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केजी डेवलपर्स का कारनामा: रेत की खातिर रोका पानी का प्रवाह
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डिजिटल डेस्क,शहडोल। रेत के खनन से जुड़ा पहला प्रतिबंध यह है कि, पानी का प्रवाह अवरूध्द नही किया जाएगा। कोतमा जनपद अंतर्गत ग्राम पंचायत सारंगगढ़ में केवई नदी में यह नियम जिले की रेत ठेका कंपनी केजी डेवलपर्स द्वारा बेखौफ हो तोड़ा गया। केजी डेवलपर्स को केवई नदी में सारंगगढ़ रेत खदान आवंटित है रेत के उत्खनन व परिवहन में आसानी रहे इसलिए रेत ठेका कंपनी द्वारा केवई नदी के छुलहा ग्राम की ओर वाले हिस्से पर किनारे से बीच नदी तक करीब 40 मीटर चौड़ी और 170 मीटर लंबी रेत की मेढ़ बना दी गई है।
नदी मे करीब 3 फिट ऊंची यह मेढ़ बना दिए जाने से पानी का प्रवाह तो अवरूध्द हुआ ही है, नदी का स्वरूप भी बदल गया है। केजी डेवलपर्स द्वारा पर्यावरणीय तथा रेत खनन के नियमों की इस अवहेलना पर खनिज महकमा सहित एमपीपीसीबी का क्षेत्रीय कार्यालय भी आंखे बंद किए बैठा है। रेत खनन तथा इससे जुड़े पर्यावरणीय मामलों के जानकारों के मुताबिक केजी डेवलपर्स द्वारा जिले में सोन तथा केवई नदी स्थित रेत खदानों जिस तरह से नियमों को ताक पर रख काम किया जा रहा है वह एनजीटी की गाइडलाइन के विपरीत है। इस मामले में खनिज अधिकारी आशालता वैद्य का पक्ष उनके भोपाल में होने के कारण प्राप्त नही हुआ। एमपीपीसीबी के रीजनल ऑफीसर संजीव मेहरा का कहना है कि नदी से रेत खनन के दौरान अगर पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है तो जांच टीम भेजकर आंकलन करवाया जाएगा। ऐसे मामलों पर पीसीबी संबधित ठेकेदार के खिलाफ सख्त कार्रवाई करेगी।
प्रस्ताव भी हो चुका है पारित
केजी डेवलपर्स को जिले की रेत खदानों पर काम करने जिन शर्तो के साथ अनुमति प्रदान की गई है, उनकी अवहेलना तथा उससे पर्यावरण, ग्राम विकास तथा जनजीवन पर पड़े रहे प्रतिकूल असर को देखते हुए छुलहा ग्राम पंचायत द्वारा बीते सप्ताह एक प्रस्ताव भी पारित किया गया था। ग्राम पंचायत रेत ठेका कंपनी द्वारा मिलने वाले इस पैसे से पर्यावरण संरक्षण तथा गाम विकास के कार्य कराना चाहती है। प्रस्ताव पारित हुए सप्ताह भर हो रहा है लेकिन प्रशासन ने इस दिशा में अब तक कोई कदम नहीं उठाया हैं।
अब आंदोलन की तैयारी
कोतमा जनपद उपाध्यक्ष अभिषेक सिंह ने केजी डेवलपर्स पर पंचायत के प्रस्ताव की उपेक्षा और निर्धारित लीज क्षेत्र से हटकर रेत का उत्खनन करने का आरोप लगाया है। उनका कहना रहा कि प्रशासन के संज्ञान में तमाम बाते लाए जाने के बावजूद न तो राजस्व अधिकारी जांच और निरीक्षण को पहुंचे और न ही खनिज का अमला। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अफसरों का रवैया तो ऐसा है, मानों उन्हें पर्यावरण की कोई चिंता ही नहीं है। क्षेत्रीय अधिकारी मेहरा से यदि यह पूछा जाए कि पिछले दो-ढाई साल में रेत ठोका कंपनी द्वारा खदान प्रभावित क्षेत्र और ग्राम पंचायतों में पर्यावरण के संरक्षण के लिए क्या-क्या काम किए, तो वे नहीं बता सकेंगे। श्री सिंह ने कहा कि, रेत के उत्खनन तथा परिवहन में नियमों की अवहेलना तथा उसका गांवो और लोगो के जनजीवन पर पड़ रहे प्रतिकूल असर के प्रति प्रशासन के रवैये ने हम लोगों को आंदोलन की राह पर ला कर खड़ा कर दिया है।
Created On :   21 Dec 2022 6:13 PM IST