Explained: जानिए क्या है पैरेलल यूनिवर्स जिसके NASA के वैज्ञानिकों को सबूत मिले हैं, यहां समय उल्टा चलता है
डिजिटल डेस्क, वॉशिंगटन। बीते कुछ दिनों से हम सुन रहे हैं कि नासा के वैज्ञानिकों ने पैरेलल यूनिवर्स की खोज की है। इस यूनिवर्स में समय उल्टा चलता है और फिजिक्स के नियम भी उल्टे काम करते हैं। पैरेलल यूनिवर्स को लेकर अन्टार्कटिका में एक एक्सपेरिमेंट किया गया है जिसके आधार पर यह दावा किया जा रहा है। ये भले ही सुनने में काफी अजीब लगता हो कि ऐसा भी कुछ हो सकता है लेकिन 1960 के दशक से साई-फाई टीवी शोज में इस कॉन्सेप्ट पर चर्चा होती रही है। तमाम वैज्ञानिक इस पर लंबे समय से एक्सपेरिमेंट कर रहे हैं। हालांकि कुछ वैज्ञानिक अभी भी इस कॉन्सेप्ट से सहमत नहीं है। वो नहीं मानते कि पैरेलल यूनिवर्स जैसी भी को चीज होती है। ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं पैरेलल यूनिवर्स के बारे में वो सब कुछ जो आपके जानने लायक है।
अन्टार्कटिका में वैज्ञानिकों का एक्सपेरिमेंट
सबसे पहले हम आपको बताते हैं अन्टार्कटिका में वैज्ञानिकों के किए एक्सपेरिमेंट के बारे में जिसने पैरेलल यूनिवर्स की थ्योरी को मजबूत किया है। एक्सपर्ट्स ने नासा के अंटार्कटिक इम्पलसिव ट्रांसिएंट एंटीना (ANITA) को एक विशाल बैलून के जरिए ऊंचाई तक पहुंचाया। इतनी ऊंचाई पर जहां हवा ड्राय और फ्रिजिड होती है और रेडियो नॉइज न के बराबर। वैज्ञानिकों ने बताया की आउटर स्पेस से पृथ्वी पर हाई एनर्जी पार्टिकल्स आते रहते हैं जो यहां की तुलना में कई लाख गुना ज्यादा ताकतवर होते हैं। शून्य के करीब मास वाले लो-एनर्जी, सब एटॉमिक न्यूट्रीनॉस (neutrinos) बिना किसी पार्टिकल से इंटरैक्ट किए पृथ्वी से पूरी तरह आर-पार हो सकते हैं। लेकिन हाई एनर्जी पार्टिकल्स पृथ्वी के सॉलिड मैटर से रुक जाते हैं। इसका मतलब है कि हाई-एनर्जी वाले पार्टिकल्स को केवल आउटर स्पेस से सिर्फ नीचे आते वक्त ही डिटेक्ट किया जा सकता है। लेकिन ANITA एक्सपेरिमेंट में ऐसे हाई-एनर्जी पार्टिकल (टाउ न्यूट्रीनॉस) डिटेक्ट किए गए जो पृथ्वी से ऊपर की तरफ आ रहे थे। इस एक्सपेरिमेंट से अंदाजा लगाया जा रहा कि ये पार्टिकल समय में पीछे की तरफ चल रहे हैं जो पैरेलल यूनिवर्स की थ्योरी को मजबूत करते हैं।
पैरेलल यूनिवर्स कैसे संभव?
इस एक्सपेरिमेंट से जुड़े वैज्ञानिकों ने पैरेलल यूनिवर्स कैसे संभव है इसे आसान भाषा में समझाया है। वैज्ञानिकों ने कहा कि इसका सबसे सरल स्पष्टीकरण यह है कि 13.8 बिलियन साल पहले बिंग बैंग के समय में दो यूनिवर्स बने थे। एक हमारा और एक वो जो हमारे दृष्टिकोण में समय के साथ पीछे की ओर जा रहा है। बेशक यदि पैरेलल यूनिवर्स में भी कोई रहता है तो उनके दृष्टिकोण में हमारा यूनिवर्स समय के साथ पीछे की ओर जा रहा होगा। एक से ज्यादा यूनिवर्स की थ्योरी सालों पुरानी है। वैज्ञानिक कहते हैं कि जैसी हमारी पृथ्वी है वैसी ही और भी पृथ्वी होंगी, दूसरे यूनिवर्स में। करोड़ों किलोमीटर दूर, हमारी नज़रों से ओझल। मल्टी यूनिवर्स को लेकर, वैज्ञानिकों के बीच पांच तरह की थ्योरी चलन में हैं। इनमें बिग बैंग के अलावा भी एक थ्योरी है जो कहती है कि ब्लैक होल की घटना के ठीक उलट प्रक्रिया से नए यूनिवर्स पैदा हुए। एक और थ्योरी कहती है कि बड़े यूनिवर्स से दूसरे छोटे यूनिवर्स पैदा हुए।
स्टीफन हॉकिंग की आखिरी रिसर्च मल्टीवर्स को लेकर थीं
फेमस फिजिसिस्ट स्टीफन हॉकिंग की आखिरी रिसर्च मल्टीवर्स को लेकर थी। यानी हमारे यूनिवर्स के अलावा कई अन्य यूनिवर्स की मौजूदगी। मई 2018 में उनका ये पेपर पब्लिश हुआ था। हॉकिंग की थ्योरी के मुताबिक कई यूनिवर्स बिलकुल हमारे जैसे हो सकते हैं जिनमें धरती जैसे ग्रह होंगे। सिर्फ़ ग्रह ही नहीं हमारे जैसे समाज और लोग भी हो सकते हैं। हो सकता है वहां आज भी डायनासोर जैसे जीव घूम रहे हो। कुछ ब्रह्मांड ऐसे भी होंगे जिनके ग्रह धरती से बिलकुल अलग होंगे, वहां सूर्य या तारे नहीं होंगे लेकिन भैतिकी के नियम हमारे जैसे ही होंगे। स्टीफन हॉकिंग के साथ इस थ्योरी पर उनके साथ बेल्जियम की KU लुवेन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर थॉमस हेरटॉग भी काम कर रहे थे। हॉकिंग के फाइनल वर्क का नाम ए स्मूद एक्जिट फ्रॉम एटर्नल इन्फ्लेशन है। ये थ्योरी स्ट्रिंग थ्योरी पर आधारित है। स्ट्रिंग थ्योरी थ्योरिटिकल फिजिक्स की एक ब्रांच है जो ग्रैविटी और जनरल रिलेटिविटी को क्वांटम फिजिक्स के साथ जोड़ने का प्रयास करती है।
Created On :   21 May 2020 2:30 PM IST