Mongolia: इनर मंगोलियाई लोगों पर चीन जबरन थोप रहा अपनी भाषा, विरोध प्रदर्शन को लेकर चीन ने 23 लोगों को हिरासत में लिया
- इनर मंगोलिया क्षेत्र में नई नीति का विरोध कर रहें 23 लोगों को चीन ने हिरासत में लिया
- इनर मंगोलियाई लोगों पर चीन जबरन थोप रहा अपनी भाषा
डिजिटल डेस्क, ताइपे। चीन के इनर मंगोलिया क्षेत्र की पुलिस ने नई नीति का विरोध कर रहें कम से कम 23 लोगों को हिरासत में लिया है। नई नीति में इस क्षेत्र की पाठ्यपुस्तकों में मंगोलियाई भाषा के स्थान पर चीनी भाषा को स्थान दिए जाने के फैसले के खिलाफ ये विरोध हो रहा है। हिरासत में लिए गए ये लोग आठ काउंटी के हैं। इन लोगों के हिरासत में लेने की वजहों में " एक याचिका के लिए आयोजन और हस्ताक्षर जुटाना", "झगड़ा करना और मुश्किलें पैदा करना", "देश के एक दिवंगत नेता के बारे में अपमानजनक टिप्पणी", "वी चैट पर वीडियो शेयर करके राष्ट्रीय पाठ्यपुस्तक नीति को लागू करने में बाधा पहुंचाना" बताया गया है।
बता दें कि चीन में पांच स्वायत्त प्रांत हैं। इनमें से ही एक इनर मंगोलिया है। एक जमाने में इनर और आउटर मंगोलिया ग्रेटर मंगोलिया का हिस्सा हुआ करते थे। चंगेज़ ख़ान ने यहीं पर मंगोल साम्राज्य की नींव डाली थी। उसके पोते कुबलई ख़ान ने युआन वंश की नींव रखी और अपना साम्राज्य चीन तक फैला लिया। 1368 में युआन वंश ढहने लगा। इसके बाद चीन में पहले मिंग और फिर चिंग साम्राज्य आया। इसी चिंग साम्राज्य ने मंगोलिया को चीन में मिलाया। चिंग शासकों ने ही प्राशासनिक सुविधा के मद्देनज़र मंगोलिया को आउटर और इनर यूनिट में बांट दिया।
1924 में रूस की सीमा से सटा आउटर मंगोलिया आजाद देश बना। जबकि चीनी भूभाग से सटे इनर मंगोलिया पर अभी भी चीन का कब्जा है। इनर मंगोलिया के मूल निवासी मंगोलियन्स हैं। मगर चीन ने 1911 से ही यहां की बसाहट बदलने की कोशिश शुरू कर दी थी। चीन के बहुसंख्यक हान यहां लाकर बसाए जाने लगे। 1949 की कम्यूनिस्ट क्रांति आते-आते इनर मंगोलिया में मंगोल अल्पसंख्यक हो गए। बाद के दशकों में भी चीन यहां के लोगों पर अपनी संस्कृति थोपता रहा। 70 के दशक में मंगोलियन संस्कृति खत्म करने के लिए माओ ने कल्चरल रेवॉल्यूशन चलाया जिसमें तकरीबन साढ़े चार करोड़ लोग मारे गए।
चीन की सरकार अब मंगोलों की बची-खुची पहचान को कुचलने के लिए इनर मंगोलिया के स्कूलों में मंगोलियन भाषा को फेज़ आउट कर रही है। अब प्राथमिक और मिडिल स्कूलों के टीचर बच्चों को मंगोलियन भाषा में नहीं पढ़ाएंगे। वो इसकी जगह मंडारिन भाषा का इस्तेमाल करेंगे। दरअसल, चीन चाहता है कि इन स्कूली बच्चों समेत आने वाली मंगोलियन पीढ़ियां रोज़मर्रा की ज़िंदगी में अपनी मूल भाषा को बरतना भूल जाए। चीन के सभी अल्पसंख्यक मूल निवासियों के साथ यही सलूक हो रहा है। उनके तौर-तरीके खर-पतवार की तरह बेकार और उखाड़ फेंकने लायक समझे जाते हैं।
चीन की इस पॉलिसी के खिलाफ हज़ारों-हज़ार मंगोल विरोध में सड़कों पर उतर आए हैं। लोगों का कहना है कि संस्कृति के नाम पर उनके पास केवल अपनी भाषा ही बची है. ये ख़त्म हो गई, तो मंगोलियन पहचान का कोई निशान नहीं बचेगा। प्रदर्शन जितने बढ़ रहे हैं, सरकार उतनी ही उग्र हो रही है। स्थानीय बुकस्टोर्स से मंगोलियन भाषा की किताबें हटा दी गई हैं। सोशल मीडिया पर मंगोलियन भाषा के अकाउंट्स भी बंद करवाए जा रहे हैं। बाइनू नाम का एक सोशल मीडिया अकाउंट भी बंद करवा दिया गया है। चीन में ये मंगोलियन भाषा की इकलौती सोशल मीडिया साइट थी।
Created On :   8 Sept 2020 6:55 PM IST