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सर्वेक्षण: सोशल मीडिया की लत - 41 प्रतिशत पालक अगली पीढ़ी के भविष्य को लेकर हैं चिंतित
- 9 से 17 साल के ज्यादातर बच्चों को लगी सोशल मीडिया की लत, रोजाना 3 से 6 घंटे बिता रहे मोबाइल पर
- 64% अभिभावक चाहते हैं डेटा प्रोटेक्शन कानून बने
डिजिटल डेस्क, मुंबई, मोफीद खान। कर्नाटक हाई कोर्ट ने हाल ही में टिप्पणी की थी कि स्कूली विद्यार्थियों के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल प्रतिबंधित कर दिया जाए तो देश के लिए अच्छा होगा। गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) लोकल सर्कल्स के सर्वेक्षण में चौंकानेवाला खुलासा हुआ है। महाराष्ट्र के 41 फीसदी शहरी अभिभावकों ने माना है कि 9 से 17 साल के उनके बच्चों को सोशल मीडिया की लत लग गई है। पढ़ाई-लिखाई या भविष्य की चिंता छोड़ वे रोजाना 3 से 6 घंटे सोशल मीडिया, ओवर द टॉप (ओटीटी) प्लेटफॉर्म या ऑनलाइन गेम में बिता रहे हैं। सर्वेक्षण के नतीजों में अभिभावक भावी पीढ़ी को लेकर चिंतित दिखाई दिए। सर्वे में प्रदेश के 9,015 लोगों की राय ली गई है। प्रतिभागियों से चार सवाल पूछे गए थे। अधिकांश अभिभावक चाहते हैं कि डाटा संरक्षण कानून बनना चाहिए और 18 साल से कम उम्र के बच्चों के सोशल मीडिया इस्तेमाल पर कड़ी शर्तें लगानी चाहिए।
6 घंटे से ज्यादा समय खर्चने वाले बच्चे कम नहीं
सर्वे में शामिल 41 प्रतिशत अभिभावकों (2201) ने माना कि उनके बच्चे सोशल मीडिया, वीडियो/ओटीटी और ऑनलाइन गेम खेलने पर 3 से 6 घंटे बिताते हैं। 42 फीसदी ने बताया कि उनके बच्चे 1 से 3 घंटे तक देते हैं। 17 प्रतिशत ने बताया कि उक्त आयु वर्ग के उनके बच्चे 6 घंटे से ज्यादा समय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर खर्च रहे हैं।
पबजी, नेटफ्लिक्स, व्हाट्सएप के आदी
अभिभावकों से यह जानने की कोशिश की गई कि उनके बच्चे किस प्लेटफॉर्म के ज्यादा आदी हैं। 2313 अभिभावकों ने इसका जवाब दिया। इनमें से 42 प्रतिशत ने बताया कि वीडियो-ओटीटी में उनके बच्चे नेटफ्लिक्स, यूट्यूब, हॉटस्टार के आदी हैं जबकि 40 फीसदी पालकों ने माना कि ऑनलाइन गेमिंग में उनके बच्चे पबजी, फीफा, फैंटेसी स्पोर्ट्स के आदि हैं।
अवसाद के शिकार हो रहे बच्चे
सर्वेक्षण में यह बात भी सामने आई कि सोशल मीडिया, ओटीटी का असर बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। 24 फीसदी अभिभावकों ने बताया कि उनके बच्चे अवसाद के शिकार हुए हैं जबकि 42 फीसदी ने बताया कि उनके बच्चे आक्रामक व्यवहार करते हैं। वहीं 11 फीसदी ने बताया कि सोशल मीडिया की वजह से उनके बच्चे खुश रहते हैं।
अभिभावकों की अनुमति अनिवार्य
सर्वेक्षण में शामिल 64 प्रतिशत शहरी माता-पिता चाहते हैं कि डेटा संरक्षण कानून बनना चाहिए। इसमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि 18 साल से कम उम्र के बच्चे माता-पिता की अनुमति के बिना सोशल मीडिया का इस्तेमाल न करें।
लोकल सर्किल्स के फाउंडर सचिन टपारिया ने बताया कि सर्वेक्षण के नतीजे सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के साथ-साथ सभी प्रमुख हितधारकों के साथ साझा करेंगे ताकि अभिभावकों की परेशानी और इस गंभीर समस्या को समझते हुए भारत में बच्चों के लिए स्वस्थ और सुरक्षित इंटरनेट पहुंच सुनिश्चित करने की दिशा में आगे बढ़ा जा सके।
Created On :   23 Sept 2023 5:00 AM IST