मध्य हिमालय में घाटी के ग्लेशियरों पर मानसून बनाम पश्चिमी हवाओं का पड़ता है असर : अध्ययन
- वैज्ञानिकों ने पहली बार मध्य हिमालय में उत्तराखंड के सबसे पुराने हिमनदों (ग्लेशियरों) का अध्ययन किया है
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। वैज्ञानिकों ने पहली बार मध्य हिमालय में उत्तराखंड के सबसे पुराने हिमनदों (ग्लेशियरों) का अध्ययन किया है, जिसमें भू-आकृति विज्ञान मानचित्रण के आधार पर जलवायु परिवर्तन के कारण हिमनदों के घटते परिमाण की चार घटनाओं का खुलासा हुआ है। अध्ययन में उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के पूर्वी हिस्से में स्थित यांक्ति कुटी घाटी से 52,000 एमआईएस 3 के बाद से हिमनदों की प्रगति की कई घटनाओं की पहचान की गई है।
एमआईएस 3 समुद्री ऑक्सीजन आइसोटोप चरण 3 के लिए एक संक्षिप्त शब्द है, जो पृथ्वी के पुरापाषाण काल में बारी-बारी से गर्म और ठंडी अवधियों को ऑक्सीजन आइसोटोप डेटा से घटाकर तापमान में परिवर्तन को दर्शाता है। वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए इस अध्ययन में पाया गया है कि अर्ध-शुष्क हिमालयी क्षेत्रों की नमी की कमी वाली घाटियां वर्षा को बढ़ाने के लिए संवेदनशील रूप से प्रतिक्रिया करती हैं।
पत्रिका क्वाटरनेरी साइंस रिव्यूज में प्रकाशित शोध में कालक्रम और जलवायु साक्ष्य के आधार पर एमआईएस 3 के दौरान हिमनद की ऊंचाई और बर्फ की मात्रा का आकलन किया गया है। एमआईएस 3 को प्रमुख पाश्र्व मोराइन द्वारा अच्छी तरह से दर्शाया गया है।
अध्ययन में कहा गया है, अंतिम हिमनद अधिकतम (एलजीएम) हिमनद तापमान में गिरावट और बढ़ी हुई पछुआ हवाओं और जलवायु परिवर्तनशीलता के साथ यांक्ति की कुटी घाटी में हिमनदों की प्रगति से जुड़ा था। एलजीएम अंतिम हिमनद चक्र के दौरान वैश्विक बर्फ की अधिकतम मात्रा को संदर्भित करता है।
कई शोधकर्ताओं ने विभिन्न आधुनिक डेटिंग विधियों को नियोजित करके मध्य हिमालय में हिमनदी की प्रकृति के बारे में जानकारी प्रदान की है। हालांकि, मध्य हिमालय में हिमनदों की भू-आकृतियों का कालानुक्रमिक डेटा अभी भी इन क्षेत्रों की दुर्गमता के कारण अध्ययन क्षेत्रों में डेटिंग सामग्री की कमी के कारण सीमित है।
इस प्रकार, दो प्रमुख जलवायु प्रणालियों - भारतीय ग्रीष्म मानसून और मध्य-अक्षांश पछुआ हवाओं और ग्लेशियर अग्रिम के बीच पारस्परिक संबंध बना रहा। यह अध्ययन हिमालयी जलवायु और ग्लेशियर की गतिशीलता के बीच संबंधों के मौजूदा ज्ञान को बढ़ाने में मदद कर सकता है और मध्य हिमालयी क्षेत्र में घाटी के ग्लेशियरों को चलाने में भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून बनाम पश्चिमी हवाओं की भूमिका का आकलन करने में मदद कर सकता है।
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Created On :   6 Jun 2022 5:00 PM GMT