बांग्लादेश में उठी संविधान बदलने की मांग: छात्र संगठन ने कहा - 'इसने भारत की आक्रामकता के लिए रास्ते खोले', अंतरिम सरकार ने बनाई दूरी, विपक्षी दलों ने किया विरोध
- बांग्लादेश की सियासत में आया नया मोड़
- छात्र संगठन ने की संविधान बदलने की मांग
- अंतरिम सरकार के साथ विपक्षी दलों ने भी किया विरोध
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बांग्लादेश की सियासत में नया मोड़ आने वाला है। पड़ोसी मुल्क के छात्र संगठन 'द एंटी-डिस्क्रिमिनेशन स्टूडेंट्स मूवमेंट' ने संविधान को बदलने की डिमांड की है। उन्होंने उसे मुजीबिस्ट विधान करार दिया। संगठन का दावा है कि 1972 के संविधान को खत्म कर देना चाहिए, इसने भारत की आक्रमकता के लिए रास्ते खोले हैं। हालांकि छात्रों की इस मांग का मोहम्मद यूनुस सरकार और प्रमुख विपक्षी दलों ने विरोध जताया है।
छात्र संगठन के संयोजक हसनत अब्दुल्लाह ने कहा कि नया मैनिफेस्टो (घोषणापत्र) 31 दिसंबर को सेंट्रल शहीद मीनार परिस में जारी किया जाएगा। इस घोषणापत्र से यह साफ होगा कि साल 1972 का संविधान किस तरह से बांग्लादेश की जनता को नुकसान पहुंचा रहा था। अबदुल्लाह ने कहा कि नए घोषणापत्र में संविधान को बदलने की रूपरेखा बताई जाएगी।
विपक्षी दल ने किया विरोध
छात्र संगठन के इस प्रस्ताव पर पूर्व पीएम खालिदा जिया की पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने नाराजगी जाहिर की है। पार्टी के दिग्गज नेता मिर्जा अब्बास ने कहा कि संविधान को दफनाने की बातें कहना फासीवाद को प्रदर्शित करता है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि यदि संविधान में कुछ खराबी है तो उसे संशोधित किया जा सकता है।
वहीं, छात्र संगठन के इस प्रस्ताव पर देश की अंतरिम सरकार की ओर से भी प्रतिक्रिया आई है। सरकार के प्रवक्ता ने कहा कि इस घोषणापत्र से यूनुस सरकार का कोई संबंध नहीं है।
राजनीतिक ध्रुवीकरण बढ़ने की आशंका
स्थानीय नेताओं और राजनीतिक विशेषज्ञों ने भी यह स्वीकार किया है कि यह मु्द्दा देश में सियासी ध्रुवीकरण को बढ़ा सकता है। उनके अनुसार इस आंदोलन को समर्थन मिलता है, तो यह बांग्लादेश की राजनीतिक स्थिति को नाटकीय ढंग से परिवर्तित कर सकता है। खासकर उस समय जब देश पहले से ही कई राजनीतिक चुनौतियों से घिरा हुआ है।
Created On :   30 Dec 2024 12:20 AM IST