पीकेवी की फसल प्रजातियों को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता
अकोला पीकेवी की फसल प्रजातियों को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता
डिजिटल डेस्क, अकोला. कृषि शिक्षा व संशोधन के विस्तार कार्य में डा पंजाबराव देशमुख कृषि विश्वविदयालय प्रयासरत है। इसी कड़ी में पीकेवी के संशोधान विभाग द्वारा समय के अनुसार फसलों की प्रजातियों पर प्रयोग कर उसकी शिफारस की गई थी। पीकेवी द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिलने के कारण पीकेवी के विशेषज्ञों का प्रयास सफल हो रहा है। विशेषज्ञों का यह प्रयास किसानों की आय बढाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली की फसलों की प्रजातियों के प्रसारण उपसमिति की बैठक का आयोजन किया गया था। इस बैठक में डा पंजाबराव देशमुख कृषि विश्वविदयालय की ओर से तीन फसलों को मान्यता मिलने के लिए अनुशंसा की गई थी।
जिसमें तुवर फसल के लिए पीडीकेवी आश्लेषा, ज्वार फसल ररब्बी हुरडा के लिए ट्राम्बे अकोला सुरूची तथा चावल के लिए पीकेवी साधना का समावेश है। तुवर फसल में पीडीकेवी के आश्लेषा मध्यम काल में परिपक्व होने वाला(174 से 178 दिन) फायटोप्थेरा, करपा, मॅकोफोमिना करपा, पत्तियों पर सर्कोसपोरा इन कीटकों के मध्यम प्रतिकार क्षमता वाली फसल है। इस फसल में 20 प्रतिशत प्रथिने व 74 प्रतिशत दाल के साथ अधिक उत्पादन औसतन 12 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर देने वाली फसल है। अकोला सुरूचि फसल की प्रति हेक्टेयर 43 क्विंटल उत्पादन के साथ 91 दिन में परिपक्व हो जाती है। रब्बी मौसमें हुरडया की फसल संपूर्ण महाराष्ट्र में प्रसारित हुआ है। ग्रामीण किसानों के अधिक आय बढाने की बिकेगा तो होगी बुआई की संकल्पना को साकार करने में महत्वपूर्ण फसल है। चावल में पीकेवी साधना लंबी बारीक दाना है इसके पत्तों पर करपा व खोड कीटक से लडने की क्षमता है यह फसल 118 से 120 दिनों में प्रति हेक्टेयर 45 से 50 क्विंटल की उपज होती है। पीकेवी के तत्कालीनउपकुलपति डा विलास भाले, वर्तमान में कार्यरत उपकुलपति डा शरद गड़ाख के मार्गदर्शन में संशोधन संचालक डा विलास खर्चे की अगुवाई में ज्वार संशोधन केंद्र के प्रमुख विशेषज्ञ डा रामेश्वर घोराडे, दलहन संशोधन विभाग के वरिष्ठ विशेषज्ञ डा विजय गावंडे, व कृषि संशोधन केंद्र साकोती के वरिष्ठ डा गौतम श्यामकुंवर के अलावा, दलहन व चावल संशोधन केंद्र के सभी विशेषज्ञ, अधिकारियों तथा कर्मचारियों ने प्रयास किया जिसमें उन्हें सफलता मिली।
एक गांव एक फसल की योजना
प्रा डा शरद गड़ाख उपकुलपति, पीकेवी के मुताबिक ज्वार के साथ दलहन व तिलहन फसल का क्षेत्र बढाने के लिए हरसंभव प्रयास किया जायेगा। राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त इन फसलों के चलते खेती के लिए काफी लाभदायक है। आगामी दिनों में एक गांव एक फसल की संकल्पना को संचालित करते हुए उपरोक्त फसलों का प्रात्याक्षिक गांव में जाकर किया जाने का प्रयास किया जायेगा।