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सेहत का हाल: गर्भवती महिलाओं में 50 फीसदी को हाइपरटेंशन की होती है शिकायत
- ग्रामीण क्षेत्रों से रेफर की जानेवाली महिलाएं अधिक
- अनियमित दिनचर्या, पौष्टिक खानपान के अभाव का असर
- 10 फीसदी को डायबिटीज , जांच में पुष्टि के बाद उपचार
डिजिटल डेस्क, नागपुर। शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल (मेडिकल) प्रसूति रोग विभाग में जांच के लिए आनेवाली महिला मरीजों में 50 फीसदी को उच्च रक्तदाब यानि टाइपरटेंशन की बीमारी होती है। विभाग के सूत्रों के अनुसार यहां की ओपीडी हर रोज औसत 300 है। इनमें से 150 में हाइपरटेंशन होता है। वहीं अधिकतम 10 फीसदी को डायबिटीज हाेता है। गर्भावस्था की जांच के दौरान जब इन बीमारियों की पुष्टि होती है तो, उनका औषधोपचार किया जाता है। इसके अलावा दिनचर्या व खानपान में बदलाव के बारे में समुपदेशन किया जाता है।
गर्भावस्था को लेकर गंभीर नहीं होते ग्रामीण : मेडिकल के प्रसूति रोग विभाग की ओपीडी में हर रोज औसत 300 गर्भवती महिलाएं जांच व उपचार के लिए आती है। इनमें कुछ महिलाएं गर्भावस्था के दौरान नियमित जांच के लिए आती है। गर्भवती महिलाओं की जांच में आधी महिलाओं को हाइपरटेंशन होता है। यानि 150 महिलाओं को हाइपरटेंशन होता है। इसके पिछे अनेक कारण होते है। मेडिकल में आनेवाले मरीज ग्रामीण क्षेत्रों के व गरीब वर्ग के होते हैं। यहां दूसरे प्रदेशों के ग्रामीण क्षेत्रों के स्वास्थ्य केंद्रों से मेडिकल में मरीज रेफर किये जाते हैं। यह मरीज दिनचर्या, खानपान व नियमित जांच के प्रति गंभीर नहीं रहते। आर्थिक स्थिति कमजोर होने से वे स्वयं की गर्भावस्था की हालत के प्रति असंवेदनशील रहते हैं। ऐसे हालात में बीमारियां होना आम बात है। इसी का असर है कि मेडिकल में आनेवाली गर्भवती महिलाओं में हाइपरटेंशन की बीमारी होती है। इसके अलावा अधिकतम 10 फीसदी यानि 30 महिलाओं को मधुमेह यानि डायबिटीज होता है।
बीमारी नियंत्रित ना हो तो अन्य खतरे : हाइपरटेंशन के चलते गर्भस्थ भ्रूण के लिए समस्या पैदा हो सकती है। यदि प्लेसेंटा को पर्याप्त रक्त नहीं मिला तो भ्रूण को ऑक्सीजन व पोषक तत्व कम प्रमाण में मिलता है। इससे भ्रूण वृद्धि में रुकावट, वजन कम, सांस लेने में समस्या, संक्रमण आदि खतरे होते है। भ्रूण का विकास धीमा या कम होता है। समय रहते इस बीमारी को नियंत्रित नहीं किया गया तो मस्तिष्क, आंखें, हृदय, फेफड़े, गुर्दे, यकृत और अन्य प्रमुख अंगों को चोट लग सकती है। ऐसे में गंभीर समस्या पैदा हो सकती है। हाइपरटेंशन पीड़ित गर्भवती महिलाओं को कभी-कभी समय से पहले प्रसव की आवश्यकता होती है। यह भी हानिकारक साबित हो सकता है। जिन गर्भवती महिलाओं को हाइपरटेंशन की समस्या होती है, उन्हें नियमित जांच व औषधोपचार करना जरुरी है।
समुपदेशन व औषधोपचार से नियंत्रण : मेडिकल के डॉक्टरों खानपान व जीवनशैली में सुधार करने की सलाह देते हैं। गर्भावस्था के दौरान हाइपरटेंशन को नियंत्रित करना मां व भ्रूण के स्वास्थ्य के लिए जरुरी बताया गया है। इससे भविष्य के खतरे को टाला जा सकता है। मेडिकल में आनेवाली गर्भवती महिलाओं की सभी तरह की जांच की जाती है। महिलाओं को कोई बीमारी हो तो उसका समुपदेशन कर उसे औषधोपचार की सलाह दी जाती है। नियमित जांच व उपचार से बीमारी नियंत्रित की जाती है। इससे गर्भवती महिलाओं को प्रसूति के दौरान कोई समस्या नहीं आती। विभाग की डॉक्टर ने बताया कि मेडिकल में आनेवाली ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं खानपान के प्रति सतर्क नहीं होती है। पौष्टिक आहार का अभाव होता है। धूम्रपान व शराब के सेवन का असर भी शरीर पर देखने मिलता है। बावजूद उनका मेडिकल में उपचार कर बीमारियों को नियंत्रित करने का प्रयास किया जाता है।
Created On :   13 Sept 2024 4:31 PM IST