श्मशान घाट की खाली जगह पर ऐसी बगिया सजाई कि लोग पिकनिक मनाने आने लगे
श्मशान घाट की खाली जगह पर ऐसी बगिया सजाई कि लोग पिकनिक मनाने आने लगे
डिजिटल डेस्क,शहडोल। श्मशान घाट का नाम सुनते ही आंखों के सामने खण्डहरनुमा वीरान स्थान, जलती चिता और उसकी राख की तस्वीर ही उभरती है। शहडोल में एक ऐसा श्मशान घाट यानि स्वर्गधाम है जहां अंतिम यात्रा में शामिल हो कर पहुंचने वाले लोग सुकून तो महसूस करते ही हैं, कई लोग तो यहां मॉर्निंग वॉक करने और तो और पिकनिक मनाने तक पहुचने लगे हैं। इस स्वर्गधाम के आकर्षण का केन्द्र वह बगिया है जिसे इसी शहर के रहने वाले 58 वर्षीय कैलाश गुप्ता ने अपने अथक मेहनत से संवारा है।
स्वर्गीय मॉ थी प्रेरणा
शहर से 3 किलोमीटर दूर पंचगांव रोड स्थित श्मशान घाट के पीछे की पुरानी बस्ती मे रहने वाले कैलाशचंद्र गुप्ता बताते हैं कि उनकी माताजी का देहांत के बाद अंतिम संस्कार यहीं हुआ था। यहां आए तो समझ आया कि हर इंसान का सफर यहीं आकर समाप्त होता है। तो सोचा कि क्यों न जीवित रहते ही ऐसा कुछ किया जाए कि जब लोग यहां आएं तो उन्हें सुकून का अहसास हो। अंदर के इस अहसास ने संकल्प का रूप लिया और वे इस श्मशान घाट को स्वार्गधाम में बदलने जुट गए। महज ढाई साल भीतर उन्होंने अपनी मेहनत व लगन से श्मशान घाट की खाली पड़ी जमीन पर एक शानदार बगिया बना दी। पक्की सीसी रोड और उसके दोनों ओर पेड़-पौधे भी लगा कर इसे शानदार बगिया में बदल दिया। बाहर से देखने पर यह हरा-भरा बाग सा दिखता है। अंदर जाने के बाद ज्ञात होता है कि यह पार्क नहीं श्मशान घाट है, जिसे स्वार्गधाम में बदल दिया गया है।
आधी कमाई व दिन के 6 घंटे स्वर्गधाम के नाम
बस्ती में ही परचूनी और सब्जी की छोटी सी दुकान से होने वाली जितनी भी आय होती है कैलाश गुप्ता उसका आधा हिस्सा स्वर्गधाम में लगा देते हैं। यही नहीं पिछले ढाई साल से वे सुबह-शाम मिला कर हर दिन 6 घंटे का समय स्वर्गधाम की बगिया संवारने में लगाते हैं। एक अकेले के इस हौसले को देख वार्ड के कुछ और लोग भी आगे आए। पार्षद इसहाक खान व उमाकांत आठिया, कप्तान सिंह, रामजी श्रीवास्तव, धर्मेंद्र शुक्ला व अरविंद जैन आदि लोगों की की मदद से परिसर की जमीन का समतलीकरण कराया। नपा प्रशासन ने चारदीवारी बनवा दी। तरह-तरह के पौधे रोपे गए। यहां अमरूद, आंवला, अनार, नीबू व नीम ही नहीं शहतूत, काजू, गुलमोहर के पौधे लगे हुए हैं।