Chandrapur News: नक्शा नहीं मंजूर फिर भी एमपीसीबी ने दिया कन्सेंट टू ऑपरेट का सर्टिफिकेट

नक्शा नहीं मंजूर फिर भी एमपीसीबी ने दिया कन्सेंट टू ऑपरेट का सर्टिफिकेट
  • अकृषक लेआउट का फाइनल डी-मार्केशन मंजूर नक्शा नहीं
  • कार्यप्रणाली पर तरह-तरह के सवाल उठ रहे
  • स्वास्थ्य व जनजीवन पर विपरीत असर

Chandrapur News घुग्घुस के समीप म्हातारेदवी-बेलसनी परिसर में स्थित महामाया कोल वॉशरी (पुरानी भाटिया कोल वॉशरी) के नए-नए झोल सामने आ रहे हैं। अस्थायी अकृषक जमीन के आदेश पर अंतिम डी-मार्केशन का नक्शा मंजूर न होते हुए भी एमपीसीबी ने उसे कन्सेंट टू ऑपरेट की परमिशन दे दी, जिससे तरह-तरह के सवाल उठ रहे हैं। वर्ष 2003-04 और सन 2010 में चंद्रपुर के उपविभागीय अधिकारी ने दी थी असाधारण अनुमति? ऐसा सवाल अब उपस्थित हो गया है।

12 साल से पूर्णता बंद वॉशरी को बिना किसी लीगल कागजात की जांच पड़़ताल किए बगैर एमपीसीबी के अधिकारियों ने अपने अधिकार का दुरुपयोग कर सर्टिफिकेट देने की बात कही जा रही है। एमपीसीबी के मुख्य द्वार पर सूचना लिखी है कि, पहले ग्राउंड वॉटर बोर्ड की एनओसी, उसके बाद कन्सेंट टू ऑपरेट सर्टिफिकेट के लिए अप्लाय करो, यह नियम एमपीसीबी ने खुद बनाया है। महामाया के पास किसी भी तरह की ग्राउंड वॉटर लेने की परमिशन, नो-ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट न होते हुए भी एमपीसीबी किस आधार पर कन्सेंट टू ऑपरेट को रिन्यूअल कर रही थी। रिन्यूअल करते समय नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट की मांग की या नहीं? नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट महामाया के पास न रहते हुए भी एमपीसीबी द्वारा कन्सेंट ऑपरेट की अनुमति देना कानूनन गलत है। इससे साफ पता चलता है कि एमपीसीबी बिना किसी पुख्ता जानकारी के सिर्फ अपने व्यक्तिगत स्वार्थ को पूर्ण करने के लिए आर्थिक सांठगांठ के चलते गैर जिम्मेदाराना रवैया अपनाने वाले और पर्यावरण के साथ खिलवाड़ करने वाले उद्योगों को सहयोग कर रही है, जो पूर्णतः स्पष्ट दिख रहा है।

महामाया कोल वॉशरी (पूर्व की भाटिया वॉशरी) के लिए चंद्रपुर के उपविभागीय अधिकारी व तहसीलदार के माध्यम से 2003, 2004 और 2010 में औद्योगिक उपयोग करने हेतु नॉन एग्रीकल्चर लैंड को परिवर्तित किया गया, लेकिन नियमानुसार राजस्व विभाग एनएटीपी का अस्थायी आदेश होने के बाद फाइनल डीमार्केटेड नक्शा मंजूर कराना अनिवार्य है। उसके लिए महामाया को अस्थायी स्वरूप में मंजूर परमिशन व मंजूर नक्शे के अनुसार फिर राजस्व विभाग से उनके दर्शाये नक्शे के अनुसार अपनी औद्योगिक उपयोग की जमीन का नापजोख करना अनिवार्य था। इसी आधार पर उनका फाइनल डीमार्केशन नक्शा मंजूर हो सकता था और यही नियम है कि उन्होंने फाइनल डी-मार्केशन करना चाहिए। अपने फायदे के लिए एमपीसीबी चंद्रपुर कन्सेंट टू ऑपरेट घर बैठे उद्योगपतियों को दे रही है।

महामाया की केस में बड़ी आर्थिक सांठगांठ होने की वजह से एमपीसीबी के अधिकारियों को अपने कर्तव्य का निर्वहन करते समय कागजी कार्यवाही की पूर्ति करनी चाहिए थी, लेकिन मोहमाया के चक्कर में वे अपने कर्तव्य को भूल गए। एमपीसीबी के अधिकारी महाराष्ट्र नागरिक सेवा व निर्मूलन कानून के अनुरूप कार्य न करते हुए आधे अधूरे कागजात की पूर्तता होने पर भी आर्थिक लाभ लेकर कंसेन्ट टू ऑपरेट सर्टिफिकेट खुलेआम बांट रहे हैं। जिस कारण आसपास के नागरिकों के स्वास्थ व जनजीवन के ऊपर विपरीत असर हो रहा है।

एमपीसीबी का कार्य जीरो :चंद्रपुर जिले में महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण मंडल का कार्य जीरो है। गाइड-लाइन के अनुरूप आज तक पर्यावरण संरक्षण के लिए कोई ठोस काम महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने नहीं किया है। पूरा औद्योगिक बेल्ट वरोरा से लेकर तो राजुरा, गडचांदुर बीमारियों से त्रस्त है। नागरिक, पशुपक्षी भी इसकी चपेट में हैं लेकिन इन्होंने अपना धंधा खोल रखा है। एमपीसीबी के अधिकारी दो, तीन साल नौकरी करना है, शिकायत होगी तो ट्रान्सफर हो जाएगी, इस भावना के साथ रहते हुए दो से तीन साल में अपने पद का दुरुपयोग कर जितना आर्थिक लाभ कमाना होता है, कमा लेते हैं। चंद्रपुर जिले को प्रदूषण देकर वे दूसरे जिले में ट्रान्सफर करके चले जाते हैं। यह एक निंदनीय कार्य है, इसके लिए चंद्रपुर के प्रादेशिक अधिकारी तानाजी यादव उतने ही जिम्मेदार हैं। इस वजह से उनके खिलाफ तुरंत एक्शन लेना चाहिए, ऐसा शिकायतकर्ता का कहना है।

Created On :   26 Oct 2024 11:58 AM GMT

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