आकाशगंगाओं में आणविक और परमाणु हाइड्रोजन के त्रि-आयामी वितरण से तारों के निर्माण और आकाशगंगा के विकास के संकेत मिल सकते हैं!
आकाशगंगाओं में आणविक और परमाणु हाइड्रोजन के त्रि-आयामी वितरण से तारों के निर्माण और आकाशगंगा के विकास के संकेत मिल सकते हैं!
डिजिटल डेस्क | विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय आकाशगंगाओं में आणविक और परमाणु हाइड्रोजन के त्रि-आयामी वितरण से तारों के निर्माण और आकाशगंगा के विकास के संकेत मिल सकते हैं| एक वैज्ञानिक ने पृथ्वी की एक करीबी आकाशगंगा में आणविक और परमाणु हाइड्रोजन के त्रि-आयामी वितरण का अनुमान लगाया है जिनसे तारों के निर्माण की प्रक्रियाओं और आकाशगंगा के विकास के संकेत पाने में मदद मिल सकती है। हम जिस आकाशगंगा में रहते हैं, उसकी तरह की आकाशगंगाओं में तारे, आणविक और परमाणु हाइड्रोजन और हीलियम युक्त डिस्क होते हैं। आणविक हाइड्रोजन गैस अलग-अलग क्षेत्रों में अपने आप ढह जाती है, जिससे तारे बनते हैं, इसका तापमान कम पाया गया जो 10 केल्विन के करीब, या -263 डिग्री सेल्सियस है और मोटाई लगभग 60 से 240 प्रकाश-वर्ष है। परमाणु हाइड्रोजन डिस्क के ऊपर और नीचे दोनों तरफ फैला हुआ है। हालांकि, पिछले दो दशकों में अधिक संवेदनशील निरीक्षणों ने खगोलविदों को हैरान कर दिया है।
उन्होंने अनुमान लगाया है कि आणविक हाइड्रोजन डिस्क से दोनों दिशाओं में लगभग 3000 प्रकाश-वर्ष तक फैली हुई है। यह गैसीय घटक डिस्क को फैलाकर रखने वाले घटक की तुलना में गर्म होता है और इसमें तुलनात्मक रूप से कम घनत्व होता है, इस वजह से ये पहले के निरीक्षणों से बच गए। उन्होंने इसे आणविक डिस्क का "बिखरा हुआ" घटक कहा है। यह स्पष्ट नहीं है कि डिस्क का यह बिखरा हुआ घटक कुल आणविक हाइड्रोजन का कितना बड़ा हिस्सा है। एक नए अध्ययन में, भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के स्वायत्त संगठन, रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट (आरआरआई), बेंगलुरु के एक शोधकर्ता ने कंप्यूटर पर गणितीय गणना की है और संकीर्ण एवं विखरे हुए गैसीय घटकों के अनुपात को कम करने के लिए पास की एक आकाशगंगा से जुड़े सार्वजनिक रूप से उपलब्ध खगोलीय डेटा का उपयोग किया है। डीएसटी, भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित अध्ययन, रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी के मंथली नोटिसेज पत्रिका में प्रकाशित हुआ था।
शोधकर्ता नरेंद्र नाथ पात्र ने कहा, "आणविक हाइड्रोजन गैस गुरुत्वाकर्षण के खिंचाव के तहत अलग-अलग तारों में बदल जाती है, इस प्रकार इनसेतारों के निर्माण की प्रक्रियाओं और आकाशगंगा के विकास का संकेत मिल सकता है।" अगर गैस का एक महत्वपूर्ण हिस्सा कुछ सौ प्रकाश-वर्ष की पतली डिस्क से आगे बढ़ता है, तो यह समझा जा सकता है कि खगोलविद गैलेक्टिक डिस्क के लंबवत कुछ हजार प्रकाश-वर्ष पर सितारों का निरीक्षण क्यों करते हैं। उन्होंने कहा कि यह समझना भी आवश्यक है कि गैस के दो घटक क्यों हैं, और शायद इनसे सुपरनोवा या विस्फोट करने वाले तारों के स्पष्ट संकेत मिल सकते हैं। नरेंद्र ने अध्ययन के लिए आकाशगंगा से लगभग दो करोड़ प्रकाश वर्ष दूर स्थित एक अकेली आकाशगंगा पर ध्यान केंद्रित किया।
ब्रह्मांड के 10 अरब से अधिक प्रकाश वर्ष के आकार की तुलना में दूरी अपेक्षाकृत कम है। आकाशगंगा की निकटता दूरबीन के साथ निरीक्षण करने को आसान बनाती है, और कार्बन मोनोऑक्साइड (सीओ) की वर्णक्रमीय रेखाएं सार्वजनिक अनुसंधान के लिए उपलब्ध हैं। नरेंद्र ने कहा, "कार्बन मोनोऑक्साइड अणु आणविक हाइड्रोजन का सटीक पता लगाने के लिए जाना जाता है, जिसकी वर्णक्रमीय रेखाओं का निरीक्षण करना अधिक कठिन होता है। मैंने जो आकाशगंगा चुनी है, वह मिल्की वे की तरह है और इसलिए डिस्क के बिखरे हुए एवं पतले घटकों के अनुपात का अध्ययन करने के लिए दिलचस्प है।" शोधकर्ता ने कार्बन मोनोऑक्साइड अणु की प्रेक्षित वर्णक्रमीय रेखाओं का उपयोग संकीर्ण डिस्क घटक और आणविक हाइड्रोजन के बिखरे हुए घटक दोनों के त्रि-आयामी वितरण का अनुमान लगाने के लिए किया।
यह अनुमान लगाते हुए कि आकाशगंगा के केंद्र से दूरी के साथ दो घटकों का अनुपात कैसे बदलता है, उन्होंने पाया कि बिखरा हुआ घटक आणविक हाइड्रोजन का लगभग 70 प्रतिशत बनाता है, और यह अंश डिस्क की त्रिज्या के साथ लगभग स्थिर रहता है। नरेंद्र ने कहा, "यह पहली बार है जब किसी भी आकाशगंगा के लिए इस तरह की कोई गणना की गई है।" यह विधि हालांकि नयी है और उन गणनाओं पर निर्भर करती है जो सार्वजनिक रूप से उपलब्ध डेटा की सहायता से कंप्यूटर पर की जा सकती हैं। इसलिए, नरेंद्र पहले से ही आस-पास की अन्य आकाशगंगाओं पर इसका इस्तेमाल करने में लगे हुए हैं। उन्होंने कहा, “इस समय आरआरआई में हमारा समूह आठ आकाशगंगाओं के एक समूह के लिए एक ही रणनीति का इस्तेमाल कर रहा है, जिनकी कार्बन मोनोऑक्साइड रेखाएं उपलब्ध हैं।