यूपी से सटे छतरपुर जिले की विधानसभा सीटों पर सपा-बसपा बिगाड़ती बीजेपी- कांग्रेस का खेल

यूपी से सटे छतरपुर जिले की विधानसभा सीटों पर सपा-बसपा बिगाड़ती बीजेपी- कांग्रेस का खेल
  • छतरपुर जिले में 6 विधानसभा सीट
  • 3 कांग्रेस,2 बीजेपी और 1 पर सपा का कब्जा
  • चुनाव में दिखता है बागी और जातीय समीकरण का चेहरा

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मध्यप्रदेश का छतरपुर जिले इन दिनों कथावाचक धीरेंद्र शास्त्री के चलते पूरे देशभर में चर्चित है। बागेश्वर धाम की वजह से इस जिले को सभी जानने लगे है। बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा यहां से सांसद है, इसके चलते छतरपुर जिला आगामी विधानसभा को लेकर सुर्खियों में है। छतरपुर जिले में 6 विधानसभा सीट आती है, जिनके नाम छतरपुर, महाराजपुर, बड़ामलहरा,राजनगर,चंदला, और बिजावर है। छतरपुर जिले की 3 सीटों पर कांग्रेस, 2 पर बीजेपी और एक सीट पर समाजवादी पार्टी का कब्जा है।

2011 की जनगणना के अनुसार, 22.6% लोग शहरी क्षेत्रों में रहते हैं जबकि 77.4% ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। उत्तरप्रदेश की सीमा से सटे होने के कारण जिले की सीटों पर बीएसपी और एसपी का भी अच्छा खासा असर दिखाई देता है। बीएसपी यहां के चुनावी समीकरण बदलने में कामयाब रहती है। छतरपुर जिला बुदेलखंड के अंतर्गत आता है, जहां सूखा, बेरोजगारी, और पलायन सबसे प्रमुख मुद्दे है। सपा बसपा के चुनावी मैदान में उतरने से मुकाबला रोचक हो जाता है।

छतरपुर विधानसभा सीट

छतरपुर विधानसभा सीट पर 20 परसेंट करीब 40 हाजर अनुसूचित जाति के मतदाता, 17 हजार मुस्लिम मतदाता और चार हजार के करीब एसटी मतदाता है। ओबीसी वर्ग के मतदाता करीब 49 फीसदी है। छतरपुर क्षेत्र में करीब 35000 ब्राह्मण 18 से 20 हजार यादव वोटर हैं जो निर्णायक भूमिका में होते है।

2018 में कांग्रेस से आलोक चतुर्वेदी

2013 में बीजेपी की ललिता यादव

2008 में बीजेपी की ललिता यादव

2003 में एसपी की विक्रम सिंह

1998 में बीजेपी के उमेश शुक्ला

1993 में कांग्रेस के शंकर प्रताप सिंह

1990 में जेडी से जगदंबा प्रसाद निगम

1985 में जेएनपी से जगदंबा प्रसाद निगम

1980 में कांग्रेस से शंकर प्रताप सिंह

1977 में जेएनपी से जगदंबा प्रसाद निगम

महाराजपुर विधानसभा सीट

2018 से पहले महाराजपुर विधानसभा सीट बीजेपी का गढ़ रही है, चुनाव में बीएसपी के कारण त्रिकोणीय मुकाबला दिखाई देता है। महाराजपुर विधानसभा सीट बीजेपी का गढ़ है। 2011 की जनगणना के अनुसार यहां एससी वोटर्स की संख्या 23 फीसदी करीब पचास हजार है। ब्राह्मण 28 हजार, कुशवाह 22 हजार और यादव मतदाताओं की संख्या 18 हजार है। सीट पर एससी और ब्राह्मण मतदाता निर्णायक भूमिका में होता है।

2018 में कांग्रेस के नीरज दीक्षित

2013 में बीजेपी के मानवेंद्र सिंह

2008 में निर्दलीय भंवर सिंह

2003 में बीजेपी से रामदयाल अहिरवार

1998 में बीजेपी से रामदयाल अहिरवार

1993 में बीजेपी से रामदयाल अहिरवार

1990 में बीजेपी से रामदयाल अहिरवार

1985 में कांग्रेस बाबूलाल अहिरवार

1980 में कांग्रेस लक्ष्मणदास अहिरवार

1977 में जेएनपी से रामदयाल

बड़ामलहरा विधानसभा सीट

छतरपुर जिले को बीजेपी का गढ़ माना जाता है, 2018 से पहले जिले की 6 विधानसभा सीटों में से पांच पर बीजेपी का कब्जा था, लेकिन 2018 में गणित गड़बड़ाया और कांग्रेस के हाथ में चार सीट आ गई, जबकि बीजेपी को 1 और एक समाजवादी पार्टी को मिली। 2020 के उपचुनाव में बीजेपी के खाते में एक सीट का इजाफा हुआ। 10 साल बाद 2003 में जब मध्य प्रदेश में बीजेपी की सत्ता में वापसी हुई , उमा भारती बड़ा मलहरा सीट से जीतकर विधायक और मुख्यमंत्री बनी थी। जातिगत आंकड़ों की बात की जाए, तो यहां सबसे ज्यादा लोधी और यादव समुदाय के लोग है। दोनों वर्ग चुनाव में निर्णायक भूमिका अदा करते हैं।

2020 उपचुनाव बीजेपी के कुंवर प्रद्युम्न सिंह लोधी

2018 में कांग्रेस से प्रद्युम्न सिंह लोधी

2013 में बीजेपी से रेखा यादव

2008 में बीजेएसएच से रेखा यादव

राजनगर विधानसभा सीट

राजनगर सीट पर प्रमुख मतदाता अनु.जाति वर्ग के है, जिनकी संख्या 52 हजार है, वहीं कुर्मी 33 हजार, कुशवाहा 20 हजार, ब्राहम्ण 18 हजार और यादव 13 हजार है। यहां एससी वोटर्स निर्णायक भूमिका में होता है।

2018 में कांग्रेस से विक्रम सिंह

2013 में कांग्रेस से विक्रम सिंह

2008 में कांग्रेस से विक्रम सिंह

चंदला विधानसभा सीट

छतरपुर जिले की चंदला विधानसभा सीट अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित है। 2011 की जनगणना के मुताबिक चंदला विधानसभा सीट पर एससी मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है। यहां एससी वोटर्स करीब 61 हजार है, जो करीब 29 फीसदी है। पिछले तीन चुनावों से बीजेपी यहां चुनाव जीतती आ रही है। उससे पहले दो बार सपा का कब्जा था। एससी आरक्षित सीट होने से ओबीसी और सामान्य वर्ग के मतदाता यहां निर्णायक भूमिका में होते है।

2018 में बीजेपी से राजेश प्रजापति

2013 में बीजेपी से आर डी प्रजापति

2008 में बीजेपी से रामदयाल अहिरवार

2003 में एसपी से विजय बहादुर सिंह

1998 में एसपी से विजय बहादुर सिंह

1993 में कांग्रेस से सत्यव्रत चतुर्वेदी

1990 में बीजेपी से अंसारी मोहम्मद गनी

1985 में कांग्रेस से श्याम बेहारी पाठक

1980 में कांग्रेस से सत्यव्रत चतुर्वेदी

1977 में जेएनपी से रघुनाथ सिंह

बिजावर विधानसभा सीट

बिजावर विधानसभा सीट पर जातीय समीकरण की बात की जाए तो 2011 की जनगणना अनुसार अनुसूचित जाति के मतदाताओं की संख्या 46,266 है, जो 22.09 फीसदी है। वहीं अनुसूचित जनजाति मतदाताओं की संख्या 23 428 है, जो करीब 11.1 फीसदी है। एससी और एसटी कुल मिलाकर 34 फीसदी है। उनके बाद दूसरे नंबर पर यादव और कुशवाह मतदाताओं की है। बिजावर सीट पर भी एससी मतदाता हार जीत का फैसला करता है। आदिवासी और ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या लगभग बराबर है

बिजावर सीट पर शहरी मतदाताओं की तुलना में ग्रामीण मतदाताओं की संख्या अधिक है। यहां हार जीत का फैसला ग्रामीण वोटर्स ही तय करते है। बिजावर विधासभा सीट अभी समाजवादी पार्टी के कब्जे में है। इससे पहले 2003 से लेकर 2013 तक बीजेपी का कब्जा रहा। बिजावर सीट पर दूसरे नंबर पर यादव और कुशवाह मतदाताओं की है। बिजावर सीट पर भी एससी और एसटी मतदाता हार जीत का फैसला करता है। बीजेपी यहां से हर बार प्रत्याशी बदलती है, चेहरे बदलने के कारण बीजेपी को पिछली बार नुकसान उठाना पड़ा था।

2018 में एसपी से राजेश कुमार

2013 में बीजेपी गुड्डन पाठक

2008 में बीजेपी से आशारानी

2003 में बीजेपी से जितेंद्र सिंह

1998 में कांग्रेस से मानवेंद्र सिंह

1993 में कांग्रेस के मानवेंद्र सिंह

1990 में बीजेपी से जुझार सिंह बुंदेला

1985 में कांग्रेस के राजबहादुर सिंह

1980 में कांग्रेस के रत्नेश सुलेमान

1977 में जेएनपी से नरेंद्र सिंह ठाकुर


Created On :   23 July 2023 1:33 PM GMT

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