बदलती सियासी रणनीति: राहुल गांधी के नेतृत्व में बसपा की बहुजन विचारधारा पर चलने का रास्ता अपना रही है कांग्रेस

राहुल गांधी के नेतृत्व में बसपा की बहुजन विचारधारा पर चलने का रास्ता अपना रही है कांग्रेस
  • वंचित और पीड़ितों को जिम्मेदारी व भागीदारी मिलने तक न्याय अधूरा- राहुल गांधी
  • कांग्रेस ने चलाया संविधान लीडरशिप प्रोग्राम
  • जनाधार बढ़ाने में जुटी बसपा

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कांग्रेस नेता राहुल गांधी इन दिनों एससी, एसटी और ओबीसी वोटर्स पर अधिक फोकस कर रहे है। गांधी वंचितों के लिए न्याय की मांग कर रहे है। गांधी का कहना है कि जब तक वंचित और पीड़ित को जिम्मेदारी और भागीदारी नहीं मिल जाती तब न्याय अधूरा है। अन्य पिछड़े वर्ग की संख्या को लेकर वह जाति जनगणना की मांग जोर शोर से कर रहे है। कई मौकों पर गांधी कह चुके है कि जिसकी जितनी संख्या उसकी उतनी भागीदारी। बसपा संस्थापक कांशीराम सोए हुए समाज को जगाते हुए कहते थे कि बीजेपी और कांग्रेस वाले ये लोग बहुजन को पद ,प्रतिष्ठा और सम्मान तो दे सकते है लेकिन ये लोग आपको पॉवर नहीं दे सकते। बसपा संस्थापक पॉवर और स्वाभिमान की बात करते थे। आपको बता दें बीएसपी ने अपनी शुरुआत बहुजन हिताय बहुजन सुखाय से की, बाद में धीरे धीरे पार्टी ने अपनी विचार बदली और वह बहुजन हिताय से सर्वजन हो गई। बहुजन से सर्वजन होने के दौरान बीएसपी ने कई जातिगत आरोप झेले। हालांकि बहुजन हिताय के दौरान बीएसपी ने जिन ओबीसी नेताओं की कतार खड़ी की, सर्वजन विचारधारा में ऐसे नेताओं की जमात गुम हो गई। पद प्रतिष्ठा पॉवर मिलने के बाद ओबीसी नेताओं ने अन्य दूसरे दलों का दामन थाम लिया।

आपको बता दें बहुजन विचारधारा वाली बीएसपी सक्सेस के जिस रास्ते पर थी, कांग्रेस वहीं डगमगा रही थी। एक की सफलता का ग्राफ चढ़ रहा तो दूसरी का गिर रहा था। जिस ओबीसी समाज को बीएसपी ने सत्ता का स्वाद चखाया शुरु किया ही था। कि चंद ओबीसी नेता ने पद प्रतिष्ठा में ओबीसी समुदाय की राजनीति शक्ति को सामाजिक एकता की शक्ति से सियासी पॉवर में परिवर्तन नहीं होने दिया। आज कर्नाटक में कांग्रेस सरकार संख्या बल पर ओबीसी को 50 फीसदी से अधिक आरक्षण देने से संबंधि जनसंख्या सामाजिक -आर्थिक सर्वेक्षण की बात कर रही है। क्या वह किसी सामाजिक प्रगति केलिए किया जा रहा है या सरकार में बने रहने के लिए ओबीसी वोट बैंक को समेटने के लिए एक सियासी चाल। मध्यप्रदेश में दो दशक से ओबीसी समुदाय का सीएम है क्या वहां ओबीसी को इतना आरक्षण है ? बहुजन विचार धारा से शुरु हुई बसपा ने ओबीसी नेताओं की जो जमात बनाई क्या वह बीएसपी के जनाधार का हिस्सा है? कांशीराम के बाद की भारतीय राजनीति के परिदृश्य पर नजर डालें तो पता चलता है आज के अधिकतर प्रचलित प्रसिद्ध ओबीसी नेता बसपा से आए हुए है।

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष व लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने वंचित पिछड़े, अति पिछड़े को जोड़ने के लिए संविधान लीडरशिप प्रोग्राम चला रहे है। वक्त है एकजुट होकर मजबूती से आवाज़ उठाने की। बसपा के आने से कांग्रेस से अलग हुए या छिंटक गए इन समुदायों के वोटों को लाकर राहुल गांधी कांग्रेस को मजबूत करना चाहते है। अगर ऐसा होता है तो हाल ही के वर्षों के चुनावों में अपना जनाधार खोई बसपा हमेशा के लिए खो जाएगी। क्योंकि बसपा के मूल वोट बैंक पर कांग्रेस और बीजेपी दोनों की नजर है। कांग्रेस और बीजेपी की चुनावी रणनीतियों से पिछले चुनावों में बीएसपी का मूल वोट पार्टी से दूर हुआ है। 2007 को छोड़ दिया जाए तो बीएसपी की अपनी रणनीति सफल नहीं हो रही है। बहुजन विचारधारा से शुरू हुई बीएसपी दलित -ब्राह्मण, दलित -यादव, दलित मुस्लिम कार्ड खेल चुकी है, लेकिन उसे उतनी अधिक सफलता नहीं मिली जितनी मिलनी चाहिए थी। दलित ब्राह्णण फॉर्मूला बाद के चुनाव में असफल रहा। सपा के साथ गठबंधन कर बीएसपी को भले ही कुछ लाभ हुआ लेकिन वह इस तरह का फायदा नहीं हुआ जैसा उसने सोचा था। दलित मुस्लिम फॉर्मूला एक बड़ी सफलता दिला सकता था, लेकिन मुस्लिम मतदाताओं ने हाथी की सवारी करने से किनारा से किया। अब बीएसपी मजबूती के लिए पार्टी के जनाधार की ओर फोकस कर रही है। कांग्रेस और बीएसपी दोनों ही दलों की राजनीतिक रूप से एक जैसी हालात है। लेकिन कांग्रेस ने जिस तरीके से सड़क पर चलकर अपने कद को फिर से बढ़ाया है, आने वाले समय में कांग्रेस के बढ़ते ये कदम बसपा के लिए सबसे बड़ा संकट बनकर उभर सकता है।

Created On :   19 April 2025 8:03 PM IST

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