108 ऐतिहासिक मंदिरों और तालाबों वाला झारखंड का अनूठा गांव मलूटी, वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल कराने का प्रयास
- लगभग ढाई से तीन सौ साल पहले यहां बनाए गए 108 मंदिरों में से अब मात्र 72 बचे हैं
डिजिटल डेस्क, रांची। झारखंड के भौगोलिक-प्रशासनिक नक्शे पर दुमका जिला अंतर्गत शिकारीपाड़ा प्रखंड के मलूटी की तलाश करें तो इसे आप करीब ढाई-तीन हजार की आबादी वाला एक साधारण गांव मानेंगे, लेकिन वस्तुत: यह एक असाधारण गांव है और केंद्र-राज्य की सरकारें इसे यूनेस्को केवर्ल्ड हेरिटेज में शामिल कराने के लिए प्रयासरत हैं।
406 हेक्टेयर में फैले इस गांव में एक साथ इतने ऐतिहासिक, धार्मिक और उत्कृष्ट वास्तुशिल्प वाले प्राचीन धरोहर मौजूद हैं कि आप अचरज से भर उठेंगे। 108 मंदिरों और इतने ही तालाबों वाले इस गांव की झांकी वर्ष 2015 में नई दिल्ली में गणतंत्र दिवस परेड के दौरान प्रस्तुत की गई थी, तब मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भी खासे प्रभावित हुए थे।
इस झांकी को द्वितीय पुरस्कार के लिए चुना गया था और वस्तुत: इसी के बाद मलूटी की समृद्ध ऐतिहासिक विरासतों ने सरकार और सैलानियों का ध्यान अपनी ओर खींचा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मलूटी को ऐतिहासिक-धार्मिक विरासत के नक्शे पर लाने में व्यक्तिगत तौर पर दिलचस्पी दिखाई और इसके बाद केंद्र की मदद से इन धरोहरों को संरक्षित करने की 13.67 करोड़ की योजना पर काम शुरू हुआ। 2 अक्टूबर 2015 को प्रधानमंत्री ने इस योजना का ऑनलाइन शिलान्यास किया। हालांकि जिस संस्था को इन धरोहरों को संरक्षित करने और यहां के मंदिरों के जीर्णोद्धार का काम सौंपा गया, उसपर इनके मूल स्वरूप से छेड़छाड़ का आरोप लगा।
स्थानीय लोगों और इतिहासविदों की आपत्ति के चलते 2018 में यह काम रुक गया। झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस ने भी कुछ महीने पहले मलूटी का दौरा किया था। यहां से लौटने के बाद अक्टूबर महीने में पर्यटन विभाग के अफसरों के साथ बैठक में उन्होंने मलूटी के मंदिरों के जीर्णोद्धार पर अब तक हुए कामकाज पर असंतोष जताया। राज्यपाल का कहना था कि इन धरोहरों को संरक्षित रखने में उनकी प्राचीन शैली और संरचना में न्यूनतम हस्तक्षेप होना चाहिए। अब राज्य सरकार का पर्यटन विभाग जल्द ही नए सिरे से दूसरे चरण का काम शुरू कराने की तैयारी कर रहा है।
हेरिटेज पर काम कर रही संस्था ग्लोबल हेरिटेज फंड ने साल 2010 में मलूटी के मंदिरों को दुनिया के 12 सर्वाधिक लुप्तप्राय धरोहरों की सूची में शामिल किया था। लगभग ढाई से तीन सौ साल पहले यहां बनाए गए 108 मंदिरों में से अब मात्र 72 बचे हैं। तालाब भी घटकर 65 रह गए हैं।
रखरखाव की कमी और वक्त की मार के चलते कई बेशकीमती धरोहर नष्ट हो गए। हाल के वर्षों में मलूटी के इन धरोहरों पर सरकार के अलावा गैर सरकारी स्तर पर कई शोध हुए हैं और इनकी जानकारी दूर-दूर तक फैल रही है तो यहां कई राज्यों के सैलानियों की आमदरफ्त बढ़ी है। झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल सहित अन्य राज्यों से अच्छी संख्या में लोग यहां रोज पहुंचते हैं।
मलूटी में 108 मंदिरों और तालाबों के निर्माण की कहानी भी कम रोचक नहीं। 1494-1519 के बीच बंगाल की रियासत सुल्तान अलाउद्दीन हुसैन शाह के अधीन थी। कहते हैं कि सुल्तान ने कई बाज पाल रखे थे। उसका एक पसंदीदा बाज लापता हो गया। उसकी तलाश करने वाले के लिए बड़े इनाम की मुनादी की गई। बसंत राय नामक एक युवक ने बाज को ढूंढ़ निकाला।
इससे खुश होकर सुल्तान ने बंसत राय को मलूटी और आस-पास का इलाकों की जमींदारी दे दी। इसके बाद बसंत राय अब इलाके में राजा बाज बसंत के नाम से मशहूर हो गए। उनके वशंज राजा राखड़ चंद्र राय की धर्म-कर्म में रुचि थे। मलूटी में पहला मंदिर उन्होंने 1720 ई में बनाया। कहते हैं कि जमींदार परिवार के बाकी सदस्यों में भी मंदिर निर्माण की होड़ लग गई।
इसके बाद एक-एक कर 108 मंदिर और उतने ही तालाब बना दिए गए। इनमें से सबसे ऊंचा मंदिर 60 फीट और सबसे छोटा 15 फीट का है। मलूटी को गुप्त काशी के नाम से भी जाना जाता है। अभिलेखों से पता चलता है मलूटी कभी देवों की भूमि के रुप में अधिग्रहित क्षेत्र थी। तत्कालीन मुस्लिम शासक सुल्तान अलाउद्दीन शाह 1493-1519 ने इसके धार्मिक महत्व को समझते हुए इस क्षेत्र को करमुक्त जागीर घोषित कर दिया था।
यहां के मंदिर टेरोकोटा शैली में बने हुए हैं। इनपर चाला, बंगाल और उड़ीसा की प्राचीन वास्तुकला की छाप है। मलूटी पर हाल में झारखंड सरकार की आर्थिक सहायता से डॉ सोमनाथ आर्य ने बियॉन्ड कैम्परिजन नामक एक पुस्तक लिखी है। डॉ सोमनाथ बताते हैं कि इन मंदिरों में प्रमुख मंदिर है देवी मौलिक्षा का मंदिर।
उनकी पूजा जमींदार परिवार के कुलदेवी के रूप में करता रहा है। हालांकि कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि हिंदू धर्म के ग्रंथों में देवी मौलिक्षा का जिक्र नहीं मिलता। ऐसे में यह संभवत: बौद्ध धर्म की तांत्रिक परंपराओं की देवी हो सकती हैं। 15वीं शताब्दी तक इस इलाके में वज्रायन या तांत्रिक बौद्ध धर्म बेहद प्रचलित था।
हो सकता है कि कालांतर में हिंदू धर्म के लोग भी उनकी पूजा करने लगे। मलूटी के कुछ मंदिरों में उनके निर्माण के वर्ष भी अंकित हैं। इसके आधार पर इतिहासविद इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि सन 1720 से इस गांव में मंदिरों का निर्माण शुरू हुआ जो 1845 तक निरंतर चलता रहा। सबसे अधिक संख्या भगवान शिव के मंदिरों की हैं।
इनके अलावा दुर्गा, काली, धर्मराज, मनसा देवी, विष्णु भगवान के मंदिर हैं। मंदिर के बाहर टेराकोटा (पकी हुई मिट्टी) की आकर्षक कलाकृतियां अंकित हैं। ये कलाकृतियां रामायण और महाभारत के प्रसंगों पर आधारित हैं। राम रावण युद्ध, रामलीला, कृष्णलीला, राम के वन गमन, जटायु युद्ध, सीता हरण, वकासुर युद्ध आदि प्रसंगों पर आधारित कलाकृतियां मिट्टी के पक्के बरतन के समान सांचे में ढाल कर बनाई गई हैं। इन मंदिरों की एक समानता यह है कि सभी मंदिरों का प्रवेश द्वार बहुत ही छोटा है।
लगभग सभी मंदिरों के बाह्यभाग पर सामने की तरफ टेराकोटा के पैनल बने हैं जो 300 साल बाद भी नष्ट नहीं हुए हैं। टेराकोटा के इन पैनलों को बेहद बारीकी से जोड़ा गया है। अलग-अलग आकार के इन टेराकोटा टाइल्स में धार्मिक और ऐतिहासिक दृश्यों को बारीकी से उकेरा गया है। डॉ सोमनाथ आर्या कहते हैं कि मलूटी की विरासत को यूनेस्को के वल्र्ड हेरिटेज की सूची में शामिल कराने के सरकारी प्रयासों में तेजी लाने की जरूरत है। ऐसा होने से यह पूरा इलाका विश्व पर्यटन के नक्शे पर उभर आएगा।
(आईएएनएस)
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Created On :   11 Dec 2022 1:30 PM IST