अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस: सामाजिक समीकरणों से चुनाव लड़ने वाली बीएसपी चीफ मायावती की आगामी चुनाव में बड़ी प्लानिंग!

- ताबड़तोड़ एक्शन और सरकार पर प्रहार
- कांग्रेस- बीएसपी को हो सकता है गठबंधन!
- समाचार, सियासत, स्क्रीन और गरीब समाज में चर्चा का विषय बनी बसपा
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर हम एक ऐसी महिला की बात करने जा रहे है जिसने राजनीति तरीके से बहुजन समाज के उत्थान के लिए कांशीराम द्वारा चलाए जा रहे बहुजन आंदोलन की खातिर अपने परिवार को छोड़ दिया। ये कोई और नहीं बल्कि बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती है, जिनका जीवन, संघर्ष,फैसले, कार्य और सफलता तमाम करोड़ों महिलाओं को प्रेरणा देती है। मायावती बारी बारी से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश का चार बार सीएम बनी।
बीएसपी एक अनुशासित पार्टी
राजनीति में फीका पड़ने का दौर भी आता है, ऐसी कोई पार्टी नहीं है जिसका समय सदैव एक जैसा रहा है। लेकिन खुद मायावती और उनके कार्य गरीब पीड़ित समाज को आज भी प्रेरणा देता है और देता रहेगा। उनके पुराने साथी उन पर चाहे जो भी आरोप वक्त वक्त पर लगाते रहे हो लेकिन उन्होंने और उनकी पार्टी में आज भी एक अनुशासन की झलक दिखाई देती है जो अन्य किसी दल में नजर नहीं आती। पार्टी की विचारधारा से इतर बोलने वाले हर कार्यकर्ता, नेता और परिजन पर मायावती तुरंत एक्शन लेती है। हाल ही में उनके ताबड़तोड़ एक्शन ने ये साबित भी कर दिया।
हाल ही में यूपी की पूर्व सीएम व बसपा चीफ सियासी गलियारों , टीवी स्क्रीन और समाचारों में अचानक से सुर्खियों में छाई हुई है। चाहे फिर उनका अपने परिजनों रिश्तेदारों का पार्टी से निकालना हो या नए नेताओं को नई जिम्मेदारी देना। इसे आप कुछ भी कह सकते है, लेकिन इसे आप सोची समझी रणनीति भी कह सकते है। क्योंकि विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया में रहकर कांग्रेस को वो हासिल नहीं हुआ जिसका उसने सोचा था। आज भी पूरा विपक्षा बिखरा हुआ है। जिसमें सबसे बड़ा दल कांग्रेस था।
कांग्रेस ने कई बार बसपा को दिया झटका
समय समय पर कई राज्यों में बीएसपी के विधायकों को कांग्रेस ने अपने शामिल करके बसपा को जो नुकसान पहुंचाया। बीएसपी और कांग्रेस में गठबंधन न होने में यहीं एक मुख्य वजह नजर आती है। राहुल गांधी भी ये समझ चुके है कि विपक्षी दलों में अन्य दलों से हाथ मिलाकर कांग्रेस को इतना मुनाफा नहीं हुआ, ना ही हो सकता है जितना बीएसपी से हाथ मिलाकर हो सकता है। तभी तो उन्होंने अपनी पार्टी की चिंता न करते हुए अपने यूपी में रायबरेली के दौरे में बीएसपी पर ठीक से चुनाव न लड़ने का आरोप लगाया था। इसका जवाब बीएसपी चीफ ने भी दिया था। सही बात भी कांग्रेस अपने गिरेबान में छाककर देखे तो उसे हाल ही में कितने राज्यों के विधानसभा चुनाव में असफलता मिली है।
न केवल राहुल गांधी बल्कि जनता द्वारा भी उन पर परिवारवाद होने और बहुजन मूवमेंट से भटक जाने जो आरोप लग रहा था। बहुजन समाज के लोग मायावती पर भले ही भटक जाने का आरोप लगाते रहे लेकिन जिसने भी मायावती को पढ़ा हो, सुना हो उनके संघर्ष और उनके प्रशासनिक कार्यों को देखा है, वह मायावती की तारीफ ही करेगा।
राजनीति में उतार चढ़ाव
राजनीति में उतार चढ़ाव आते रहते है। एक दशक के समय से बहुजन समाज पार्टी के सियासी करियर को वो सफलता नहीं मिली जिसकी वो हकदार थी। गरीब वंचित पीड़ित समुदाय के मतदाताओं को लोभ लुभावन वाली योजनाएं अपने जाल में फंसा ही लेती है।
बीएसपी एक आंदोलन ना का पारिवारिक पार्टी
बीएसपी चीफ मायावती ने कई रिश्तेदारों को पार्टी से बाहर निकालकर समाज में ये संदेश दिया कि बीएसपी किसी परिवार की पार्टी नहीं है यह एक आंदोलन है। आप मायावती के हाल की भाषणों पर नजर डालेंगे तो ये साफ नजर आएगा कि वो मुद्दों को लेकर ना कांग्रेस को छोड़ती ना ही बीजेपी को। मायावती जब भी गरीब,महिला और वंचित समाज की बात होगी सभी पर बराबर प्रहार करती है। हाल ही में उन्होंने कहा यूपी में बीजेपी की योगी सरकार पर निशाना साधते हुए उनकी आर्थिक नीतियां और योजनाओं को गरीबों, दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों और बाकी मेहनतकश लोगों के हित में नहीं हैं। बीएसपी यूपी की योगी सरकार के साथ साथ केंद्र की मोदी सरकार पर भी निशाना साध रही है।
मायावती के ताबड़तोड़ एक्शन, पार्टी की बड़ी बड़ी बैठक और निर्णय सोशल मीडिया के साथ साथ गरीब पीड़ित वंचित समाज को सोचने पर मजबूर कर रहा है। सामाजिक समीकरणों की नीतियों से चुनाव लड़ने वाली मायावती आगामी चुनाव में बड़ी योजना की तैयारी में है। हाल ही में मायावती का नया रूप देखने को मिल रहा है। गरीबों से जुड़े हर मुद्दों को बसपा चीफ उठा रही है, प्रेस कॉन्फ्रेस कर रही है। अब सबसे बड़ा सवाल यहीं है कि मायावती क्या नए प्लान पर काम कर रही है।
Created On :   8 March 2025 5:14 PM IST