आबादी में 50 फीसदी फिर भी पिछड़ेपन से जूझ रहे आदिवासी
- अपेक्षा के अनुरूप नहीं हुआ विकास
- आबादी में 50 फीसदी
- पिछड़ेपन से जूझ रहे आदिवासी
डिजिटल डेस्क, गोंदिया, प्रमोद महोबिया। जिले की आदिवासी बहुल देवरी तहसील में आदिवासियों की आबादी लगभग 50 फीसदी हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार तहसील की 1 लाख 14 हजार 518 जनसंख्या में आदिवासियों की जनसंख्या 55 हजार 878 हंै। देवरी, चिचगड और ककोडी ब्लाॅक में बंटी इस तहसील में ककोडी और चिचगड क्षेत्र एक ओर जहां 3 दशक से भी अधिक समय से नक्सली आंदोलन के
गढ़ बने हुए हैं, वहीं दूसरी ओर जिला मुख्यालय से अत्यधिक दूर रहने की वजह से आजादी के 75 वर्ष बाद भी विकास के मामले में पिछड़ापन नजर आता है।
ऐसा नहीं है कि सरकार ने क्षेत्र के आदिवासियों के जीवनस्तर को ऊपर उठाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया? हर साल शासन द्वारा इनके विकास के लिए करोड़ों रुपए ख़र्च किए जाते हैं। लेकिन कागज़ों में आदिवासी समाज के उत्थान के लिए प्रतिवर्ष बन रही करोड़ों रुपए की योजना जमीन पर आते-आते भ्रष्टाचार, लालफीताशाही और चंद मुट्ठी भर लोगों के लालच के चलते दम तोड़ती नज़र आती है और यही वजह है कि देवरी तहसील आज भी सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं के मामले में पिछड़ी हुई है।
75 वर्षों में एक पुल तक नहीं बन पाया : देवरी तहसील में चुंभली नदी के दूसरी ओर चिलमटोला गांव बसा हुआ है। लेकिन उस गांव में जाने के लिए आजादी के 75 वर्ष बाद भी न तो नदी पर पुल बनाया गया है और न ही नदी तट तक जाने के लिए सड़क है। देवरी तहसील संभवत: राज्य की पहली तहसील है, जहां वन हक्क प्राप्त ग्राम सभा को उसका संवैधानिक अधिकार दिलाने की मांग को लेकर स्वयं विधायक सहषराम कोरोटे ने कुछ दिन पूर्व वन विभाग कार्यालय के सामने सैकड़ों लोगों के साथ 36 घंटे से भी अधिक समय तक धरना आंदोलन करना किया था।
बात चाहे चिलमटोला की हों या फिर ग्रामसभा के अधिकारो की। यह दोनों उदाहरण है कि यहां हजारों वर्षों से निवास कर जल, जंगल और जमीन को सहेजने वाले आदिवासी समाज के लिए शासन को आज भी बहुत कुछ करना बाकी है।
अपेक्षा के अनुरूप नहीं हुआ विकास
सहषराम कोरोटे, विधायक, आमगांव विधानसभा क्षेत्र के मुताबिक आदिवासी समाज की अपनी संस्कृति और समृद्ध सामाजिक परम्परा रही है। आदिवासियों के जीवन स्तर सुधारने के लिए हमेशा आवाज उठती रही है। इस पर सरकार शिक्षा, सड़क, बिजली, पानी समेत तमाम मदों में करोड़ों-अरबों रुपए का बजट दे रही है। इसके बावजूद भी कहीं न कहीं कोई कमी है, जिससे यह समाज अपेक्षा के अनुरूप तरक्की नहीं कर पा रहा है।
समाज को शिक्षित करना सर्वोपरि
विकास राचेलवार, प्रकल्प अधिकारी, एकात्मिक आदिवासी विकास प्रकल्प कार्यालय के मुताबिक आदिवासी समाज की अपनी गौरवशाली संस्कृति और समृद्ध परम्परा है, तो वहीं रोजगार, शिक्षा जैसे मुद्दे चुनौती बने हुए हैं। आदिवासी समाज को शिक्षित करना सर्वोपरि है और इस पर मैदानी स्तर पर काम किया जा रहा हैं और अब आश्रम स्कूल से भी बच्चे डॉक्टर और इंजीनियर बनने जा रहे हैं। इसलिए एकात्मिक ग्रामीण विकास प्रकल्प कार्यालय देवरी द्वारा पिछले दो वर्षों से शिक्षा स्तर को ऊंचा उठाने के लिए अनेक प्रयास उपक्रमों के साथ प्रयास किए जा रहे हैं। समाज को जागरूक करके ही हम उन्हें संपन्नता की ओर ले जा सकते हैं।