हर मर्ज के हिस्से में आया दर्द, हड़ताल से लडख़ड़ाईं स्वास्थ्य सेवाएँ
डिजिटल डेस्क जबलपुर। शासकीय चिकित्सकों की प्रदेशव्यापी हड़ताल से स्वास्थ्य सुविधाएँ बुरी तरह लडख़ड़ा गईं। ओपीडी तक मरीज तो पहुँचे, लेकिन इलाज नसीब नहीं हुआ। आईपीडी पर भी हड़ताल का असर रहा। हर मर्ज के हिस्से में दर्द आया। संभाग के सबसे बड़े अस्पताल नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज में मरीज भटकते नजर आए। कोई ऑपरेशन के लिए पहुँचा तो कोई अपनी बेटी के इलाज के लिए, लेकिन निराश लौटना पड़ा। मेडिकल कॉलेज के करीब 350 डॉक्टरों समेत जिला अस्पताल, लेडी एल्गिन अस्पताल और अन्य स्वास्थ्य केंद्रों में पदस्थ 180 से ज्यादा डॉक्टर हड़ताल पर रहे। चिकित्सकों ने अत्यंत गंभीर स्थिति में आए मरीजों को छोड़कर, किसी भी तरह के मरीजों को नहीं देखा। ऑपरेशन टाल दिए गए। नतीजतन विभिन्न शासकीय अस्पतालों में मरीज परेशान होते नजर आए। मेडिकल कॉलेज में जूडॉ ने हड़ताल को समर्थन दिया, हालांकि इसके बावजूद ओपीडी में सेवाएँ दीं। आज से जूडॉ भी हड़ताल पर जा सकते हैं। इधर जिला चिकित्सालय में भी आयुष चिकित्सकों की सेवाएँ लेकर वैकल्पिक व्यवस्था की गई। संभागायुक्त और कलेक्टर ने निजी अस्पतालों को सरकारी अस्पताल से रेफर होकर आए मरीजों के लिए बेड रिजर्व कर इलाज देने के निर्देश दिए हैं।
मेडिकल कॉलेज और विक्टोरिया में टले ऑपरेशन
- डॉक्टरों के हड़ताल पर जाने के बाद मेडिकल कॉलेज में बुधवार को करीब 50 ऑपरेशन टाल दिए गए।
- इसी तरह जिला अस्पताल में 8 से 10 ऑपरेशन होने थे, जो कि नहीं हुए।
- सीनियर डॉक्टरों के हड़ताल पर जाने के बाद जूनियर डॉक्टरों ने मरीजों के इलाज का मोर्चा संभाला।
- प्रशासन की ओर से मेडिकल, जिला अस्पताल में आयुर्वेद चिकित्सकों की तैनाती का दावा किया गया। हालांकि जमीनी स्थिति इससे अलग रही।
- मरीजों को इलाज मिलना मुश्किल हो रहा था।
यहाँ दिखी मानवता
हड़ताल के बीच चिकित्सकों ने मानवता का भी ध्यान रखा। मेडिकल कॉलेज में हड़ताल पर रहे फॉरेंसिक विभाग के डॉक्टरों ने पोस्टमार्टम किए, ताकि मृतकों के परिजनों को इंतजार न करना पड़े। हड़ताल के बाद भी करीब 10 शवों का पीएम किया गया।
संभागायुक्त और कलेक्टर पहुँचे मेडिकल, निजी अस्पतालों को बेड रिजर्व रखने निर्देश
हड़ताल के बीच संभागायुक्त अभय वर्मा और कलेक्टर सौरभ कुमार सुमन मेडिकल कॉलेज पहुँचे और हड़ताल कर रहे चिकित्सकों से गंभीर स्थिति में आए मरीजों के इलाज को लेकर चर्चा की। इसके अलावा अस्पताल के वार्डों में व्यवस्थाओं को देखा। इसके बाद निजी अस्पतालों में मरीजों के रेफर होकर पहुँचने के बाद इलाज उपलब्ध कराने को लेकर बैठक ली, जिसमें मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. संजय मिश्रा शामिल हुए। इसके बाद सीएमएचओ कार्यालय द्वारा 22 निजी अस्पतालों को रेफर होकर आने वाले मरीजों के लिए बेड रिजर्व करने और उचित चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के निर्देश िदए गए।
जिला अस्पताल से किया मेडिकल रेफर
जिला अस्पताल में इलाज की उम्मीद लेकर आए कई मरीजों को मेडिकल रेफर कर दिया गया। गरीब नवाज कमेटी के इनायत अली ने बताया कि रास्ते पर पड़े 3 असहाय मरीजों को लेकर वे विक्टोरिया गए थे, उनमें से केवल 1 को ही जिला अस्पताल में भर्ती किया गया, जबकि डॉक्टर न होने की बात कहकर 2 मरीजों को मेडिकल कॉलेज ले जाने के लिए कहा। मेडिकल कॉलेज में भी मरीजों को भर्ती नहीं किया गया।
मेडिकल कॉलेज में जुटे चिकित्सक
मेडिकल कॉलेज में शासकीय स्वशासी चिकित्सक महासंघ के आह्वान पर, मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन और मप्र मेडिकल ऑफीसर्स एसोसिएशन के बैनर तले सभी चिकित्सक एकत्रित हुए और सरकार की वादा खिलाफी पर प्रदर्शन किया। डॉ. शामिक रजा और डॉ. पंकज ग्रोवर का कहना था कि डीएसीपी हमारी प्रमुख माँग है। कई राज्यों में यह लागू है, लेकिन मप्र में नहीं है। इस मौके पर डॉ. कमलकांत सुहाने, डॉ. नीलम टोप्पो, डॉ. गॉडविन, डॉ. कुलदीप सिंह यादव, डॉ. परवेज सिद्दीकी, डॉ. मरकाम समेत अन्य चिकित्सक मौजूद रहे। बता दें कि चिकित्सकों की तीन सूत्रीय माँगों में डीएसीपी लागू करने, पुरानी पेंशन बहाली और मेडिकल कार्य में अधिकारियों की दखलंदाजी बंद करना शामिल है।
आईएमए ने दिया समर्थन, मरीजों के लिए चलाएँगे ओपीडी
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन और नर्सिंग होम एसोसिएशन ने भी हड़ताल को समर्थन दिया। बुधवार को आयोजित प्रेसवार्ता में अध्यक्ष डॉ. अमरेंद्र पांडेय ने कहा कि हम हड़ताल के समर्थन में हैं। एक तरफ सरकार शासकीय अस्पतालों में रिक्त पद नहीं भर रही है, वहीं दूसरी ओर मौजूदा चिकित्सकों को जायज वेतन नहीं दे रही है। शासकीय चिकित्सकों की माँगें जायज हैं। इसके बावजूद हम गरीब मरीजों को इलाज देने के लिए तत्पर हैं। हड़ताल आगे बढऩे पर हम आईएमए हॉल में नि:शुल्क ओपीडी चलाएँगे। इस मौके पर आईएमए स्टेट प्रेसीडेंट डॉ. राकेश पाठक, डॉ. नीलम टोप्पो, डॉ. शामिक रजा समेत अन्य चिकित्सक मौजूद रहे।
.क्या हैं डीएसीपी और अन्य माँगें
डीएसीपी के जरिए डॉक्टरों की समय-समय पर पदोन्नति होती है। वेतनवृद्धि और अच्छा कैरियर बनाने के लिए डीएसीपी में बेहतर अवसर मिलते हैं। ये पॉलिसी साल 2008 के बाद कई राज्यों में लागू हो चुकी है, जबकि 14 साल के बाद भी मध्य प्रदेश में इसे लागू नहीं किया गया है। इससे डॉक्टरों में खासी नाराजगी है।
Created On :   3 May 2023 11:04 PM IST