अयोध्या विवाद:अब अगले साल 8 फरवरी को होगी सुनवाई
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट अयोध्या में विवादित राम जन्मभूमि मामले में अगली सुनवाई 8 फरवरी, 2018 को करेगा। मंगलवार को चली सुनवाई में इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 13 अपीलों पर सुनवाई हुई। सुनवाई में सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल ने राम मंदिर को बीजेपी का चुनावी मुद्दा बताया। उन्होंने कहा कि अयोध्या में राम मंदिर बनाने की बात बीजेपी ने चुनावी घोषणापत्र में रखी थी। वकील कपिल सिब्बल, राजीव धवन ने सुनवाई 7 जजों की बेंच से कराने की मांग की।
कोर्ट में चली सुनवाई में अखिल भारतीय सुन्नी वक्फ बोर्ड का पक्ष रखते हुए वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि मामले के दस्तावेज अभी अधूरे हैं। वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि मामले के फैसले का असर पूरे देश की सुरक्षा और कानून व्यवस्था पर पड़ सकता है। इसलिए वे कोर्ट से गुजारिश करते हैं कि देश में कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए 15 जुलाई 2019 के बाद इस मामले पर सुनवाई शुरू करें।
वहीं उत्तर प्रदेश सरकार के सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहतान ने सिब्बल का जवाब देते हुए उनके सभी कथनों को खारिज कर दिया। साथ ही उन्होंने कहा कि मामले से संबंधित दस्तावेज और अनुवाद प्रतियां रिकॉर्ड में हैं। इस पर कपिल सिब्बल ने संदेह जताते हुए कहा कि 19000 पेज इतने कम समय में फाइल कैसे हो गए।
विवाद करीब 164 साल पुराना है। सुप्रीम कोर्ट ने केस से जुड़े अलग-अलग भाषाओं के ट्रांसलेट किए गए 9000 पन्नों को देखा। 6 दिसंबर को विवादित ढांचा ढहाए जाने के 25 साल भी पूरे हो रहे हैं। आपको बता दें इससे पहले देश की सबसे बड़ी अदालत ने इसी साल मार्च में बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुझाव दिया था कि इस पूरे विवाद को कोर्ट के बाहर बातचीत के जरिए भी सुलझाया जा सकता है। अगर जरूरत पड़ी तो वो इसमें मध्यस्थता करेगा। साथ ही कोर्ट ने तीन महीनों में यूपी सरकार और इस मामले की पार्टियों को अपने दस्तावेजों को इंग्लिश में ट्रांसलेट करने के आदेश दिए थे। ये दस्तावेज अलग-अलग भाषाओं में मौजूद हैं। इन दस्तावेजों में गवाहों के बयान भी शामिल हैं। अयोध्या मामले की सुनवाई कर रही तीन सदस्यीय बेंच में जस्टिस दीपक मिश्रा के अलावा जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर भी शामिल हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का क्या था फैसला ?
30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित जमीन (2.77 एकड़) को तीन हिस्सों में बांट दिया था। रामलला की मूर्ति वाली जगह पर उन्हें विराजमान करने के लिए दी। सीता रसोई और राम चतूबरा निर्मोही अखाड़े को और बाकी हिस्सा मस्जिद निर्माण के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को दे दी थी। इस फैसले के खिलाफ वक्फ बोर्ड नेे 14 दिसंबर 2010 को सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की। एक के बाद एक 20 याचिकाएं दायर हुईं। सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2011 को हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे लगा दिया। सुनवाई तो हुई नहीं, इस बीच 7 चीफ जस्टिस बदल गए। सातवें चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने 11 अगस्त 2017 को याचिकाएं लिस्ट की थीं।
कई भाषाओं में दायर याचिकाओं से फंसा मामला
मामले में 7 साल से लंबित करीब 20 याचिकाएं इस साल 11 अगस्त को पहली बार लिस्ट हुई थी। याचिकाएं संस्कृत, पाली, फारसी, उर्दू और अरबी समेत 7 भाषाओं में थी। इस कारण सुनवाई के पहले ही दिन दस्तावेजों के अनुवाद का पेंच फंस गया। करीब 9 हजार पन्नों में दर्ज याचिकाओं को अंग्रेजी में अनुवाद करने के लिए कोर्ट ने 12 हफ्तों का वक्त दिया था।
कौन हैं जस्टिस दीपक मिश्रा, अशोक भूषण,अब्दुल नजीर ?
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा 3 तलाक खत्म करने और थिएटरों में फिल्मों से पहले बजने वाले राष्ट्रगान के दौरान खड़े होने का फैसला सुना चुके है। वहीं जस्टिल एस अब्दुल नजीर तीन तलाक के लिए बनाई गई बैंच में शामिल थे। इन्होंने प्राइवेसी को मौलिक अधिकार बताते हुए प्रथा में दखल देने को गलत बताया था। वहीं अशोक भूषण की बात करें तो वो दिल्ली सरकार और राज्यपाल के बीच अधिकारों को लेकर हुए विवाद की सुनवाई कर रहे है।
Created On :   3 Dec 2017 6:22 PM IST