कबाड़ बन गए पैनल, अधिकांश में जंग लगी तो कुछ चोरी हुए, 3 वर्ष बाद भी नहीं मिली बिजली

जिले के 80 स्कूलों में लगाए गए सोलर पैनल, एक की लागत थी डेढ़ लाख रुपए कबाड़ बन गए पैनल, अधिकांश में जंग लगी तो कुछ चोरी हुए, 3 वर्ष बाद भी नहीं मिली बिजली

Bhaskar Hindi
Update: 2021-10-05 10:08 GMT
कबाड़ बन गए पैनल, अधिकांश में जंग लगी तो कुछ चोरी हुए, 3 वर्ष बाद भी नहीं मिली बिजली

डिजिटल डेस्क शहडोल । स्कूलों को बिजली उपलब्ध कराने और बिजली बिल शून्य करने के उद्देश्य से लाखों रुपए की लागत से लगाए गए सोलर पैनल बेकार होते जा रहे हैं। करीब तीन वर्ष पहले स्कूलों की छत पर लगाए गए इन सोलर पैनल से अब तक बिजली का उत्पादन शुरू नहीं हो सका है। कुछ स्कूलों से तो पैनल चोरी भी हो गए हैं। दूसरी ओर स्कूलों का बिल जमा करना पडऩा रहा है। बहुत से स्कूलों का बिल बकाया भी है। जानकारी के अनुसार वर्ष 2018 से 2019 के बीच में जिले के 80 स्कूलों में सोलर पैनल की स्थापना की गई थी। इनमें अधिकतर हायर सेंकेडरी स्कूल, हाई स्कूल, सभी मॉडल स्कूल और उत्कृष्ट विद्यालय शामिल हैं। स्कूल की छतों में होल करते हुए इन्हें स्थापित किया गया था। उद्देश्य था स्कूलों के बिजली बिल को खत्म करना और अनवरत रूप से बिजली उपलब्ध कराना। करीब तीन वर्ष बाद सिर्फ दो स्कूलों में इसका संचालन शुरू हुआ है। अन्य स्कूलों में इसके संचालन के मुताबिक बिजली का लोड ही नहीं है। लोड बढ़ाने के लिए पैसे जमा करने पड़ेंगे, जिसके लिए स्कूल तैयार नहीं।  
स्कूलों में 5 व 10 किलोवाट क्षमता के लगाए गए हैं पैनल
स्कूल भवनों में जरूरत के हिसाब से पांच किलोवाट और 10 किलोवाट बिजली उत्पादन की क्षमता वाले सोलर पैनल लगाए गए हैं। पांच किलोवाट की क्षमता वाले सोलर पैनल को लगाने में करीब डेढ़ लाख रुपए और 10 किलोवाट की क्षमता वाले पैनल को लगाने में करीब 3 लाख रुपए खर्च किए गए थे। इस तरह 80 स्कूलों में करीब डेढ़ करोड़ रुपए की लागत से इनकी स्थापना की गई थी। इसकी पूरी राशि ऊर्जा विकास निगम के माध्यम से राज्य शासन से मिली थी। एक एजेंसी सोलेक्स ने ही सभी स्कूलों में इसे स्थापित किया था। इसका संचालन शुरू कराने की जिम्मेदारी भी कंपनी की है। इसका संचालन शुरू न होने के पीछे का सबसे बड़ा कारण स्कूलों में बिजली का लोड कम होना है। कंपनी के कर्मचारियों के अनुसार 10 स्कूलों का लोड बढ़ा है। इनमें नेट मीटर लगाय जाना है।
स्कूलों का बिजली बिल भी बकाया, ऑफलाइन भी नहीं बढ़ रहा लोड  
जब इस संबंध में संबंधित कंपनी के राजेश भरदवा से बात की गई तो उनका कहना था कि जिन स्कूलों में सोलर पैनल लगाए गए हैं, उनका बिजली का लोड काफी कम है। किसी स्कूल में एक किलोवाट का लोड है तो किसी में डेढ़ किलोवाट का, जबकि पांच व 10 किलोवाट का लोड चाहिए। वहीं स्कूलों में बिजली का बिल भी बकाया है। डिमांड निकलता है तो पेमेंट करना पड़ता है, लेकिन कोई पेमेंट कर नहीं रहा। अधिकारियों को लोड बढ़वाने के लिए कई बार पत्र लिखा गया है। ऊर्जा विकास निगम के अधिकारी भी पत्र लिख चुके हैं व बात कर चुके हैं। इसको ऑफलाइन भी किया जा सकता है। जो राशि निकलेगी वह बिल में जुड़ जाएगी। इसके लिए भी बात की गई लेकिन बिजली कंपनी के अधिकारी तैयार नहीं है। उन्होंने बताया कि जहां पैनल चोरी चले गए हैं, वहां नया पैनल लगाया जाएगा। इसके संचालन के संबंध में उन्होंने बताया कि स्कूलों में सोलर पैनल से उत्पन्न होने वाली बिजली को पॉवर ग्रिड भेजा जाएगा। इसके आंकलन के लिए स्कूलों में नेट मीटर लगाया जाएगा। हर माह स्कूलों की खपत की बिजली इसमें एजस्ट करके बाकी के बिल भुगतान करना होगा। अगर ज्यादा बिजली पॉवर ग्रिड को जाती है तो वह क्रेडिट हो जाएगा। उस बिजली को अगले महीने की खपत में समायोजित कर दिया जाएगा।
इनका कहना है
जिले के दो-तीन स्कूलों में इसकी शुरुआत हो गई है। अन्य स्कूलों में बिजली का लोड काफी कम है और पुराना बिल भी बकाया है। इस वजह से संचालन शुरू नहीं हुआ है। इसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं। बिजली का लोड बढ़ते ही नेट मीटर लगाते हुए संचालन शुरू कर दिया जाएगा।
रितेश शुक्ला, ऊर्जा विकास निगम

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