Belarus: जानिए रूस के चक्रव्यूह में कैसे फंस रहा बेलारूस? लुकाशेनको के इस्तीफे की मांग को लेकर 6 हफ्तों से प्रदर्शन

- राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ लुकाशेनको की मीटिंग को लेकर चिंता
- लुकाशेनको के इस्तीफे की मांग को लेकर 6 हफ्तों से प्रदर्शन
डिजिटल डेस्क, मॉस्को। बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेनको से इस्तीफे की मांग को लेकर करीब 6 हफ्तों से विरोध प्रदर्शन चल रहा है। रविवार को एक लाख से ज्यादा प्रदर्शनकारियों ने राजधानी मिंस्क में मार्च निकाला। प्रदर्शनकारियों ने सोमवार को रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन के साथ लुकाशेनको की मीटिंग को लेकर चिंता व्यक्त की। यह उनका पहला फेस-टू-फेस कॉन्टेक्ट होगा क्योंकि 9 अगस्त के राष्ट्रपति चुनाव के बाद बेलारूस में अशांति फैल गई थी। प्रदर्शनकारियों और कुछ पोल वर्करों का कहना है कि रिजल्ट में धांधली हुई थी।
पुतिन पहले ही कह चुके हैं कि अगर विरोध हिंसक हो जाता है वह बेलारूस में रूसी पुलिस को भेजने के लिए तैयार है। कुछ जानकारों का मानना है कि लुकाशेनको एक कमजोर स्थिति में बैठक में जा रहे हैं। पुतिन उन्हें सत्ता से बाहर करने की कोशिश करने के लिए इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। हलांकि साल 2014 में यूक्रेन और क्रीमिया प्रायद्वीप पर रूस के कब्जे के बाद बेलारूस में रूसी हस्तक्षेप की आशंकाओं से पश्चिमी देशों के मन में संदेह गहराने लगा है। बता दें कि बेलारूस एक समय सोवियत यूनियन का ही भाग था। 1991 में सोवियत यूनियन के पतन के बाद बेलारूस स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में जरूर आ गया था लेकिन सोवियत संस्कृति और संस्कार का मोह वह अभी तक नहीं त्याग पाया है।
पश्चिमी शक्तियों व यूरोपियन देशों के मन में उठने वाले संदेह के कई कारण है। प्रथम, बड़ा कारण दोनों देशों के बीच साल 1992 में हुई सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन (सीएसटीओ) है, जिसमें रूस ने संकट के समय बेलारूस को मदद करने का वचन दिया है। इस संधि का उद्देश्य रूस और बेलारूस को एक-दूसरे के नजदीक लाना था। रूसी मनसूबों पर संदेह का एक कारण और है। पिछले साल आठ दिसंबर को पुतिन और लुकाशेंको ने ‘यूनियन स्टेट ऑफ रूस और बेलारूस’ की बीसवीं वर्षगांठ मनाई थी। दिसबंर 1999 में निर्मित इस गठजोड़ का असल मकसद बेलारूस को रूस में मिलाने की कोशिश के तौर पर देखा जाता है।
1991 से पहले बेलारूस सोवियत संघ का हिस्सा हुआ करता था। सोवियत से अलग होकर 25 अगस्त, 1991 को ये आज़ाद देश बना। इसके बाद बेलारूस ने अपना नया संविधान बनाया। 1994 में आए संविधान में राष्ट्रपति शासन प्रणाली अपनाई गई। इसी व्यवस्था के तहत जून 1994 को बेलारूस में पहला राष्ट्रपति चुनाव हुआ। इस चुनाव में अलेक्जांदेर लुकाशेनको ने जीत हासिल की और वह बेलारूस के पहले राष्ट्रपति बने। उस दिन से लेकर आज तक बेलारूस में छह चुनाव हो चुके हैं, लेकिन चुनाव के निष्पक्ष नहीं होने के कारण लुकाशेनको 26 साल से बेलारूस के राष्ट्रपति बने हुए हैं। इलेक्शन से पहले ही लुकाशेनको की जीत तय होती है। इसी वजह से एलक्जेंडर लुकाशेंको को यूरोप का आखिरी तानाशाह कहा जाता है। लुकाशेंको सत्ता में रहने के लिए संवैधानिक संशोधन और कानूनों में बदलाव करते रहे हैं।
बेलारूस में 9 अगस्त को छठी बार राष्ट्रपति चुनाव हुए। इस चुनाव में अलेक्जेंडर लुकाशेंको के खिलाफ सरहेई तसिख़ानोउस्की खड़ा होना चाहते थे। सरहेई तसिख़ानोउस्की लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ता हैं। मगर उन्हें बिना किसी आरोप के जेल में डाल दिया गया। ऐसे में सरहेई तसिख़ानोउस्की की पत्नी स्वेतलाना ने टीचर की अपनी नौकरी छोड़ी और चुनाव में खड़ी हो गईं। उनकी जनसभाओं में रिकॉर्ड भीड़ जमा हुई। लोग कह रहे थे कि अगर निष्पक्ष चुनाव हों, तो लुकाशेनको का कोई चांस नहीं है। मगर पब्लिक जानती थी कि लुकाशेनको धांधली करवाएंगे और हुआ भी यही। लुकाशेंको को 80% वोट मिले हैं, जबकि स्वेतलाना तीखानोव्स्कया को सिर्फ 10%। अलेक्जेंडर लुकाशेंको छठी बार बेलारूस के राष्ट्रपति बने। ऐसे में लोग सड़कों पर उतर आए हैं। प्रदर्शनकारी दोबारा चुनाव की मांग कर रहे हैं, लेकिन लुकाशेंको ने कह दिया है कि उनके मरने के बाद ही ऐसा होगा।
उधर, 14 अगस्त को चुनाव नतीजे घोषित किए जाने के कुछ दिन बाद ही स्वेतलाना तीखानोव्स्कया ने बेलारूस छोड़ दिया था। वो लिथुआनिया चली गई। चुनाव से पहले स्वेतलाना ने "खतरे" की वजह से अपने बच्चों को भी लिथुआनिया भेज दिया था। स्वेतलाना ने चुनाव नतीजों के बारे में अधिकारियों से शिकायत करने की कोशिश की थी। हालांकि, उन्हें कई घंटों के लिए हिरासत में ले लिया गया था, जिसके बाद उन्होंने देश छोड़ दिया था। उनके कैंपेन के लोगों का कहना है कि उन्हें जाने के लिए मजबूर किया गया था। इसके बाद स्वेतलाना का एक वीडियो सामने आया था, जिसमें वो प्रदर्शनकारियों से चुनाव के नतीजों को मानने की अपील कर रही थीं। इस वीडियो में वो ऐसा संदेश देती दिखीं कि उन्हें मजबूर किया जा रहा है। कैंपेन के लोगों का मानना था कि शायद उनके बच्चों को धमकाया गया है।
इसके बाद 17 अगस्त को स्वेतलाना ने एक और वीडियो जारी किया और संदेश दिया कि वो बेलारूस का नेतृत्व करने के लिए तैयार हैं। उन्होंने अधिकारियों से लुकाशेंको का साथ छोड़ने की भी अपील की थी। स्वेतलाना ने यूरोप से लुकाशेंको के दोबारा चुने जाने को मान्यता न देने की अपील की है।
Created On :   13 Sept 2020 11:32 PM IST