ज़ायडस कैडिला की नीडल फ्री वैक्सीन एप्लीकेटर के साथ आएगी, कंपनी का इस साल के अंत तक 5 करोड़ डोज रोल आउट का प्लान
- जायडस कैडिला ने कोरोना वैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी मांगी
- देश में पांचवीं वैक्सीन की तैयारी
- यह निडिल फ्री वैक्सीन होगी
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारत को जल्द ही एक और कोरोना वैक्सीन मिलने जा रही है। ये वैक्सीन नीडल फ्री होगी, जो एप्लीकेटर के साथ आएगी। इसे ज़ायडस कैडिला ने फार्माजेट के साथ मिलकर डेवलप किया है। जेट इंजेक्टर की मदद से वैक्सीन को लोगों की स्किन में इंजेक्ट किया जाता है। कंपनी ने डीएनए वैक्सीन के डेवलपमेंट पर करीब 500 करोड़ रुपये खर्च किए हैं।
ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) से जायडस कैडिला ने अपनी कोरोना वैक्सीन जायकोव-डी के इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए मंजूरी मांगी है। जायकोव-डी को मंजूरी मिलती है तो यह देश में पांचवीं अप्रूव्ड वैक्सीन होगी। कंपनी को उम्मीद है ड्रग रेगुलेटर के अप्रूवल के बाद 46-60 दिनों में इसे लॉन्च कर दिया जाएगा। कंपनी इस साल के अंत तक 5 करोड़ डोज रोल आउट कर सकती है। कंपनी का प्लान सालाना 10 से 12 करोड़ डोज प्रड्यूज़ करने का है।
जाइडस कैडिला के मैनेजिंग डायरेक्टर शरविल पटेल ने कहा, अप्रैल और जून के बीच डीएनए वैक्सीन के साथ किए गए एक अध्ययन ने सिम्टोमेटिक केस में 66% एफिकेसी रेट दिखाया है। वैक्सीन की तीसरी डोज के बाद मध्यम से गंभीर मामलों में भी डेथ का कोई केस नहीं आया। 12 साल से अधिक आयु वर्ग के बच्चों पर एक स्टडी की गई है। कुल 1,000 बच्चे उस स्टडी का हिस्सा थे। शरविल पटेल ने कहा, दो क्लीनिकल ट्रायल हो चुके हैं। उनमें से एक ट्रायल तीन डोज पर आधारित था और दूसरा ट्रायल दो डोज पर। हर डोज में 3 mg वैक्सीन दी गई।
पटेल ने कहा, टीके की तीन खुराक के बीच 28 दिन का अंतर होगा। अब तक इसके कोई साइड इफेक्ट नहीं देखे गए हैं। जीनोम सीक्वेंसिंग के एक सबसेट ने दिखाया कि वैक्सीन वायरस के डेल्टा वैरिएंट पर भी काम करती है। मैनेजिंग डायरेक्टर ने कहा, वैक्सीन स्टडी में सुरक्षित पाई गई। फेज 1 का डेटा प्री-प्रिंट में है और फेज 3 के डेटा पर काम किया जा रहा है। इसे 4-6 महीनों में प्रकाशित किया जाएगा। जायकोव-डी के फेज-3 ट्रायल 28,000 लोगों पर किए गए थे। इनमें 1000 ऐसे थे, जिनकी उम्र 12-18 साल थी।
जायकोव-डी दुनिया की पहली DNA बेस्ड वैक्सीन है। DNA-प्लाज्मिड वैक्सीन शरीर की इम्यूनिटी को बढ़ाने के लिए जेनेटिक मटेरियल का इस्तेमाल करती है। देश में फिलहाल सीरम सीरम इंस्टीट्यूट की कोवीशील्ड और भारत बायोटेक की कोवैक्सिन का इस्तेमाल वैक्सीनेशन ड्राइव में किया जा रहा है। रूस की स्पुतनिक-V को भी भारत में इस्तेमाल किए जाने की मंजूरी दे दी गई है।
Created On :   1 July 2021 6:22 PM IST