बाजरा आधारित डी-हुलर मशीन ने मूल्यवर्द्धित उत्पादों के जरिए उत्तराखंड के ग्रामीण इलाकों की किस्मत बदली!

बाजरा आधारित डी-हुलर मशीन ने मूल्यवर्द्धित उत्पादों के जरिए उत्तराखंड के ग्रामीण इलाकों की किस्मत बदली!

Bhaskar Hindi
Update: 2021-04-09 11:02 GMT
बाजरा आधारित डी-हुलर मशीन ने मूल्यवर्द्धित उत्पादों के जरिए उत्तराखंड के ग्रामीण इलाकों की किस्मत बदली!

डिजिटल डेस्क | विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय बाजरा आधारित डी-हुलर मशीन ने मूल्यवर्द्धित उत्पादों के जरिए उत्तराखंड के ग्रामीण इलाकों की किस्मत बदली| उत्तराखंड में देहरादून के इर्दगिर्द के ग्रामीण इलाकों से पैक किए हुए और ब्रांडेड बाजरा आधारित कुकीज़, रस, स्नैक्स और नाश्ते के अनाज आसपास के इलाकों के ग्रामीण, शहरी और स्थानीय बाजारों में अपनी पैठ बनाते हुए जोरदार तरीके से इन इलाकों के बाजरा किसानों की किस्मत बदल रहे हैं और यहां की बाजरा की खेती को फिर से जीवित कर रहे हैं। इस बदलाव के केंद्र में मल्टी – फीड बाजरा आधारित डी-हुलर मशीन है, जिसने बाजरे से भूसी को हटाने की लंबी एवं श्रमसाध्य पारंपरिक प्रक्रिया को सरल बनाया है, उत्पादकता को बढ़ाया है और गांव या गांवों के क्लस्टर के स्तर पर मूल्यवर्द्धित बाजरा के आटे की आपूर्ति की है, जिससे आगे के अन्य मूल्यवर्द्धित उत्पाद भी बनाए जा सकते हैं।

उपभोक्ताओं की मांग में गिरावट और उनके द्वारा चावल एवं गेहूं जैसे प्रमुख अनाजों को तरजीह दिए जाने के कारण बाजरे की खेती में लंबे समय से गिरावट आती जा रही है। हालांकि, पिछले कुछ समय से बाजरा और पोषक तत्व वाले अन्य अनाज स्वास्थ्य की दृष्टि से अपने लाभकारी गुणों के कारण लोकप्रियता हासिल कर रहे हैं। लेकिन उपभोक्ताओं के आकर्षण के साथ इन अनाजों के पैक किए गए उत्पादों को अभी भी बाजार में पर्याप्त पहचान नहीं मिल पाई है। ग्रामीण इलाकों में इन उत्पादों को बनाने की तकनीकें भी अविकसित हैं। इस क्रम में एक महत्वपूर्ण काम इन अनाजों से भूसी को हटाना है,

जिसे हाथ से कुटाई के जरिए करने पर यह बेहद ही उबाऊ प्रक्रिया बन जाती है। खासकर, उन महिलाओं के लिए जो आमतौर पर इस काम को करती हैं। सेंटर फॉर टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट (सीटीडी), जोकि सोसाइटी फॉर इकोनोमिक एंड सोशल स्टडीज का एक प्रभाग है और भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के स्कीम फॉर इक्विटी एम्पावरमेंट एंड डेवलपमेंट (SEED) प्रभाग की तारा योजना के तहत एक कोर सहायता समूह है, ने तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय और केंद्रीय कृषि इंजीनियरिंग संस्थान द्वारा विकसित मल्टी-फीड बाजरा आधारित डी-हुलर मशीनों को ज़रूरतों के अनुरूप रूपांतरित किया है।

इस संस्थान ने डी-हुलर मशीन में कुछ साधारण सुधारों को संभव बनाने के उद्देश्य से इसके डिज़ाइन में हल्का बदलाव किया गया है ताकि एक ही मशीन के इस्तेमाल से बाजरे (मिलेट) की कई किस्मों जैसे कि फिंगर मिलेट (दक्षिण में रागी या उत्तराखंड में मंडुआ), बर्न्यार्ड मिलेट (यूके में झंगोरा) तथा कुछ और इलाकों की बाजरे की कुछ अन्य किस्मों की भूसी को हटाया जा सके। यह बाजरा आधारित डी-हुलर मशीन बाजरे के मूल्यवर्द्धित उत्पादों के उत्पादन के एक विशिष्ट सीटीडी / एसईएसएस हब-एंड-स्पोक रूरल एंटरप्राइज़ मॉडल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

इस मॉडल में एक हब या ’मातृ’ (मदर) इकाई शामिल है, जो सहसपुर पी.ओ. के सीटीडी / एसईएसएस कैंपस में स्थित है और एसएचजी / एफपीओं या छोटे उद्यमियों द्वारा विकेन्द्रीकृत स्थानों, जहां बाजरे की खेती होती है, पर संचालित मॉड्यूलर ‘सैटेलाइट’ इकाइयों के साथ नेटवर्किंग करता है। गांवों के क्लस्टर के स्तर की ये "सैटेलाइट" इकाइयां डी-हुलर मशीन का उपयोग मूल्यवर्द्धित भूसी – रहित बाजरे का उत्पादन करने के लिए करती हैं, जिन्हें ग्राइंडर का उपयोग करके मूल्यवर्द्धित बाजरा के आटे का उत्पादन करने के उद्देश्य से प्रसंस्कृत किया जाता है।

इस मूल्यवर्द्धित बाजरा के आटे का उपयोग विभिन्न प्रकार से उत्पादों को बनाने में किया जा सकता है। यह डी-हुलर मशीन 90-95 प्रतिशत की उपज के साथ प्रति घंटे 100 किलो अनाज को भूसी – रहित कर सकता है और ग्राइंडर के साथ मिलकर उपभोग या न्यूनतम रूप से भूसी – रहित बाजरे के मूल्य से दुगने मूल्य पर बिक्री करने की दृष्टि से आटा बनाने के लिए ग्रामीणों को एक साझा सुविधा प्रदान करती है। इस आटे की आपूर्ति सीटीडी / एसईएसएस ‘मातृ इकाई’ (मदर यूनिट), जहां मूल्यवर्द्धित तैयार और पैक किए हुए उत्पादों को बनाने के लिए डी-स्केल्ड मशीनों के साथ एक पूर्ण रूप से विकसित छोटी बेकरी इकाई मौजूद है, को भी की जा सकती है, । यह प्रौद्योगिकी पैकेज और उद्यम मॉडल ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष रूप से छोटे किसानों, जिनमें से अधिकांश बाजरा की खेती करने वाले किसान हैं, के लिए काफी रोजगार और आय पैदा करता है।

Tags:    

Similar News