महाकौशल से चुनावी शंखनाद के क्या मायने? जानिए वो पांच कारण जो बीजेपी को बना रहे हैं कमजोर और कांग्रेस को दे रहे हैं मजबूती?
- महाकौशल बना एमपी की सियासत का हॉटस्पॉट
- क्यों बीजेपी और कांग्रेस के निशाने पर महाकौशल क्षेत्र?
डिजिटिल डेस्क, नई दिल्ली। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बीते शनिवार को राज्य के जबलपुर से 'मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना' की शुरुआत की थी। आज (सोमवार) कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी ने भी जबलपुर से ही एमपी विधानसभा चुनाव का शंखनाद किया। प्रदेश में साल के अंत तक विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में जबलपुर प्रदेश की सियासत का हॉटस्पॉट बना हुआ है। चुनावी लिहाज से इस क्षेत्र का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है, क्योंकि जबलपुर महाकौशल क्षेत्र के अंतर्गत आता है। महाकौशल क्षेत्र मध्य प्रदेश की राजनीति में महत्वपूर्ण योगदान रखता है। पिछले विधानसभा चुनाव में यहां पर बीजेपी की स्थिति बेहद खराब रही थी। साथ ही हाल ही में हुए नगरीय निकाय चुनाव में भी बीजेपी यहां पर कुछ खास कमाल नहीं कर पाई है। कांग्रेस पार्टी इसी का फायदा उठाना चाह रही है। आइए समझते है कि महाकौशल क्षेत्र बीजेपी और कांग्रेस के लिए क्यों जरूरी है? और क्यों यह क्षेत्र प्रदेश की राजनीति का एपीसेंटर बना हुआ है?
मध्य प्रदेश मुख्य तौर पर छह क्षेत्रों में बंटा हुआ हैं, जिनमें ग्वालियर-चंबल, मध्य भारत, महाकौशल, निमाड़-मालवा, विंध्य और बुंदेलखंड हैं। महाकौशल या जबलपुर संभाग में जबलपुर, कटनी, सिवनी, नरसिंहपुर, बालाघाट, मंडला, डिंडोरी और छिंदवाड़ा सहित आठ जिले आते हैं। महाकौशल में आदिवासी मतदाताओं का एक बड़ा तबका निवास करता है। जो कि कांग्रेस के कोर वोटर माने जाते हैं। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने यहां बीजेपी को मात दी थी। कांग्रेस के दिग्गज नेता व पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का छिंदवाड़ा जिला भी महाकौशल क्षेत्र के अंतर्गत आता है।
महाकौशल क्षेत्र 2018 विधानसभा चुनाव
महाकौशल क्षेत्र में विधानसभा की 38 सीटें आती है। 2018 के विधानसभा चुनाव में महाकौशल इलाके से कांग्रेस 38 सीटों में से 24 पर जीत हासिल करने में कामयाब रही, वहीं बीजेपी को यहां पर महज 13 सीटों के साथ संतोष करना पड़ा। इसके अलावा एक सीट पर कांग्रेसी विचारधारा वाले निर्दलीय विधायक ने जीत हासिल की थी। उस समय महाकौशल क्षेत्र में बीजेपी की करारी हार के पीछे पार्टी के खिलाफ आदिवासियों की नाराजगी को बड़ी वजह मानी गईं थी। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने कमलनाथ को सीएम फेस बनाया था। इसका फायदा कांग्रेस को मिला। छिंदवाड़ा जो कि कमलनाथ का गढ़ है। छिंदवाड़ा की सातों सीटों पर कांग्रेस ने पिछले चुनाव में जीत हासिल की थी। हालांकि 2013 के एमपी चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन महाकौशल क्षेत्र में बेहतर रहा था। उस समय बीजेपी को यहां पर 24 और कांग्रेस को 13 सीटों पर जीत मिली थीं।
निकाय चुनाव में भाजपा को मिली हार
पिछले साल राज्य में नगरीय निकाय चुनाव हुए थे। तब महाकौशल के नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा का परिणाम उत्साह जनक नहीं रहा। यहां जबलपुर और छिंदवाड़ा महापौर का चुनाव भाजपा हार गई। कमलनाथ के गढ़ में 18 साल बाद महापौर का चुनाव हार गई। जबलपुर में 22 साल बाद भाजपा हारी। कटनी में भी निर्दलीय प्रत्याशी प्रीति सूरी चुनाव जीती थीं। हालांकि बाद में वह भाजपा में शामिल हो गई। ऐसे में देखे तो कांग्रेस बीजेपी के नगरीय निकाय चुनाव के प्रदर्शन का भी फायदा उठा सकती है।
महाकौशल से कांग्रेस ने दो को मंत्री बनाया
कांग्रेस ने 2018 में चुनाव जीतने के बाद महाकौशल से दो विधायकों को मंत्री बनाया था। इसमें तरुण भनौत और लखन घनघोरिया को मंत्री बनाया गया था। वहीं, शिवराज सिंह चौहान ने अपने मंत्री परिषद में महाकौशल से किसी को भी मंत्री नहीं बनाया है। इस वजह से भी इस क्षेत्र के बीजेपी नेता और कार्यकर्ताओं में पार्टी के खिलाफ नाराजगी है। इन सभी चीजों का फायदा कांग्रेस उठाना चाहती है।
महाकौशल ( 38 सीट) पर कौन-सी पार्टी किस स्थिति में
- जबलपुर (8 सीट)- जबलपुर कैंट, जबलपुर पश्चिम, जबलपुर पूर्व, जबलपुर उत्तर, पाटन, बरगी, पनागर, सीहोरा आते हैं। इसमें बीजेपी और कांग्रेस के पास चार-चार सीट हैं।
- छिंदवाड़ा (7 सीट)- अमरवाड़ा, चौरई, परासिया, पांढुर्णा, सौंसर, जुनारदेव, छिंदवाड़ा है। इन सभी सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है।
- डिंडौरी (2 सीट)- डिंडौरी, शाहपुरा है। ये दोनों सीट कांग्रेस के पास है।
- बालाघाट (6 सीट)- बारासिवनी, कटंगी, छह सीट बैहर, बालाघाट, परसवाड़ा, लांजी, है। इनमें से पांच सीटें कांग्रेस और बारासिवनी निर्दलीय विधायक ने जीत दर्ज की।
- कटनी (4 सीट)- बड़वारा, विजयराघवगढ़, मुड़वारा, बहोरीबंद है। इसमें तीन सीटें बीजेपी के पास और एक सीट पर कांग्रेस का कब्जा है।
- नरसिंहपुर (4 सीट)- तेंदूखेड़ा, गाडरवाड़ा, गोटेगांव, नरसिंहपुर है। यहां कांग्रेस के पास 3 और भाजपा के पास 1 सीट है।
- सिवनी (4 सीट)- बरघाट, केवलारी, लखनादौन, सिवनी है। यहां बीजेपी और कांग्रेस के पास दो-दो सीटें हैं।
- मंडला (3 सीट)- निवास, मंडला, बिछिया है। यहां कांग्रेस के पास 2 और भाजपा के पास 1 सीट है।
समझें सियासत
गौरतलब है कि, पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने महाकौशल क्षेत्र में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 13 में से 11 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं बीजेपी को केवल एक सीट के साथ संतोष करना पड़ा था। जबलपुर की सियासत से यहां के आस पास के कई जिलों पर असर पड़ता है। इस लिहाज से भी प्रिंयका गांधी और सीएम शिवराज का जबलपुर दौरा काफी खास माना जा रहा है। बीजेपी की कमजोरी और कांग्रेस की मजबूरी इन पांच कारणों से जाहिर होती है:
- 2018 के चुनाव में बीजेपी को मिली कम सीटें
- अंचल के नेताओं को सत्ता में कम वेटेज मिलना
- अजय विश्नोई जैसे वरिष्ठ नेताओं का खुलकर नाराजगी जताना
- निकाय चुनाव में भी महापौर पद की 3 सीटें हारना
- कार्यकर्ता और प्रभारियों में तालमेल की कमी
2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने यहां भाजपा को पटखनी दी थी। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने यहां अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 13 में से 11 सीटों पर जीत हासिल की थी। इस दौरान भाजपा को सिर्फ 2 सीटों से संतोष करना पड़ा था। महाकौशल क्षेत्र का जबलपुर सबसे बड़ा शहर है। यहां से आस पास के कई जिलों पर असर पड़ता है। इस लिहाज से प्रियंका गांधी का जबलपुर दौरा काफी खास माना जा रहा है। प्रियंका गांधी के इस दौरे से जबलपुर संभाग के 8 जिलों पर प्रभाव पड़ने की उम्मीद है।
Created On :   12 Jun 2023 7:24 PM IST