कितने खरे उतरें सीएम: जानिए बीजेपी के आउट ऑफ द बॉक्स वाला निर्णय से सीएम बने हिंदी बेल्ट के 3 सीएम के एक साल का आकलन, कौन कितना रहा फिट?

जानिए बीजेपी के आउट ऑफ द बॉक्स वाला निर्णय से सीएम बने हिंदी बेल्ट के 3 सीएम के एक साल का आकलन, कौन कितना रहा फिट?
  • राजस्थान में भजन शर्मा की कठिन चढ़ाई
  • छत्तीसगढ़ में विष्णु देव साय का धीमा उदय
  • मध्यप्रदेश में कारगर साबित हुए मोहन यादव

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ राजस्थान तीनों ही राज्यों के नए सीएम के एक साल पूरा होने पर मूल्यांकन करने से पता चलता है कि तीनों सीएम का यह साल मिला-जुला रहा है। भले ही तीनों नेताओं ने बड़े पैमाने पर संगठनात्मक एकता बनाकर रखी है। लेकिन राजनीतिक अधिकार अभी भी उनसे दूर हैं और उन्होंने प्रशासनिक स्तर पर भी कोई बड़ी छाप नहीं छोड़ी है। सियासी जानकारों का मानना है कि बीजेपी आलाकमान से हालफिलहाल बदलाव की उम्मीद नहीं कर सकते है। राष्ट्रीय भाजपा नेताओं का तर्क है कि राजनीतिक प्रभाव स्थापित करने के लिए एक साल का समय बहुत कम है। तीनों ही सीएम उन गुणों को पूरा कर रहे हैं जिन्हें पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व अहमियत देता है। वे क्षेत्रीय क्षत्रप नहीं हैं, और उनका चयन संगठन की लचीलापन को दर्शाता है।

आपको बता दें आज से ठीक एक साल पहले जब उत्तर भारत के हिंदी बेल्ट मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव हुए, और उनके नतीजे बीजेपी के पक्ष में आए, तब बीजेपी ने तीनों ही राज्यों में अपने बड़े से बड़े चेहरों की अनदेखी करते हुए नए चेहरों को मुखिया बनने का मौका दिया था। तब बीजेपी के बाहर किसी को भी नहीं पता था कि ऐसा होने वाला है - और पार्टी के भीतर भी कई लोगों को भी नहीं पता था। हालांकि ये बीजेपी के लिए पूरी तरह रिस्की था, क्योंकि कुछ महीनों बाद लोकसभा चुनाव भी होने वाले थे। लेकिन बीजेपी का आउट ऑफ द बॉक्स वाला निर्णय का प्रयोग यहां सफल रहा। बीजेपी ने तीनों ही राज्यों में जातिगत समीकरण साधते हुए मुख्यमंत्री बनाए। वोट बैंक को देखते हुए बीजेपी ने डिप्टी सीएम भी बनाए थे। इससे पहले बीजेपी ने इन राज्यों में कभी भी डिप्टी सीएम नहीं बनाए थे।

आम चुनाव से पहले हुए विधानसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान, राजस्थान में वसुंधरा राजे और छत्तीसगढ़ में रमन सिंह के सामने ये संकट था कि चुनाव के नतीजे उनका भविष्य तय करेगा। तीनों नेता पारंपरिक राजनीतिक से योद्धा साबित हुए। तीनों ही राज्यों में बीजेपी की बंपर जीत हुई थी। हालांकि भाजपा आलाकमान ने तीनों राज्यों में सरकारों का नेतृत्व करने के लिए अपने तीनों ही राजनैतिक योद्धाओं को दरकिनार करते हुए तीन बिल्कुल नए चेहरों को सीएम के लिए चुना, जिसे भाजपा के प्रशंसकों ने एक साहसिक कदम के रूप में सराहा। तब बीजेपी के इस निर्णय को आउट ऑफ द बॉक्स वाला निर्णय कहा गया।

मध्यप्रदेश में डॉ मोहन यादव का चयन कारगर साबित हुआ है, कुछ भाजपा नेताओं का मानना है कि उन्होंने शिवराज सिंह चौहान की गैरमौजूदगी में अपना अधिकार स्थापित किया है। मोहन यादव केवल भोपाल तक सिमटकर नहीं रहे, उन्होंने प्रदेश के अन्य इलाकों में भी अपनी छाप छोड़ी है। पूरे प्रदेश में उन्होंने निवेशक शिखर सम्मेलन आयोजित किए हैं। संगठन के भीतर कुछ नेताओं की छुटपुट नाराजगी को मोहन यादव ने बखूबी संभाला। पुराने दिग्गज नेताओं ने भी नाराजगी के बाद आखिरी में मोहन यादव को आशीर्वाद भी दे दिया। मोहन यादव का एक साल बेमिसाल रहा।

छत्तीसगढ़ में सीएम विष्णुदेव साय को लेकर अलग- अलग नेता की राय अलग अलग है। प्रदेश को लेकर कई बीजेपी नेताओं की राय है कि छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य नहीं है। जहां कोई नेता रातों-रात वहां के लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच सके। रमन सिंह को पहचान बनाने में तीन बार सीएम बनने का समय लगा। तब जाकर वो एक लोकप्रिय और जन स्वीकार्य नेता बन पाए। भले ही सीएम साय सत्ता का प्रयोग करने में थोड़े असमर्थ जरूर है , अधिकारी फैसले लेने में उन पर हावी होते नजर आते है। कुछ भी संगठन के भीतर अधिकतर नेता उन्हें एक अच्छा इंसान जरूर मानते है।

राजस्थान के सीएम भजनलाल शर्मा को मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्य की अपेक्षा इन एक साल के भीतर सबसे अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। आम चुनाव में बीजेपी का यहां अच्छा प्रदर्शन नहीं रहा। विपक्षी पार्टी कांग्रेस को यहां 8 सीटें मिली थी, इससे पहले के दो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का यहां शून्य सीटें मिली थी। कुछ लोग सीएम शर्मा की कानून व्यवस्था पर ढीली पकड़ मानते है। बीजेपी ने ब्राह्मण वर्ग को साधने के लिए भजनलाल शर्मा को सीएम बनाया था। हालांकि आपको बता दें नए चेहरे के साथ जाने का एक “प्रयोग” हमेशा जोखिम भरा होता है, जैसा भजनलाल के साथ हो रहा है।

Created On :   31 Dec 2024 12:09 PM IST

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