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रणसंग्राम: बाण, मशाल और खान के बीच मतदाता हैरान , औरंगाबाद में त्रिकोणीय मुकाबला
- एआईएमआईएम सीट बचाने लगा रही जोर
- दोनों शिवसेना वापसी के लिए झोंक रहीं ताकत
- औरंगाबाद शुरू में था कांग्रेस का गढ़
संजय देशमुख, संभाजीनगर (औरंगाबाद)। 35 साल पहले अविभाजित शिवसेना ने संभाजी नगर (औरंगाबाद) में ‘बाण बनाम खान’ के मुद्दे को उछाला और हिंदुत्व की अपील करते हुए मराठवाड़ा में एन्ट्री की। वर्ष 2019 तक अविभाजित शिवसेना की जीत का परचम अबाधित रहा। ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के इम्तियाज जलील ने शिवसेना के गढ़ में सेंध लगायी और मामूली अंतर से शिवसेना को अप्रत्याशित हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में यह पहला मौका है, जब दो फाड़ हुई शिवसेना एक-दूसरे के खिलाफ ताल ठोंक रही हैं। छठवीं बार चुनाव लड़ रहे शिवसेना (उद्धव) के पूर्व सांसद चंद्रकांत खैरे, शिवसेना (शिंदे) के और जिले के पालकमंत्री संदीपान भुमरे और वर्तमान सांसद इम्तियाज जलील के बीच यहां त्रिकोणीय मुकाबला होने जा रहा है। दोनों शिवसेना में औरंगाबाद का नाम बदलकर संभाजी नगर करने का श्रेय लेने से लेकर बालासाहब ठाकरे की असली ‘शिवसेना’ होने की बात साबित करने की होड़ मची हुई है। महाराष्ट्र में पहली बार खाता खोलने वाली एआईएमआईएम सीट बचाने के लिए जोर लगा रही, तो शिवसेना (उद्धव) वापसी के लिए ताकत झोंक रही है। उधर, राज्य सरकार ने भले ही औरंगाबाद का नाम बदलकर संभाजी नगर कर दिया हो, लेकिन चुनाव आयोग के रिकॉर्ड में औरंगाबाद लोकसभा ही नाम दर्ज है।
शिवसेना का गढ़ रहा है संभाजी नगर : औरंगाबाद शुरू में कांग्रेस का गढ़ था, जब शिवसेना ने मुंबई के बाहर विस्तार करने का फैसला किया तो बालासाहेब ठाकरे ने इस शहर को शिवसेना के विचारों के लिए उपजाऊ जमीन के रूप में चुना। मुंबई और ठाणे के बाद यह सीट अविभाजित शिवसेना के गढ़ों में से एक बन गई। वर्ष 1989 के बाद से अविभाजित शिवसेना ने औरंगाबाद में छह बार जीत हासिल की है। तत्कालीन शिवसेना विधायक खैरे एक मजबूत शख्सियत के रूप में उभरे। खैरे, लिंगायत बोरुड समाज से आते हैं, जिनके मतदाताओं की संख्या केवल हजारों में हैं, लेकिन हिंदुत्व के नाम पर बैरिस्टर अंतुले से लेकर कई दिग्गज कांग्रेसियों को हराकर खैरे ने चारों चुनाव जीते। इस लोकसभा सीट के लिए शिवसेना (उद्धव) के नेता व विधान परिषद में विपक्ष के नेता अंबादास दानवे की भी दिलचस्पी थी और उन पर वर्ष 2019 के चुनाव में चंद्रकांत खैरे की हार के लिए जिम्मेदार होने का आरोप है। चंद्रकांत खैरे का यह अंतिम चुनाव माना जा रहा है। उनके बाद संभाजी नगर का नेतृत्व अंबादास दानवे के हाथों में होगा। दानवे कुशल संगठक हैं। शिवसेना में विभाजन के बाद औरंगाबाद (मध्य), औरंगाबाद (पश्चिम) और वैजापुर का प्रतिनिधित्व करने वाले जिले के चार शिवसेना विधायकों में से तीन शिंदे खेमे में शामिल हो गए। चौथे विधायक उदयसिंह राजपूत (कन्नड़) विपक्षी शिवसेना (उद्धव) के साथ हैं।
भाजपा-एआईएमआईएम ने अटकाया करोड़ का प्रकल्प : विकास नहीं किया होता तो पांच बार चुनकर नहीं आता था। जायकवाड़ी बांध से शहर के लिए 792 करोड़ का जलापूर्ति का प्रकल्प मंजूर किया गया। भाजपा और एआईएमआईएम के विरोध के कारण देरी हो रही है। -चंद्रकांत खैरे, प्रत्याशी (उद्धव)
एआईएमआईएम की विजय तय : एआईएमआईएम दूसरी बार विजयी होगी। जालना रोड पर 400 बेड का अस्पताल बनवाने से लेकर शहर में पिछले पांच साल में अनेक विकास कार्य हुए हैं। लोगों के संपर्क में लगातार बना रहा हूं। सभी समाज का समर्थन मुझे मिल रहा है। -इम्तियाज जलील सैय्यद, सांसद व प्रत्याशी एआईएमआईएम
भाजपा की उम्मीदों पर फेरा पानी : भाजपा के मतदाताओं को इस बात का दुख है कि उन्हें कभी भी लोकसभा चुनाव में पार्टी के प्रत्याशी को वोट डालने का अवसर नहीं मिला। इस बार भाजपा नेताओं को उम्मीद थी कि संभाजी नगर की सीट उनके खाते में आएगी। आलाकमान से भी संकेत मिले थे। केन्द्रीय मंत्री भागवत कराड ने पन्ना प्रमुख से लेकर बूथ संगठन की तैयारियां तक कर ली थीं, लेकिन मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने भाजपाइयों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। शिंदे ने मंगलवार को भुमरे के लिए सभाएं कीं।
सबके अपने-अपने दावे : एआईएमआईएम की पूर्व पार्षद नसीम बी हाजी सांडू खान ने बताया कि इम्तियाज जलील ने शोभायात्रा के दौरान हुए दंगे में जान पर खेलकर लोगों की जान बचायी थी। समाज के लिए जलील मददगार बनकर उभरे हैं। भाजपा के जिला महासचिव मुकेश जैन संभाजी नगर से भाजपा को सीट नहीं मिलने के कारण पहले नाराज थे, लेकिन मंत्री अतुल सावे के समझाने के बाद संगठन के पदाधिकारी प्रचार कार्य में जुट गए हैं। आध्यात्मिक आघाडी के समन्वयक महाराष्ट्र प्रांत दयाराम राजाराम बसैये कहते हैं कि भले ही भाजपा का उम्मीदवार नहीं है, लेकिन राष्ट्रनिर्माण के कार्य में नरेंद्र मोदी को वोट देना है। कैनाट व्यापारी संघ एसोसिएशन के अध्यक्ष और औरंगाबाद जिला व्यापारी महासंघ के उपाध्यक्ष ज्ञानेश्वर अप्पा खरडे ने बताया कि रोजगार के साधन नहीं होने से युवाओं का पुणे में पलायन हो रहा है। एम्स की घोषणा भी कागजों पर ही है।
मतों के विभाजन पर है निर्भर जीत-हार का गणित : मराठवाड़ा का केन्द्र बिंदु संभाजी नगर है। यहां 40 प्रतिशत मराठा, 30 प्रतिशत मुस्लिम, शेष अन्य समाज है। खैरे की छवि धार्मिक नेता के तौर पर है। धार्मिक आयोजनों में वे खुले हाथों से मदद करते हैं। संदीपान भुमरे पैठण से विधायक हैं, जो जालना लोकसभा क्षेत्र में आता है, लेकिन भुमरे संभाजी नगर जिले के पालकमंत्री हैं। पालकमंत्री के तौर पर किए गए विकास कार्यों के भरोसे वे जनता के बीच जा रहे हैं। पत्रकार से नेता बने इम्तियाज जलील उच्च शिक्षित हैं। उनकी छवि साफ-सुथरी व अध्ययनशील नेता की है। जलील को उनके समाज के अन्य 8 उम्मीदवारों से भी लड़ना है। एआईएमआईएम के 25 पार्षद चुनकर आए थे। एआईएमआईएम सुप्रीम असदुद्दीन ओवैसी ने यहां दो दिन डेरा डालकर मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में पदयात्रा की।
वंचित आघाडी के उम्मीदवार अफसर खान पूर्व पार्षद हैं। राम मंदिर की शोभायात्रा के दौरान हुए दंगे में गिरफ्तार लोगों को जमानत पर बाहर निकालने के लिए अफसर खान खुलकर सामने आए थे। चुनाव मैदान में 37 उम्मीदवारों में से 9 मुस्लिम हैं। मुस्लिम समाज के मतदाता साढ़े पांच लाख है। इम्तियाज जलील पिछले चुनाव में साढ़े चार हजार वोटों से ही चुनकर आए थे। मुस्लिम वोटों का बंटवारा हुआ तो जलील की राह मुश्किल हो सकती है। पांच साल में वर्ष 2019 के चुनाव में चौकोणीय मुकाबला हुआ था। मराठा मुक्ति मोर्चा के माध्यम से मराठा समाज हर्षवर्धन जाधव के पक्ष में खड़ा था। जिन्हें 2 लाख से अधिक वोट मिले थे। मतों के विभाजन का फायदा इम्तियाज जलील को हुआ था। पांच साल में जाधव की विश्वसनीयता में कमी आयी है। कांग्रेस प्रत्याशी रहे कांग्रेस के सुभाष जाम्बद करीब नब्बे हजार वोटों के साथ चौथे स्थान पर रहे थे। पिछले चुनाव में वंचित बहुजन आघाडी और एआईएमआईएम के बीच गठबंधन था। दोनों ने अपनी राहें अलग कर ली हैं। संभाजी नगर में भी जरांगे पाटील के मराठा आरक्षण आंदोलन का असर देखने को मिल रहा है।
Created On :   9 May 2024 12:36 PM IST