प्रकृति के सानिध्य में खिली साहित्यिक धूप- कोई गाली भी दे, मुझे गाली नहीं लगती
अकोला प्रकृति के सानिध्य में खिली साहित्यिक धूप- कोई गाली भी दे, मुझे गाली नहीं लगती
डिजिटल डेस्क, अकोला राष्ट्रभाषा सेवी समाज की ओर से आयोजित मासिक गोष्ठी रविवार, ४ दिसंबर को स्थानीय नीमवाड़ी स्थित संस्कृत कान्वेंट के प्रांगण में प्राकृतिक वातावरण में सम्पन्न हुई। इस अवसर पर साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं की धूप से गुलाबी-सी ठंड में सभी को गर्माहट का अहसास कराया। कार्यक्रम की शुरुआत में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रामप्रकाश वर्मा ने गोष्ठी में किए गए परिवर्तनों के कुछ बिन्दुओं पर संक्षिप्त में प्रकाश डाला। वरिष्ठ सहित्यिक डॉ. प्रमोद शुक्ल ने दोहा, छंद, सौरठा एवं चौपाई के संदर्भ में महत्वपूर्ण जानकारी दी। जिसके पश्चात् गोष्ठी की शुरूआत की गई। युवा शायर गोपाल मापारी ने ्गज़ल सुनाकर - हवा इस बाग की अब तक, मुझे बिगड़ी नहीं लगती, यहां से दूर तक शायद कोई बस्ती नहीं लगती। मेरा उर्दू जुबां से राबता कुछ इस तरह का है, कोई गाली भी दे इसमें, मुझे गाली नहीं लगती ने सभी को ऊर्जावान किया। इस अवसर पर अजय प्रकाश रूहाटिया ने कुछ छंद प्रस्तुत किए। शेगांव से पधारे डॉ. संतोष मिश्रा ने अपनी रचना गर्भाशय के माध्यम से एक बेटे की मनोव्यथा प्रस्तुत की। अशोक नेमा ने अपनी गज़ल नफरत सुनाते हुए कहा जेहन में उठते शूलों के जहरीले पौधे यहां पल रहे हैं, संकीर्णता के गुबार, पल प्रतिपल, तीव्रता से चल रहे हैं। कट्टरता का जुनून दिलों दिमाग पर यूं सवार हुआ, भाईचारे के मायने, दिन-ब-दिन में बदल रहे हैं। वर्तमान स्थिति का वर्णन किया। गीता जयंती निमित्त द्वारकाप्रसाद गुप्ता ने सभी को शुभकामनाएं देते हुए कहा, आज से पांच हजार वर्ष पूर्व- महाभारत का युद्ध धर्म और अधर्म , अच्छाई और बुराई, सत्गुण और दुर्गुण की हुई थी लड़ाई। जिसमें श्रीकृष्ण ने अर्जुन से जो बातें कहीं, उनके हर शब्द से दिव्य ज्ञान की गंगा बही। अपनी रचना सुनाई। राजेश्वर बुंदेले ने मराठी भाषा में लघुकथा मयनत (मेहनत) सुनाकर सभी की वाहवाही लूटी। जयंत वोरा ने भी इस अवसर पर काव्यपाठ किया। गज़लकार कृष्णकुमार शर्मा ने कहा इक-दूजे से मिले हैं सब कांटों से गुल खिले हैं सब पेड़ से इक पत्ती है टूटी चांद-सितारे हिले हैं सब सुनाकर सभी की वाहवाही लूटी।
युवा शायर डॉ.दीपक मोहले ने कहा आगे मत जा पागल आगे जंगल है। आगे देख मुसलसल आगे जंगल है थोड़ी-सी आवाज भी जां ले सकती है, उसमें तेरी पायल आगे जंगल है। सुनाकर सभी की तालियां बटोरीं। गोष्ठी के दौरान हास्य-व्यंग्य कवि घनश्याम अग्रवाल ने अलादीन चिराग के किस्से पर आधारित एक लघु व्यंग्य तथा प्रेम व नारी के समर्पण पर एक मार्मिक लघुकथा सुनाई। प्रेम पुरोहित ने हमेशा की तरह ही शानदार एक से बढ़कर एक शेर सुनाकर सभी का दिल जीता। डॉ. प्रमोद शुक्ल ने अपनी रचना नीरसज् के माध्यम से काम निकल जाने के बाद व्यक्ति किस तरह नीरस और अवांछित लगता है, इसका उल्लेख करते हुए कहा कि खरपतवार उग आए हैं चारों ओर इन दिनों शायद बहुत उंचाई तक उड़ा था मैं औपचारिकताओं से सराबोर अंतरिक्ष में... तुलसीराम बोबड़े ने मराठी काव्यपाठ कर उपस्थितों का ज्ञानवर्धन किया। विश्वास भारी जानती हैं जड़ें, माटी है, नहीं जहरी हमारी। गोष्ठी का संचालन डॉ. निशाली पंचगाम ने किया. इस अवसर पर विजय देशमुख, टूली जीवतरामाणी, सत्यनारायण बाहेती, राजन शर्मा एवं मनीष उनवणे सहित साहित्यप्रेमी बड़ी संख्या में उपस्थित थे।