कट्टर हिंदुत्ववादी चेहरे से मध्यप्रदेश में लगेगी बीजेपी की नैया पार?

Will BJPs Naya cross in Madhya Pradesh with a fundamentalist Hindutva face?
कट्टर हिंदुत्ववादी चेहरे से मध्यप्रदेश में लगेगी बीजेपी की नैया पार?
मध्य प्रदेश कट्टर हिंदुत्ववादी चेहरे से मध्यप्रदेश में लगेगी बीजेपी की नैया पार?
हाईलाइट
  • फिर निकलेगा व्यापम जिन्न

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली।  मध्यप्रदेश में बीजेपी की सियासी नैया को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कट्टर हिंदुत्ववादी चेहरे से पार लगाएंगे। ये तो आना वाला समय ही बताएगा, लेकिन जन जन में अपनी सरकार की योजनाओं से प्रिय मामा वाले भैया से लेकर पग पग और  गांव गांव वाले मामा हिंदुत्व का झोला क्यों ओढ़ रहे हैx। ये आने वाली चुनावी समर में सियासत के सामने  सबसे बड़ा सवाल  बनकर खड़ा होगा। हालांकि कुछ लोग इसे यूपी की तर्ज पर जीतने का फॉर्मूला बता रहे है। और कुछ लोग इसे शिवराज के लिए मुसीबत भी, इसके पीछे की वजह बताते हुए कहते है कि यूपी का राजनीति परिदृश्य अलग है यहां का अलग। यहां के लोग शांति प्रिय है। वो धर्म से ज्यादा सियासी योजनाओं पर अधिक ध्यान देते है। जिसमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अव्वल दर्जा धारण किया है। उनके साथ उनकी योजनाओं की जमीनी पहुंच, पकड़ और पहचान अन्य सभी मुद्दों से आगे है।

उनके द्वारा चलाई जा रही दर्शन योजना, कन्यादान योजना के बारे में प्रदेश का कोई कोना अछूता नहीं रहा है।  वो हर धर्म के लोगों को सभी योजनाओं का लाभ समान रूप से दे रहे है। इन्हीं योजनाओं, धार्मिक सद्भाव, स्वच्छ छवि, प्रचलित चेहरा, किसान पुत्र  के दम पर पूरे उत्तर भारत यानी हिंदी बेल्ट में शिवराज सिंह चौहान डेढ़ दशक से अधिक समय से सियासी गद्दी पर विराजमान है।  मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बीजेपी शासित प्रदेशों में सबसे पुराने और अनुभवी नेता के तौर पर माने जाते हैं, उनके पास एक लंबा राजनीतिक अनुभव है। उनका वक्तव्य,  व्यक्तित्व और शैली  आम जनता को जोड़ने में सफल रही है। हालफिलहाल पूरा बीजेपी महकमा  दलित वोटरों को साधने में लगे है, जिसके लिए ग्वालियर चंबल और आदिवासी बेल्ट में  बीजेपी की बैठके और दौरों की शुरूआत हो चुकी है। 

                                             

राम मंदिर के  दरवाजे खोलने से लेकर लिखी गई  हिंदू वोटरों को समेटने की स्क्रिप्ट कांग्रेस को ही भारी पड़ गई,  पिछले गुजरात चुनाव में विकास की बीजेपी को सॉफ्ट हिंदुत्व का मार्ग प्रदान कर कांग्रेस ही अपने जाल में फंस गई। इस रणनीति को कांग्रेस बार बार भुना रही है लेकिन हर बार हार का मुंह देखना पड़ रहा है, क्योंकि हिंदुत्व की पिच पर बीजेपी को हराना बड़ा मुश्किल काम है। और हर बार कांग्रेस यहीं गलती कर बैठती है कि वह चुनावों में बीजेपी को हिंदुत्व का सीधा राजनैतिक दरबार दे देती है। यहीं हाल मध्यप्रदेश में देखने को मिल रहे है। कांग्रेस के राजनेता सॉफ्ट हिंदुत्व के राजनैतिक मार्ग पर चलकर सियासी गद्दी पाने चाहता है। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में शिक्षा के लिए सीएम राइज स्कूल खोलना शिक्षा के बेहतर होने के संकेत है, लेकिन शिक्षा की मॉनिटिरिंग के नाम पर एईओ की भर्ती पर राज्य सरकार ने अभी तक कोई ठोस रणनीति नहीं बनाई। ये प्रदेश में शिक्षा प्रबंधन पर लगने वाले सबसे बड़ा प्रश्न है, अभी भी जिंदा है। जिसकी परीक्षा को हुए करीब एक दशक होने जा रहा है। इसे लेकर व्यापम पीड़ितों का मानना है कि भले ही बीजेपी हिंदू होने के नाम पर आदिवासी पिछड़ों दलितों के हितैषी कल्याण के गुणगान करती हो, लेकिन बीजेपी ने व्यापम जांच के नाम पर सबसे ज्यादा नुकसान इन्हीं वर्गों के छात्रों का किया है। व्यापम पीडितों में सबसे अधिक छात्र गरीब तबके से है,  ऐसे हजारों छात्रों का भविष्य बर्बाद करने का आरोप कांग्रेस बीजेपी पर समय समय पर लगाती रही है। यदि कांग्रेस ने चुनावी मंच से छात्रों के बिगड़ते भविष्य का मुद्दा लपका तो वह बीजेपी पर भारी पड़ सकता है, क्योंकि ये युवा वोट ही है जो सियासत का भविष्य तय करता है ।

                                                               

अब आने वाले चुनावी दंगल में ये देखना होगा कि मामा की जनप्रिय शैली  बुलडोजर छवि को स्वीकार करती या नहीं। वैसे आपको बता दें किसी भी प्रकार की हिंसा जो सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ती  है, उनसे सरकार को हमेशा नुकसान होता है। भले ही धार्मिक ध्रुवीकरण के सहारे इलेक्टोरल लोकतंत्र में किसी एक पार्टी को फायदा हो लेकिन सामाजिक सौहार्द की विविधता भरी खुशबू दुर्गध में बदलती जरूर है। चुनाव के मौसम में हिंसा मौजूदा शासन से सवाल करती है, तब वह उसकी बिगड़ती छवि को उछालती है, जिसके आगे विकास की तस्वीर धूमिल पड़ जाती है,  जिसका नुकसान भले ही राजनैतिक तौर पर न हो लेकिन सामाजिक तौर पर पड़ता है। वैसे वरिष्ठ पत्रकार महेश श्रीवास्तव अपनी पुस्तक किलपन में सांप्रदायिकता के विरोधी नेताओं में देश के सबसे बड़े नेता दिग्विजय सिंह को बताते है। आपको बता दें जब जब हिंसा की चिंगारियों की फसल बोई है तब तब चुनाव में सियासी उलटफेर की आग जली है।
 

 

Created On :   2 May 2022 3:53 PM IST

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