Republic of Mali: कर्नल अस्मी गोइता ने खुद को कंट्री का इंचार्ज घोषित किया, जानिए माली में कैसे हुआ तख़्तापलट?

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अफ्रीका के देश ‘रिपब्लिक ऑफ माली’ में तख्तापलट के बाद गुरुवार को आर्मी के एक कर्नल अस्मी गोइता ने कहा कि वह अब इस कंट्री के इनचार्ज है और खुद को जुनता (Junta) का चेयरमैन घोषित किया। कर्नल अस्मी गोइता उन पांच सैन्य अधिकारियों में से एक है जिन्होंने मंगलवार को स्टेट ब्रॉडकास्टर ORTM पर माली में तख्तापलट की घोषणा की थी। तख्तापलट के बाद गोइता ने सरकारी मंत्रालयों के शीर्ष अधिकारियों के साथ मीटिंग की और फिर से काम शुरू करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि माली सोशियोपॉलिटिकल और सिक्योरिटी क्राइसिस में है। इसलिए गलतियों के लिए ज्यादा जगह नहीं है।
अफ्रीका और दुनिया भर में, नेताओं ने इस तख्तापलट की कड़ी निंदा की है। माली में सिविलियन रूल की तत्काल वापसी और पूर्व राष्ट्रपति इब्राहिम बाउबकर केटा और प्रधानमंत्री बाउबोस सिसे की रिहाई की मांग भी की गई है। राजधानी बामाको में राष्ट्रपति के निजी आवास को घेरने और हवा में गोलियां चलाने के बाद दोनों नेताओं को मंगलवार को विद्रोही सैनिकों ने हिरासत में ले लिया था। ड्यूरेस के तहत, केटा ने बाद में स्टेट टेलीविजन पर अपने इस्तीफे की घोषणा की। उन्होंने कहा वह नहीं चाहते कि सत्ता में रहने के लिए किसी का खून बहाया जाए।
अब घटनाक्रम पर नजर रखने वाले कुछ लोगों को डर है कि राजनीतिक उथल-पुथल माली में इस्लामी चरमपंथियों को अपनी पहुंच का विस्तार करने का मौका देगा। 2012 में पिछले तख्तापलट के बाद एक पावर वैक्यूम ने अल-कायदा से जुड़े आतंकवादियों को उत्तरी माली के प्रमुख शहरों पर कब्जा करने का मौका दिया था, जहां उन्होंने सख्त इस्लामी कानून को लागू किया था। बाद में 2013 में पुराने मालिक फ्रांस की मदद से उनका कब्जा हटाया गया। केटा ने 2013 में चुनाव जीता था। दो दर्जन से अधिक उम्मीदवारों के बीच उन्होंने 77% से अधिक वोट प्राप्त किए थे।
उन जिहादियों ने फिर से एकजुट होकर मालियन आर्मी के साथ-साथ यू.एन. शांति सैनिकों और क्षेत्रीय बलों पर लगातार हमले किए। इतना ही नहीं कभी वहां किसी होटेल पर आतंकी हमला होता। कभी ख़ुद को ऐंटी-जिहादी कहने वाले लड़ाके दूसरे समुदाय के लोगों का क़त्ल करते। क़त्ल हो रहे समुदाय के लोग भी जवाबी हिंसा करते। पूरे माली में मार-काट मच गई। इन सब की बीच पांच साल बाद 2018 में केटा ने फिर से इलेक्शन जीता। विपक्षी पार्टियों ने उनपर चुनावी धांधली का आरोप लगाया। फिर भी केटा पद पर बने रहे।
इस साल के शुरू में संसदीय चुनावों के बाद केटा की सरकार का विरोध और ज्यादा बढ़ गया था। चुनाव में बड़ी गड़बड़ियां हुईं। मसलन, वोटिंग से तीन दिन पहले विपक्षी नेता सोमाइला सिसे अगवा कर लिए गए। इसके अलावा कई चुनावी अधिकारी और कम्यूनिटी लीडर्स की भी किडनैपिंग हुई। गड़बड़ी इतनी ही नहीं हुई। अप्रैल 2020 में एक अदालत ने 31 विपक्षी उम्मीदवारों के नतीजे भी पलट दिए। इससे विपक्ष की सीटें घट गईं और केटा की पार्टी ‘रैली फॉर माली’ की सीटें बढ़ गईं। इन सारी वजहों से केटा के प्रति नाराज़गी बढ़ गई। लोगों की नाराजगी को देखते हुए केटा ने कहा कि वह चुनाव लड़े हुए क्षेत्रों में फिर से वोटिंग करवाने के लिए तैयार है।
इसी बैकग्राउंड में 5 जून, 2020 से केटा के खिलाफ़ जनविद्रोह शुरू हो गया। राजधानी बमाको में शुरू हुआ जून 5 मूवमेंट ने जल्द ही हिंसक हो गया। बढ़ते विरोध के बीच राष्ट्रपति ने विपक्ष से सुलह करने की कोशिश की। उन्हें सरकार में शामिल होने का प्रस्ताव दिया। मगर विपक्ष नहीं माना। उसने कहा कि जब तक केटा इस्तीफ़ा नहीं देते, वो प्रदर्शन करते रहेंगे। इन्हीं विरोधों के बीच 18 अगस्त को माली से तख़्तापलट की ख़बर आई। तख्तापलट के बाद अब पड़ोसियों को डर है कि कहीं माली के हालात और बदतर न हो जाएं। अगर ऐसा हुआ, तो केवल पश्चिमी अफ्रीका पर असर नहीं पड़ेगा, बल्कि इससे सटे यूरोपीय देशों के लिए भी ख़तरा पैदा हो जाएगा।
Created On :   20 Aug 2020 7:05 PM IST