Delhi Riots: तीनों एक्टिविस्टों को SC का नोटिस, कहा- अपील पर फैसला होने तक हाई कोर्ट के फैसले को मिसाल के तौर पर न लिया जाए
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- SC ने हाईकोर्ट से मिली जमानत को रद्द करने से इनकार किया
- दिल्ली हिंसा मामले में नताशा समेत तीनों आरोपियों को SC ने भेजा नोटिस
- मामले की अगली सुनवाई 19 जुलाई के बाद होगी
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली पुलिस की अपील पर तीनों एक्टिविस्ट नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और आसिफ इकबाल तन्हा को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने तीनों को 4 हफ्ते में जवाब देने को कहा है। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने तीनों को हाईकोर्ट से मिली जमानत पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। इस मामले की अगली सुनवाई 19 जुलाई के बाद होगी। बता दें कि दिल्ली दंगों की साजिश के आरोप में तीनों एक्टिविस्टों को UAPA के तहत गिरफ्तार किया गया था और तीनों तिहाड़ जेल में बंद थे। मंगलवार को हाईकोर्ट से जमानत मिलने के बाद गुरुवार को इनकी रिहाई हुई थी। हाईकोर्ट के रिहाई के इस आदेश को दिल्ली पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया था।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस हेमंत गुप्ता और वी रामसुब्रमण्यम की बेंच ने कहा कि इस अपील पर फैसला आने तक दिल्ली हाई कोर्ट का आदेश नजीर नहीं बन सकता है। हालांकि कोर्ट ने हाईकोर्ट के ऑर्डर पर स्टे लगाने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि वह "इस स्टेज पर" एक्टिविस्टों को दी गई जमानत में हस्तक्षेप नहीं कर करेगा। दिल्ली पुलिस की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, कथित घटना इसलिए हुई क्योंकि जब अमेरिका के राष्ट्रपति भारत दौरे पर आए थे तब तीनों आरोपियों ने साजिश रची थी। इस घटना में 53 लोगों की मौत हुई, जिनमें से कई पुलिस अधिकारी थे। इसके अलावा, 700 लोग घायल हुए। लेकिन समय रहते स्थिति को नियंत्रित किया गया था। हाई कोर्ट ने व्यापक टिप्पणियां कीं और फिर कहा कि अपराध नहीं बनता है।
तुषार मेहता ने कहा कि इसका मतलब यह है कि अगर मैं कहीं बम रखता हूं और स्कॉड आ कर बम को डिफ्यूज कर देते हैं, तो इससे अपराध कम हो जाता है। जिस दंगे में इतने लोग मारे गए हैं, उस मामले में हाईकोर्ट की टिप्पणी दुर्भाग्यपूर्ण है, इसलिए हाइकोर्ट के फैसले पर रोक लगाया जाना चाहिए।
इस पर बेंच ने कहा कि वह निर्देश दे सकती है कि अपील पर फैसला आने तक हाई कोर्ट के फैसले को मिसाल के तौर पर न लिया जाए। मेहता ने इसके जवाब में कहा कि विरोध करने के अधिकार में लोगों को मारने का अधिकार कैसे शामिल हो गया है? मैं हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने के लिए वापस अनुरोध कर रहा हूं।
मामले का बैकग्राउंड
2020 दिल्ली दंगा मामले में पिंजरा तोड़ एक्टिविस्ट नताशा नरवाल, देवांगना कलिता को स्टूडेंट इस्लामिक ऑर्गेनाइजेशन के एक्टिविस्ट आसिफ इकबाल तन्हा को हाई कोर्ट से 15 जून को जमानत मिलने के बाद बुधवार को निचली कोर्ट के एडिशनल सेशन्स जज रविंदर बेदी ने एक्टिविस्टों की रिहाई पर आदेश को टाल दिया था। दिल्ली पुलिस ने आरोपियों और उनके जमानतदारों के पते के सत्यापन के लिए समय मांगा था जिस वजह से रिहाई का आदेश टाला गया था। दिल्ली पुलिस ने कहा था कि चूंकि आसिफ इकबाल तन्हा, नताशा नरवाल और देवनागा कलिता झारखंड, असम और रोहतक के स्थायी निवासी हैं, इसलिए जांच एजेंसी को उक्त सत्यापन दाखिल करने में समय लगेगा। दिल्ली पुलिस ने कहा कि जमानत के सत्यापन के लिए केवल फोन नंबर पर्याप्त नहीं है और फिजिकल सत्यापन की आवश्यकता है।
निचली अदालत में रिहाई टालने के फैसले को चुनौती देते हुए गुरुवार को एक्टिविस्टों के वकील ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। आवेदन में कहा गया कि ट्रायल कोर्ट की कार्रवाई हाईकोर्ट के जमानत आदेश की भावना के खिलाफ है और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। इसके बाद दिल्ली हाई कोर्ट की जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस अनूप जयराम भंभानी की बेंच ने निचली अदालत को तेजी से कार्यवाही करने को कहा।
निचली अदालत (कड़कड़डूमा) के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश रविंदर बेदी ने दिल्ली पुलिस द्वारा दायर आवेदनों को खारिज कर दिया, जिसमें एक्टिविस्टों के पते और उनके जमानतदारों की जांच के लिए और समय की मांग की गई थी। कोर्ट ने आरोपियों को दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश के अनुसार तत्काल रिहा करने का निर्देश दिया । वहीं कोर्ट ने ये भी कहा, चूंकि आरोपी के स्थायी पते की जांच के लिए कुछ समय की आवश्यकता होगी। इस संबंध में रिपोर्ट जांच अधिकारी द्वारा संबंधित अदालत के समक्ष 23.06.2021 को दोपहर 2:30 बजे या उससे पहले दायर की जाए।
Created On :   18 Jun 2021 5:21 PM IST