Shahdol News: बांधवगढ़ प्रबंधन को दो साल से पता था कोदो हाथियों के लिए हानिकारक, फिर भी नहीं किए उपाय
- 2 साल से यह पता था कि कोदो हाथियों के लिए हानिकारक
- एक्सपर्ट चिकित्सकीय टीम में शामिल रहने चाहिए
- अच्छी समझ रखने वाले एक्सपर्ट चिकित्सकीय टीम में शामिल रहें
Shahdol News: बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में 29 से 31 अक्टूबर के बीच 10 हाथी व झुंड से भटके 3 माह के 11वें हाथी की मौत और उनकी मॉनिटरिंग पर लगातार उठते सवाल के बीच चौंकाने वाली बात यह भी सामने आई है कि टाइगर रिजर्व प्रबंधन को 2 साल से यह पता था कि कोदो हाथियों के लिए हानिकारक है। बावजूद इसके न तो प्रबंधन लापरवाह बना रहा। नतीजतन, कोदो खाने से 10 हाथियों की जान चली गई। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में लंबा समय गुजारने वाले रिटायर्ड फील्ड डायरेक्टर मृदुल पाठक भी इस बात पर जोर देते है कि 'वन्यप्राणियों की अच्छी समझ रखने वाले एक्सपर्ट चिकित्सकीय टीम में शामिल रहने चाहिए।’ कमोबेश बांधवगढ़ में ऐसा नहीं है।
अक्टूबर 22 में सामने आ चुका है मामला
28 अक्टूबर 2022 को बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के पनपथा बफर में एक हाथी कोदो खाकर बीमार हुआ तो टाइगर रिजर्व प्रबंधन ने न सिर्फ उसका इलाज किया बल्कि स्वस्थ होने के बाद जंगल में भी छोड़ा। उस समय भी चिकित्सकीय टीम ने कोदो को हाथियों के लिए हानिकारक बताया था। टीम ने 2 दिन तक बीमार हाथी का इलाज कर उसे ठीक किया और वापस जंगल में छोड़ा। इस घटना के बाद चिकित्सकीय टीम ने कुछ सुझाव भी तत्कालीन फील्ड डायरेक्टर को दिए थे, लेकिन बात आई-गई हो गई।
उठते सवाल
- सलखनिया गांव में 29 अक्टूबर को 4 हाथियों की मौत के बाद गंभीर हालत में मिले 6 हाथियों के इलाज में 28 अक्टूबर 2022 को पनपथा बफर में बीमार हाथी के इलाज पैटर्न अपनाया गया। इस बार इलाज में कहां कमीं रह गई कि एक भी हाथी की जान नहीं बची?
- बांधवगढ़ में हाथी सितंबर 2018 से हैं। कोदो से नुकसान की बात 2022 में पता चली। फिर भी दो साल में किसानों को कोदो फसल के बजाय दूसरी फसल की खेती के लिए क्यों प्रेरित नहीं किया गया?
- बांधवगढ़ एकमात्र ऐसा टाइगर रिजर्व है, जहां बाघों के साथ ही हाथियों का मूवमेंट है। यहां इलाज के लिए दो अलग-अलग तरह से संसाधन की जरूरतों पर पांच साल बाद भी पर्याप्त संसाधन क्यों नहीं जुटाए जा सके?
एक्सपर्ट व्यू
-कुछ मामलों को ऐसे भी समझा जा सकता है, कि पेड़ कटेंगे तो शिकायत लेकर पेड़ तो नहीं आएगा। ऐसे ही वन्यप्राणी को सही इलाज नहीं मिला तो वह तो बताने आएगा नहीं। कुछ बातें अंदाजे में ही चलती हैं। ठीक हो गया तो सब ठीक है, नहीं हुआ तो पीडि़त वन्यप्राणी तो बताएगा नहीं कि चूक कहां हुई? इसके लिए यह भी जरूरी है कि वन्यप्राणियों की अच्छी समझ रखने वाले एक्सपर्ट चिकित्सकीय टीम में शामिल रहें।
- मृदुल पाठक, सेवानिवृत्त फील्ड डायरेक्टर (बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व)
Created On :   15 Nov 2024 8:28 PM IST