Satna News: जगतदेव जलाशय जहां ब्यूटीफिकेशन के नाम पर डूब चुके हैं स्मार्ट सिटी फंड के 1.60 करोड़ रुपए
- स्वामित्व संबंधी निराकरण हाईकोर्ट में प्रक्रियाधीन है।
- जानकारों का कहना है कि अगर स्वामित्व के विवाद को शुरू में ही नजरअंदाज नहीं किया जाता तो आज यह स्थिति नहीं बनती
- जन सुविधाओं के विकास के लिए स्मार्ट सिटी फंड से 8.08 करोड़ की कार्ययोजना बनाई गई थी।
Satna News: जिला मुख्यालय के मध्यभाग पर स्थित यह वही प्राचीन जगतदेव जलाशय है , जिसके ब्यूटीफिकेशन के नाम पर स्मार्ट सिटी फंड के अब तक १ करोड़ ५९ लाख ९४ हजार रुपए डूब चुके हैं? जानकारों के मुताबिक मालिकाना हक के झगड़े के कारण यह प्रोजेक्ट लगभग ९ माह से बंद पड़ा है। मामला एमपी हाईकोर्ट में विचाराधीन है। इन्हीं जानकारों के मुताबिक १४ एकड़ भूमि पर विस्तृत इसी जलाशय परिसर में ग्रीन बेल्ट , बेंडर जोन, वॉक-वे, सोलर ट्री, फूड कोर्ट, वोटिंग और टायलेट और अन्य जन सुविधाओं के विकास के लिए स्मार्ट सिटी फंड से ८.०८ करोड़ की कार्ययोजना बनाई गई थी। इसके लिए वर्ष २०२१ की १३ अगस्त को ७.२७ करोड़ का वर्क आर्डर जारी किया गया था। तब टाइम लिमिट १२ माह तय की गई थी।
आफिस में बैठ कर साइट तय करने से आई ये नौबत
जानकारों के मुताबिक स्मार्ट सिटी के स्वयंभू सूरमाओं, कंसल्टेंट एजेंसी टीसीईएस के जिम्मेंदारों और विद्वान अभियंताओं के तिगुटे ने करोड़ों के प्रोजेक्ट की साइट तय करने से पहले न तो स्थल निरीक्षण की जरूरत समझी और न ही ब्यूटीफिकेशन के लिए प्रस्तावित जगतदेव जलाशय के स्वामित्व संबंधी स्थितियों की पुष्टि की। इन गैर जिम्मेदारों को जब कोर्ट केस का होश आया तब तक इस प्रोजेक्ट की वित्तीय प्रगति डेढ़ करोड़ के पार जा चुकी थी। फिलहाल काम बंद है। स्वामित्व संबंधी निराकरण हाईकोर्ट में प्रक्रियाधीन है।
साइट क्लीयर करना आखिर किसकी जिम्मेदारी
करोड़ों के ब्यूटीफिकेशन के लिए स्थल चयन स्मार्ट सिटी के जिन अधिकारियों की जिम्मेदारी थी, साइट क्लीयर कराना भी उन्हीं की जिम्मेदारी है? इन दोनों गुनाहों से फिलहाल शासन को १ करोड़ ५९ लाख ९४ हजार की चोट पड़ी है। जानकारों का कहना है कि अगर स्वामित्व के विवाद को शुरू में ही नजरअंदाज नहीं किया जाता तो आज यह स्थिति नहीं बनती। काम बंद होने की दिसंबर २०२३ की स्थिति में भौतिक प्रगति ३० प्रतिशत और वित्तीय प्रगति २२ फीसदी थी।
फैक्ट फाइल
जगतदेव जलाशय: ब्यूटीफिकेशन
वर्क कास्ट : ७.२७ करोड़
(१३ अगस्त २०२१)
टाइम लिमिट
(१२ माह )
अब तक व्यय
१ करोड़ ५९ लाख ९४ हजार
प्रस्तावित कार्य
ग्रीन बेल्ट डेवलपमेंट , बेंडर जोन, वॉक-वे, सोलर ट्री, फूड कोर्ट, वोटिंग , टायलेट एवं अन्य जन सुविधाओं का विकास
मौजूदा स्थिति
स्वामित्व विवाद के निराकरण के लिए प्रकरण हाईकोर्ट में विचाराधीन
अकेला नमूना नहीं: धवारी तालाब का भी यही हाल
२.८२ करोड़ खर्च होने के बाद भी बंद पड़ा है काम, मगर दोषियों के विरुद्ध आरोप तक तय नहीं
स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत जलाशयों के ब्यूटीफिकेशन के वर्क आर्डर जारी करने से पहले भू स्वामित्व संबंधी स्थितियों के परीक्षण में घोर लापरवाही का यह अकेला मामला नहीं है। यही हाल धवारी तालाब के प्रोजेक्ट का भी है। लगभग १० एकड़ भूभाग पर विस्तृत इस जलाशय के लिए ५.८४ करोड़ का वर्क आर्डर जनवरी २०२२ में जारी किया गया था। टाइम लिमिट १२ माह तय की गई थी। इसी साल १० जुलाई की स्थिति में इस पर २ करोड़ ८२ लाख ६० हजार रुपए
खर्च कर दिए गए, यह काम भी तब बंद करा दिया गया, जब स्वामित्व संंबंधी दावा हाईकोर्ट पहुंच गया। जानकारों का कहना है कि जगतदेव जलाशय की तरह इस प्रोजेक्ट के वर्क आर्डर से पहले भी संबंधित भूमि के स्वामित्व का परीक्षण नहीं कराया गया। यहां प्रवेश द्वार, घाट डेवलपमेंट, पाथवे, उद्यान, बाउंड्री वाल एवं टॉयलेट का निर्माण कार्य प्रस्तावित है। मगर बावजूद इसके इस मामले में दोषियों के विरुद्ध आज तक आरोप तक नहीं तय किए गए हैं।
फैक्ट फाइल
धवारी तालाब : ब्यूटीफिकेशन
वर्क कास्ट : ५.८४ करोड़
(२७ जनवरी २०२२)
टाइम लिमिट
(१२ माह )
प्रस्तावित कार्य
प्रवेश द्वार, घाट डेवलपमेंट, पाथवे, उद्यान, बाउंड्री वाल एवं टायलेट
अब तक व्यय
२ करोड़ ८२ लाख ६० हजार
मौजूदा स्थिति
स्वामित्व विवाद के निराकरण के लिए प्रकरण हाईकोर्ट में विचाराधीन