संविधान निर्माता बाबा साहेब: नव बौद्ध भारत के जन्म दाता -डॉ आंबेडकर

- श्रमिक एकता क्रांति के सूत्रधार -बाबा साहेब
- राजनीति में समानता, सामाजिक एवं आर्थिक जीवन में अभी भी असमानता
- क्रांति की एक नई लहर अंबेडकर
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। विश्व की महान विभूतियों में शामिल युग प्रवर्तक डॉ बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने विश्व के बदलते वातावरण में एक नई आर्थिक नीति के माध्यम से सामाजिक व आर्थिक क्रांति को विश्व पटल पर रखा।
श्रमिक एकता क्रांति के सूत्रधार
1931 के गोलमेज सम्मेलन में श्रमिक भारत के करोड़ों दलितों की सामाजिक एवं आर्थिक दुर्दशा का चित्र ,अंग्रेजी शासकों से अधिकार हासिल करना ,उनकी निर्भीकता योग्यता को बताता है । श्रमिक एकता क्रांति के सूत्रधार बने डॉक्टर अंबेडकर ने व्यावहारिकता के अनुरूप पूंजीवाद एवं सामंतवादी व्यवस्था में श्रमिकों को मुक्ति दिलाने के लिए राज्य समाजवाद की ओर समाज को मोड़ा और एक नया रास्ता दिखाया । जो डॉ अम्बेडकर की सामाजिक आर्थिक क्रांति की आधारशिला है। व्यवहारिकता के पक्ष में मानवीय मूल्यों को सर्वोपरि बताया ।जिसके लिए डॉ अम्बेडकर ने शुद्ध आर्थिक क्रांति से कई अधिक मानवीय मूल्यों को ऊपर उठाने के लिए सामाजिक बदलाव को जरूरी समझा और आर्थिक प्रजातंत्र की वकालत करते रहे।
राजनीति में समानता , सामाजिक एवं आर्थिक जीवन में अभी भी असमानता
संविधान सभा के समक्ष अपना स्पष्ट विचार रखते हुए डॉ आंबेडकर ने कहा था। 26 जनवरी 1950 को हम विरोधाभास के जीवन में प्रवेश कर रहे हैं एक तरफ राजनीति में समानता होगी ,वहीं दूसरी तरफ सामाजिक एवं आर्थिक जीवन में असमानता बरकरार होगी, राजनीति में हम" एक व्यक्ति, एक वोट" और "एक वोट, एक मूल्य" के सिद्धांत को प्रतिपादित करेंगे।वही पारंपरिक सामाजिक आर्थिक व्यवस्था के कारण सामाजिक शक्तिशाली वर्ग पूंजीपति वर्ग की ओर केंद्रित होता जा रहा है, जो दलितों के बीच से समृद्धि स्रोतों का दोहन कर रहा है। हाथ से छूट हुई पतंग की तरह दलित वर्ग असहाय और निरुपाय दशा में खड़ा है ।पूंजीपति वर्ग जरूरत के समय में इस शक्तिशाली सामाजिक वर्ग का शोषण करने में पीछे नहीं हटेगा ।उसका सिर्फ एक ही उद्देश्य रहता है किसी भी तरह धन इकट्ठा करना ।
अंबेडकर के चिंतन में राष्ट्र, जीवन, चेतना, चुनौती और संघर्ष
डॉक्टर अंबेडकर का आर्थिक चिंतन आकलन की दृष्टि से आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक आधारमान है। अपने चिंतन में मानवतावादी आस्थाओं को सहजता के साथ समेटे हुए है। भारतीय समाज में विराजमान विसंगतियों पर अम्बेडकर ने प्रकाश डाला है वो उनकी देखी भोगी जांची परखी और अनुभव की हुई थी। यही कारण है कि उनके चिंतन में राष्ट्र को एक जीवन चेतना चुनौती और संघर्ष के दर्शन आसानी से हो जाते हैं।
क्रांति की एक नई लहर अंबेडकर
उन्होंने साम्यवादी गतिशीलता को सामाजिक रूढ़ियों में बदलाव की शक्ति का रूप दिया। अंबेडकर ने क्रांति की एक नई लहर निर्मित की। डॉ आंबेडकर की मानवतावादी आस्था जीवन पर्यंत अनेक दिशाओं में फलती फूलती रही है। डॉक्टर अंबेडकर दलितों के अस्तित्व को स्थापित करने के लिए जीवन भर संघर्ष करते रहे।
बीसवीं शताब्दी के महान अर्थशास्त्री
डॉ अम्बेडकर को सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से विचार कर या संविधान निर्माता या कानूनवेत्ता के रूप में मान्यता देकर बीसवीं शताब्दी के महान अर्थशास्त्री को समझने में सरकारों ने देरी कर दी। भारत की आर्थिक आजादी के लिए दलितों से सम्बद्ध अर्थशास्त्र की विवेचना करना भारत के विकास के लिए उपयोगी साबित होगा ।सबको न्याय मिले ऐसा कानून बनाने वाले डॉ आंबेडकर के साथ ही अन्याय हुआ है उनके चिंतन की विषय वस्तु को पूंजीपतियों की शक्तिशाली चिंतन प्रणाली ने दबाये रखा है। डॉक्टर अंबेडकर दलितों के आर्थिक उत्थान को प्रस्तुत करने वाले विश्व के प्रथम अर्थशास्त्री थे। उनके विचारों पर सतत विश्लेषण और क्रियान्वयन की गति की जरूरत है।
(ये लेखक के अपने निजी विचार है)
Created On :   14 April 2025 3:07 PM IST