वाराणसी: शिव के त्रिशूल पर टिकी है 'काशी', विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की यात्रा के लिए यहां पढ़ें पूरी जानकारी 

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वाराणसी: शिव के त्रिशूल पर टिकी है 'काशी', विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की यात्रा के लिए यहां पढ़ें पूरी जानकारी 
वाराणसी: शिव के त्रिशूल पर टिकी है 'काशी', विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की यात्रा के लिए यहां पढ़ें पूरी जानकारी 

डिजिटल डेस्क, वाराणसी। भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी शहर में गंगा के घाट पर स्थित है। ये ज्योतिर्लिंग हिन्दू धर्म में सर्वाधिक पवित्र तीर्थस्थलों में से एक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव के त्रिशूल पर पूरा काशी बसा हुआ है, काशी वह नगरी है जहां के कण कण में शिव वसते है। राजधानी लखनऊ से 306 किमी दूरी पर स्थित काशी विश्वनाथ तक पहुंचे के लिए हवाई, रेल और सड़क मार्ग है। आइए जानते हैं विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़ी ऐसी बातें जिनके बारे में बहुत कम ही लोग जानते हैं...

भारत में हिन्दू धर्म एवं सभ्यता के केंद्र के रूप में काशी यानि वाराणसी का विशेष महत्व है द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख काशी विश्वनाथ मंदिर अनादिकाल से काशी में है। यह शिव और पार्वती का आदि स्थान है इसीलिए आदिलिंग के रूप में अविमुक्तेश्वर को ही प्रथम लिंग माना गया है। इसका उल्लेख महाभारत और उपनिषद में भी किया गया है। काशी को मोक्ष की नगरी भी कहा जाता है। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि भगवान शिव गंगा के किनारे इस नगरी में निवास करते हैं। भगवान शिव काशी के पालक और संरक्षक है, जो यहां के लोगों की रक्षा करते हैं।
 

काशी विश्वनाथ का पौराणिक महत्व
गंगा किनारे बसी काशी नगरी को भोले की नगरी भी कहा जाता है। इस नगरी में भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग में एक विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग शहर के बीच में स्थित है। काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी के सबसे प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिरों में से एक है, जिसे स्वर्ण मंदिर भी कहा जाता है। जो भगवान शिव को समर्पित है। यह इतिहास में कई बार नष्ट किया गया और फिर से बनाया गया है। मंदिर का सर्वप्रमथ निर्माण 11 वीं सदी में मंदिर की स्थापना हुई थी। वर्ष 1490 में राजा हरिशचंद्र द्वारा पहली बार जीर्णोद्धार करवाया था। मंदिर के बाहरी स्वरुप को अनेक बार तोड़ गया लेकिन यह बार-बार पुनर्गठित हुआ। आखिरी बार औरंगज़ेब ने इस मंदिर को तोड़ कर मस्जिद का निर्माण करवाया, जो ज्ञानवापी मस्जिद के नाम से जानी जाती है। बाहरी आक्रमणों के बाद अंतिम बार इसका जीर्णोद्धार इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने मराठा सम्राट विक्रमादित्य से 1780 में करवाया था। इस पवित्र नगरी के उत्तर की तरफ ओंकारखंड, दक्षिण में केदारखंड और बीच में विश्वेशवरखंड हैं। विश्वनाथ मंदिर में श्रृंगार के समय सारी मूर्तियां पश्चिम मुखी होती हैं। बाबा विश्वनाथ के दरबार में तंत्र की दृष्टि से चार प्रमुख द्वार हैं। जो इस प्रकार हैं शांति द्वार, कला द्वार, प्रतिष्ठा द्वार, निवृत्ति द्वार। इन चारों द्वारों का तंत्र की दुनिया में अलग ही स्थान है। 

"शुभम करोति कल्यानम अरोग्यम धनसम्पदा
शत्रु बुद्धि विनाशाया दीप ज्योति नमोस्तुते"

विश्वनाथ का पौराणिक महत्व
पुराणों में इस ज्योतिर्लिंग के बारे में यह कथा दी गई है, कि भगवान शंकर हिम पुत्री पार्वती जी से विवाह करके कैलाश पर्वत पर ही रहने लगे थे। लेकिन पिता के घर में ही विवाहित जीवन बिताना पर्वती जी को अच्छा नहीं लगता था, उन्होंने एक दिन भगवान शिव से कहा आप मुझे अपने घर ले चलिए अपने पिता के घर रहना मुझे अच्छा नहीं लगता। सभी लड़कियां शादी के बाद पति के घर जाती हैं। मुझे घर में ही रहना पड़ रहा है, भगवान शिव ने उनके मन की ये बात स्वीकार कर ली और वह माता वह पार्वती के साथ अपनी पवित्र नगरी काशी में आ गए। यहां आकर वह विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए, जहां उन्हें विश्वनाथ या विश्ववेश्वर नाम से जाना जाता है जिसका अर्थ है ब्रह्मांड का शासक।

काशी नरेश करते हैं मंदिर की पूजा
काशी नरेश (काशी के राजा) मुख्य पुजारी होतें हैं जो बाबा विश्वनाथ की दैनिक पूजा-पाठ का कार्य करते हैं। अन्य किसी व्यक्ति या पुजारी को गर्भगृह में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है। बाबा विश्वनाथ के धार्मिक कार्य करने के बाद ही मंदिर में दूसरों को प्रवेश करने दिया जाता है।

मंदिर पर आक्रामण
बताया जाता है कि जब औरंगजेब इस मंदिर को तोड़ने वाला है। इस बात का पता लगते ही लोगों ने भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग को एक कुएं में छिपा दिया था। वह कुआं आज भी मंदिर और मस्जिद के बीच में स्थित है। 1785 में काशी के तत्कालीन कलेक्टर मोहम्मद द्वारा मंदिर के सामने एक नौबतखाना बनवाया गया था। 28 जनवरी,1983 में मंदिर को उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया। जिसके बाद मंदिर समिति गठित करके सभी कार्य समिति को सौंप दिए गए।

मंदिर से जुड़ी मुख्य बातें-

  • काशी विश्वनाथ मंदिर स्थित शिवलिंग बारह ज्योर्तिलिंगों में से एक है।
  • सावन ही नहीं हर दिन यहां भोले बाबा के दर्शन को भीड़ लगती है।
  • काशी नरेश (काशी के राजा) मुख्य पुजारी होतें हैं जो बाबा विश्वनाथ की दैनिक पूजा-पाठ का कार्य करते हैं।
  • काशी मोक्षदायनी है, बाबा के दर्शन मात्र से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
  • बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने के लिए विदेशों से भी लोग आते हैं।
  • काशी विश्वनाथ मंदिर के ऊपर सोने का छत्र लगा हुआ है।

मंदिर के महत्वपूर्ण त्यौहार-
महा शिवरात्रि
शिवरात्रि हर साल फरवरी या मार्च को मनाई जाती है। महाशिवरात्रि उस रात को चिह्नित करती है जब भगवान शिव ने "तांडव" किया था। यह भी माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव का विवाह मां पार्वती से हुआ था। इस दिन शिव भक्त उपवास रखते हैं और शिव लिंग पर फल, फूल, दूध और बेल के पत्ते चढ़ाते हैं। शिवरात्रि पर श्रध्दालु दूर दूर से काशी विश्वनाथ मंदिर में बाबा के पवित्र दर्शन पाने के लिए आते हैं।

सावन का महीना
भगवान शिव के भक्तों के लिए श्रावण माह अत्यन्त शुभ होता है। इस महीने के प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग की विशेष सजावट की जाती है।दूसरे सोमवार को भगवान शिव और मां पार्वती की चलाय मान मूर्तियों की सजावट की जाती है। तीसरे और चौथे सोमवार को क्रमशः श्री अर्धनारीश्वर और रुद्राक्ष जी की सजावट की जाती है। श्रावण माह का पूरा महीना बहुत ही उत्साह से मनाया जाता है।

देव दीपावली
देव दीपावली देवताओं की दीवाली जो कार्तिक पूर्णिमा का त्यौहार है, यह नवम्बर – दिसम्बर में तथा दिवाली के पंद्रह दिन बाद पड़ता है। गंगा नदी के तट पर देवियों के सम्मान में दस लाख से अधिक मिट्टी के दीए जलाए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान धरती पर उतर कर गंगा में स्नान करते हैं।

अन्नकूट
श्री कृष्ण के बचपन की लीलाओं के क्रम में अन्नकूट मनाया जाता है। जिसमें उन्होंने इंद्र के क्रोध से वृन्दावन के ग्वाले एवं उनके वंश को सुरक्षा प्रदान की और इंद्र के अभिमान को झुकाया। देवराज इंद्र सहित सभी ब्रजबासी उनकी अलौकिक शक्ति से परिचत हुए और श्रीकृष्ण के इस पराक्रम को भव्य त्यौहार के रूप में मनाया, इस प्रकार अन्नकूट परम्परा की शुरुआत हुई।

आमलकी एकादशी
आमलकी एकादशी जिसे रंगभरी भी कहते हैं। जो फरवरी-मार्च के महीने में मनाया जाता है।आमलकी ब्रम्हा की संतान माने जाते हैं,जो सभी प्रकार के पापों को नष्ट करने वाले देव हैं।आमलकी, वास्तव में ब्राह्मण का रूप हैं ऐसी मान्यता है कि जो भी आमलकी पेड़ की इसकी परिक्रमा करता है वह अपने पापों से मुक्त हो जाता है।

मकर-संक्रांति और अक्षय तृतीया भी काशी विश्वनाथ में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है।

वाराणसी शहर
वाराणसी यानी काशी का पुराना नाम, बनारस प्राचीन शहरों में से एक है, जिसका दिल समृद्ध विरासत समेटे हुए आधुनिकता के साये तले भी धड़क रहा है। गंगा किनारे यह शहर हिंदुओं, बौद्ध और जैन समाज के लिए खासी अहमियत रखता है। इस शहर की यात्रा का अनुभव आपको भीतर तक बदल कर रख देगा।पृथ्वी और स्वर्ग के बीच वाराणसी को सबसे बड़े तीर्थ के रूप में जाना जाता है।वाराणसी को शास्त्र, गीत-संगीत, कला-साहित्य और आध्यात्मिकता का सांस्कृतिक केंद्र भी कहा जाता है।गंगा घाट किनारे का रोजमर्रा का जीवन और शाम के समय होने वाली गंगा आरती इस पवित्र नदी के प्रति लोगों का नजरिया बदल देती है। बनारसी सिल्क साड़ियां और बनारसी पान ने इसको विश्वपटल पर अलग ही पहचान दिलाई हुई है।घाट और मंदिरों में सुबह का समय बिताना आध्यात्मिक स्तर पर मन और चित्त को शुद्ध करने वाला अनुभव है।

पूजा/दर्शन की सूची
विश्वनाथ मंदिर में मुख्यता चार प्रकार की आरती का उल्लेख है जिनकी अलग अलग सेवा शर्तें हैं। जो रूपये 180 से 350 का भुगतान करके कि जा सकती हैं, सुबह होने वाली मंगला आरती महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सुबह की पहली आरती है। आरती प्रतिदिन सुबह 3:00 - 4:00 बजे के बीच शुरू होती है। भक्तों को 2:30 - 3:00 बजे के बीच मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति होती है। मंदिर का प्रवेश बिंदु गेट नंबर एक है। मंदिर के प्रवेश स्थल पर सभी को टिकट दिखाना अनिवार्य है। दस वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए प्रवेश निःशुल्क है।

वहीं हर शाम विश्वनाथ मंदिर में श्रृंगार भोग आरती की जाती है। यह सप्त ऋषि आरती के बाद चौथी आरती है। श्रृंगार भोग आरती भगवान को भोजन परोसने की पेशकश है। बाबा विश्वनाथ को भोग लगाने के बाद उसको प्रसाद के रूप में सभी भक्तों के बीच बांट दिया जाता है। श्रृंगार आरती प्रतिदिन रात 9:00 -10:15 बजे के बीच की जाती है। भक्तों को आरती से आधे घंटे पहले मंदिर में प्रवेश कर लेना चाहिए उसके बाद प्रवेश वर्जित है। इस आरती में पांच वर्ष के बच्चों के लिए प्रवेश निःशुल्क है। मंदिर में प्रवेश करतें समय टिकट अपने पास रखें। इसके बाद सबसे आखिरी और पांचवी शयन आरती है जो रात 10:30- 11:00 बजे तक की जाती है।

सुगम दर्शन
यह तीव्र एंव कम परेशानी मुक्त दर्शन है जो एक विशेष प्रक्रिया के तहत पूरा किया जाता है। जिसको भक्तों के लिए समय की कमी, बुजुर्गों और दिव्यागों को  ध्यान में रखकर मंदिर समिति द्वारा निर्धारित किया गया है। जो कतार में खड़ रह कर इंतजार नहीं कर सकते। कृपया दर्शन के पहले मंदिर के पास स्थित हेल्पडेस्क पर जाएं। श्रध्दालुगण इस बात का ध्यान रखें कि बुकिंग तारीख को नही बदला जाता। आरती के समय सुगम दर्शन की अनुमति नहीं है। सुगम दर्शन केवल उपलब्ध दर्शन स्लॉट में ही बुक कर सकतें हैं,बुकिंग उसी दिन हेल्पडेस्क काउंटर पर ही की जाएगी।12 वर्ष से कम उम्र के लिए कोई टिकट आवश्यक नहीं है।

रूद्राभिषेक
विश्वनाथ मंदिर में ज्योर्तिलिंग अभिषेक के लिए छ: श्रेणियों में बाटां गया है। जहां भक्तों को अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार अभिषेक करा सकतें हैं। जिसमें साधारण रूद्राभिषेक 450 रूपये में एक शास्त्री द्वारा किया जाता है। सबसे बड़ा महा-रूद्राभिषेक है जिसका मूल्य 57100 रूपये है जो 11 शास्त्री द्वारा 11 दिनों में पूरा किया जाता है।

मंदिर परिक्षेत्र के तीर्थ कुंड
मणिकर्णिका चक्र पुष्करिणी कुंड गंगा नदी पर मणिकर्णिका घाट पर स्थित है। मणिकर्णिका घाट अन्य चार घाटों अस्सी, दशाश्वमेध, पंचगंगा और आदि केशव के साथ सबसे पवित्र और पूजनीय घाटों में से एक है।

दुर्गा कुंड प्रसिद्ध दुर्गा मंदिर के पास है। इसे सबसे प्रसिद्ध मंदिरों और एक बढ़िया कुंड के रूप में जाना जाता था। दुर्गा मंदिर और दुर्गा कुंड 18 वीं शताब्दी में बनाया गया था। अभिलेखों से यह भी पता चलता है कि इस बड़े आकार के कुंड का निर्माण रानी अहिल्याबाई होल्कर करवाया था। यह अद्भुत कुंड है जिसमें लाल रंग के पत्थर हैं,जिससे पानी निकलता है।

गौरी कुंड
गंगा नदी से सटे केदार घाट में एक छोटा सा आयताकार कुंड है।जिसे गौरी कुंड के नाम से जाना जाता है।

कैसे पहुंचा जाए
वाराणसी देश के सभी हिस्सों से से जुड़ा है, यह सड़क, रेल और वायु मार्ग से अच्छी तरह कनेक्ट है, यह शहर भारत के अन्य शहरों नई दिल्ली, मुंबई, कोलकत्ता, चेन्नई, और भोपाल, से आवागमन हेतु यात्रा विकल्प प्रदान करता है। वाराणसी जंक्शन रेलवे स्टेशन शहर का मुख्य रेलवे स्टेशन है।जहां से विश्वनाथ मंदिर 3.6 किमी दूर है।पंडित दीन दयाल उपाध्‍याय स्टेशन (मुगलसराय) वाराणसी स्टेशन से लगभग 6.5किमी की दूरी पर स्थित है। जो वाराणसी स्टेशन के बाद दूसरा प्रमुख स्टेशन है।जहां से देश की अधिकांश ट्रेन यहां से गुजरती हैं।

सड़क मार्ग
चौधरी चरण सिंह बस स्टैंड वाराणसी का सबसे बड़ा बस स्टैंड हैं जो देश के अन्य बस टर्मिनलों से जुड़ा है। चौधरी चरण सिंह बस स्टैंड स

 

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Created On :   4 Feb 2020 3:49 PM IST

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