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मक्का में फाल आर्मी और सोयाबीन में कीड़े का प्रकोप , समय पर नहीं लग पाया धान को रोपा
डिजिटल डेस्क, शहडोल। जिले में कम बारिश के कारण 40 फीसदी किसान अपने खेतों में धान की रोपनी (ट्रांसप्लांटिंग) नहीं कर पाए हैं। जिन किसानों ने किसी तरह रोपाई करा ली है, उन्हें भी पर्याप्त पानी नहीं मिल रहा है। दूसरी ओर मौसम की मार मक्का और अरहर की फसलों पर पड़ने लगी है। दोनों में कीटों का प्रकोप देखा जा रहा है।
रोपा का काम काफी देरी से शुरू हुआ
वैसे भी इस बार धान का उत्पादन पिछले वर्ष की तुलना में काफी होगा, क्योंकि रोपा का काम काफी देरी से शुरू हुआ है। कृषि विभाग के आंकड़ों के मुताबिक पिछले वर्ष एक लाख 6 हेक्टेयर रकवे में धान की खेती हुई थी। इसमें 65 हजार हेक्टेयर रोपा वाली धान का था। इसकी तुलना में इस वर्ष आधे रकवे में भी धान की खेती होने की संभावना नहीं दिख रही है। विभाग ने करीब 75 हजार हेक्टेयर में धान की रोपाई का अनुमान लगाया था। खराब मानसून के कारण अब तक 30 हजार हेक्टेयर में ही रोपाई हुई है। जुलाई में 5 हजार हेक्टेयर और अगस्त में 25 हजार हेक्टेयर भूमि में रोपनी की गई है।
18 हजार हेक्टेयर में है मक्का की फसल
खेतों में नमी और तापमान में बढ़ोतरी के कारण अन्य फसलों पर भी कीटों का प्रभाव देखा जा रहा है। सबसे ज्यादा प्रभावित मक्का की फसल हो रही है। मक्का में अमेरिकन फाल आर्मी वार्म का प्रकोप देखने को मिल रहा है। यह पहले पत्तियों को खत्म करता है फिर तने में प्रवेश कर जाता है। इसके प्रकोप का यही समय है। अभी इलाज हो जाएगा तो इसके नुकसान से बचा जा सकता है। नहीं फसलों को बहुत ज्यादा नुकसान होगा। जिले में इस बार किसानों ने सोयाबीन के स्थान पर अधिकतर रकबे में मक्का लगाई है। पिछले वर्ष तक 8 से 9 हजार हेक्टेयर में मक्का की खेती होती थी। इस बार 18 हजार हेक्टेयर में मक्का लगा हुआ है।
अरहर, सोयाबीन में भी लगे कीड़े
अरहर और सोयाबीन की फसलों में भी कहीं-कहीं कीड़ों का प्रकोप देखा जा रहा है। कुछ जगह अरहर में पत्ती छेदक कीड़े लग गए हैं। वहीं सोयाबीन में भी कुछ-कुछ स्थानों पर चक्रभ्रिंग कीड़ा देखा जा रहा है। चक्रभ्रिंग कीड़ा पत्तियों में रिंग बनाकर तने में घुस जाता है। फिर तने को नुकसान पहुंचाता है, जिससे पत्तियां सूख जाती हैं और प्रकाश संस्लेशण की क्रिया नहीं हो पाती है।
दो तरह से धान की फसल को नुकसान
खराब मानसून के कारण जिले में रोपाई का काम जुलाई माह में बहुत ही कम हुआ था। अधिकतर खेतों में अगस्त में रोपा लगा है। वहीं 40 फीसदी खेतों में अभी भी रोपाई नहीं हो सकी है। कृषि विशेषज्ञों की मानें तो अधिक उत्पादन के लिए जुलाई तक धान की रोपाई जरूरी होती है। इसके बाद रोपनी होने पर प्रति हेक्टेयर 50 किलो उत्पादन कम होता जाता है। इस तरह जहां अगस्त में रोपा लगा है, वहां भी उत्पादन प्रभावित होगा, जबकि जहां रोपा लगा नहीं है, वहां तो नुकसान होना ही है।
समय रहते कीटों से बचाव जरूरी
कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ मृगेंद्र सिंह ने कहा कि बारिश कम होने की स्थिति में उत्पादन प्रभावित तो होगा। जिन खेतों में रोपा लग चुका है, वहां फसलों को एक-दो जीवन रक्षक पानी देकर बचाया जा सकता है। वर्तमान में जिस तरह की बारिश हो रही है, वह पौधों के लिए ठीक है। वहीं कृषि वैज्ञानिक पीएन त्रिपाठी ने कहा कि कीटों से बचाव के लिए किसानों को रोजाना खेतों का निरीक्षण करना चाहिए। अगर कहीं भी कीटों का प्रकोप दिखता है तो उसमें दवा का छिड़काव करना चाहिए। अभी कीटों का प्रकोप शुरू हुआ है, जिससे आसानी से निजात पाई जा सकती है।
Created On :   10 Aug 2019 5:05 PM IST