यूपीएससी टॉपर स्मृति को हर काम में है परफेक्शन की लत

यूपीएससी टॉपर स्मृति को हर काम में है परफेक्शन की लत
कोविड के दौरान समय का बेहतर प्रबंधन कर लगाई ऊंची छलांग

अजीत कुमार, नई दिल्ली । प्रयागराज की स्मृति मिश्रा ने यूपीएससी की परीक्षा में अपने तीसरे प्रयास में चौथी रैंक हासिल की है। प्रारंभ से मेधावी रही स्मृति को हर काम में परफेक्शन की आदत है। स्ट्रीट फूड खाने की शौकीन स्मृति शिक्षा और महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में बदलाव लाना चाहती है। इन्हीं सब पहलुओं पर स्मृति मिश्रा ने दैनिक भास्कर के दिल्ली ब्यूरो प्रमुख अजीत कुमार से विशेष बातचीत की। बातचीत का प्रमुख अंश :

प्रश्न : तमाम वरिष्ठ अधिकारियों और जमे जमाए सिस्टम के बीच करीब 5 फुट 3 इंच की स्मृति अपनी अलग पहचान कैसे कायम करेगी?

उत्तर : मु्झे शुरू से हर काम बेहतर ढंग से करने की आदत है। मैंने कभी भी मीडियोक्रिटी पर सेटल नहीं किया। जैसे एक स्पिरिट ऑफ एक्सीलेंस होता है न कि हर काम बढ़िया से करूं। चाहे झाड़ू लगाना हो या फिर नोट बनाना। उस वैल्यू पर मैंने कभी समझौता नहीं किया कि चलो आधा-अधूरा काम भी हो जाए तो चलेगा। बचपन से ही हमेशा परसूट ऑफ एक्सीलेंस रहा है। आगे मेरी कोशिश रहेगी कि मैं इसी को हमेशा फॉलो करूं और वह वर्क स्टैंड आउट करेगा।

प्रश्न : भाई वकील, पिता सीओ और मम्मी गृहिणी… फिर स्मृति कैसे देश की व्यवस्था संभालने के लिए मैंदान में आ गई?

उत्तर : मेरे पापा पब्लिक सर्वेंट हैं। पापा की शुरूआती पोस्टिंग मिर्जापुर वगैरह में रही थी। वे वहां जब भी जाते हैं तो उन्हें लोगों का भरपूर प्यार मिलता है। इससे सेंस ऑफ सटिस्फैक्शन आता है। ये देखकर मुझे पब्लिक सर्विस में जाने का मन बना। पुलिस की सेवा तो प्रेरित करती थी, लेकिन पुलिस सेवा तब आती है, जब काम बिगड़ जाता है। लेकिन सिविल सर्वेंट (आईएएस अधिकारी) काम बिगड़ने से रोकता है। लिहाजा मैं पब्लिक सर्विस में आने को प्रेरित हुई।

प्रश्न : आपने कानून और जीव विज्ञान की पढ़ाई की है। कानून तो ठीक है, जीव विज्ञान आपके कैरियर में कैसे उपयोगी साबित होगा?

उत्तर : सर, यह सवाल मुझसे इंटरव्यू में भी पूछा गया था। आपको बताऊं कि कोरोना वायरस सीधे जानवरों से ही आया था। इसी तरह जलवायु परिवर्तन हो रहा है। मानव आबादी लगातार बढ़ रही है। ऐसे में जानवरों और मानव का इंटैरेक्शन और पास में होगा। इसे मैनेज करने में जीव विज्ञान मदद करता है। आजकल स्ट्रीट डॉग्स की घटनाएं भी बढ़ गई हैं। हम जानवरों के स्वभाव को नहीं समझते। ऐसे में मानव-पशु संघर्ष को रोकने में यह समझ मदद करेगी। वैसे भी अभी सिविल सर्वेंट की भूमिका डायनेमिक होती जा रही है। ऐसे में जीव विज्ञान काफी मदद करेगा।

प्रश्न : कोरोना दुनिया भर के लिए संकट था, लेकिन आपके लिए यह कैसे अवसर बन गया?

उत्तर : मैंने ग्रेजुएशन पूरा ऑफलाइन कॉलेज में किया था। सुबह 8 से शाम 5 बजे तक कॉलेज में रहती थी। लेकिन कोरोना में एलएलबी की क्लास ऑनलाइन थी। तो मेरे पास चार से पांच घंटे फ्री टाइम हो गया था। उस समय मैंने गंभीरता से आईएएस की तैयारी शुरू कर दी थी। मतलब कोविड के दौरान मैंने समय का प्रबंधन अच्छा कर लिया था।

प्रश्न : प्रशासनिक सेवा का हमारा ढांचा अंग्रेजों के समय का बना हुआ है। आपके विचार से इसमें क्या बदलाव होना चाहिए?

उत्तर : बदलाव तो हो भी रहा है। जैसे सरकार का ‘मिशन कर्मयोगी’ शुरू हुआ है। अभी हम देख रहे हैं कि कुछ लाेग रैंक आने के बाद मर्सिडीज में गांव जाते हैं। यह सेवा वाला भाव नहीं, बल्कि पावर (शक्ति) वाला भाव है। हमारे पास पावर है, यह धारणा खत्म होनी चाहिए, क्योंकि आखिरकार हम पब्लिक सर्वेंट ही होते हैं।

प्रश्न : और कोई ड्रीम विश… मतलब आप क्या बदलना चाहती हैं?

उत्तर : शिक्षा और महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में बढ़िया काम करना चाहती हूं। मेरी चाहत शिक्षा क्षेत्र में थोड़ा-थोड़ा बदलाव लाने की है। एक सिंसियर विद्यार्थी रही हूं और मुझे महसूस होता है कि शिक्षक प्रशिक्षण और शिक्षक की गुणवत्ता में सुधार की गुंजाइश है। हालांकि नई शिक्षा नीति के तहत कुछ बदलाव आए हैं। मेरा मानना है कि महिलाओं को आर्थिक आजादी मिलनी चाहिए। मैं पूर्वी उत्तरप्रदेश से आती हूं। ज्यादातर महिलाएं अपने पिता या पति पर निर्भर रहती हैं। इसे मैं बदलना चाहूंगी। थोड़ा ही सही, लेकिन महिलाओं की खुद की कमाई होनी चाहिए।

प्रश्न : कोई ड्रीम पोस्टिंग… जहां पहुंचने का ख्वाब है?

उत्तर : अभी तो ड्रीम पोस्टिंग का नहीं सोचा है।

प्रश्न : देश की टॉप फोर रैंकर को खाने में सबसे ज्यादा क्या पसंद है?

उत्तर : मुझे स्ट्रीट फूड पसंद है। गोलगप्पे, ब्रेड पकौड़ा आदि बहुत खाती हूं। यह अलग बात है कि स्ट्रीट फूड खाकर मैं बीमार भी हुई हूं।

Created On :   9 Jun 2023 2:09 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story