पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं है। उसके पास याचिकाकर्ता को गलत तरीके से फंसाने का कोई कारण नहीं था। अन्य छात्रों और नृत्य शिक्षक के बयान हैं, जो दिखाते हैं कि याचिकाकर्ता का व्यवहार अनुचित था।

पीठ ने पीड़िता के बयान में पाई विसंगतियां : पीड़िता ने यह बयान दिया था कि टीचर ने अंदर से दरवाज़ा बंद करने के लिए एक बड़े पत्थर का इस्तेमाल किया था। फिर से इस सिद्धांत का समर्थन करने के लिए कुछ भी नहीं है। यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि कैसे एक बड़ा पत्थर क्लास के अंदर आया, जिसने टीचर को दरवाजा बंद करने में मदद की, ताकि कोई भी क्लास में प्रवेश न कर सके। याचिकाकर्ता यह नहीं जानता था कि शौचालय से वापस आते समय पीड़िता कितने समय में क्लास में प्रवेश करेगी। यह विश्वास करना बहुत कठिन है कि याचिकाकर्ता ने स्कूल की क्लास में उस कृत्य को करने का साहस किया होगा, जब स्कूल पूरी तरह से चालू था और छात्र स्कूल परिसर के अंदर मौजूद थे।

Created On :   27 July 2024 2:29 PM GMT

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