ज्वार को बेहतर दाम मिलने से बढ़ी उम्मीद, असिंचित क्षेत्रों में फसल मौसम पर निर्भर

  • कुछ वर्षों ज्वार फसल की बुआई बंद कर दी थी
  • बेहतर दाम मिलने से बढ़ी उम्मीद

Bhaskar Hindi
Update: 2024-02-06 09:13 GMT

डिजिटल डेस्क, अकोला. प्राकृतिक विपत्तियों तथा वन्यजीवों से त्रस्त होकर किसानों ने कुछ वर्षों ज्वार फसल की बुआई बंद कर दी थी। लेकिन अब किसानों ने ग्रीष्मकालीन मौसम में ज्वार फसल का बुआई करने की ओर आकर्षित हो रहे हैं। जिससे इस वर्ष ग्रीष्मकालीन ज्वार फसल बुआई का क्षेत्र बढ़ने की संभावना है। असिंचित क्षेत्रों में फसल बुआई मौसम पर निर्भर रहती है। जिसके चलते अधिकतर किसान नकद फसल को अधिक महत्व देते हैं।

इसके अलावा सिंचाइ के साधन वाले किसान वर्ष के 12 माह मौसम के अनुसार अपनी खेतों में बुआई करते हैं। विगत कुछ वर्षों से किसान ज्वार फसल की ओर अनदेखी करने लगे हैं क्योंकि प्राकृतिक विपत्ति तथा फसल अंकुरण के पश्चात वन्यजीवों द्वारा फसल को चट कर जाते हैं। ज्वार फसल की बुआई करने वाले किसानों ने कुछ वर्षों से ज्वार की बुआई करना बंद कर दिया था। जिसके चलते किसानों समेत ज्वार की रोटी खाने वाले किसानों को मंहगी ज्वार लेना पड़ रहा था।

वहीं ज्वार फसल की बुआई का क्षेत्र घटने के कारण मवेशियों के चारे की भी किल्लत दिखाई देने लगी थी। जिससे किसानों ने अब ग्रीष्मकालीन ज्वार फसल बुआई करने का निर्णय लिया है। शहर से सटे ग्राम सारकिन्ही समेत अन्य परिसर में ग्रीष्मकालीन ज्वार फसल की बुआई किए जाने के कारण बुआई क्षेत्र बढने की संभावना है तथा ज्वार फसल से पशुओं के चारे की भी किल्लत दूर होगी। इस वर्ष ग्रीष्मकालीन ज्वार फसल के साथ किसानों ने गेहूं चना, मूंगफल्ली व अन्य फसलों की बुआई की है।

इस संदर्भ में खेती करने वाले किसान सदानंद वानखडे ने बताया कि खरीफ मौसम में सभी फसलों से किसानों को निराशा हुई है किंतु रब्बी मौसम में उन्होंने दो एकड जमीन में ज्वार की बुआई की है। ज्वार से अधिक उपज होने की पूरी संभावना भी है।

वहीं दादासिंग चव्हाण ने बतायसा कि रबी के मौसम में दो एकड में ज्वार की बुआई की है। ज्वार फसल के साथ मवेशियों को चारे की भी समस्या से निजात मिल जायेगा।


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